उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttrakhand assembly election) का भले ही औपचारिक ऐलान न हुआ हो, लेकिन सियासी दलों ने अपने-अपने प्रचार अभियान तेज कर रखा हैं. करीब छह महीने पहले सत्ता की कमान संभालने वाले सीएम पुष्कर धामी के लिए 2022 का चुनाव सबसे बड़ी चुनौती पूर्ण हैं. धामी के सामने न सिर्फ सिर्फ हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन की रवायत को तोड़ने की चुनौती है, बल्कि उन्हें अपनी सीट को भी बचाए रखना होगा, क्योंकि सूबे में मुख्यमंत्री रहते हुए महज एक ही नेता अपनी विधायकी बचा सके. बाकी सबको सियासी मात खानी पड़ी है.
उत्तराखंड के दो दशक के सियासी इतिहास में 2002 में पहली बार हुए विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो कोई भी मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी सीट बचाने में सफल नहीं रहा, सिवाय उपचुनावों के अलावा. ऐसे में 2022 का चुनाव सीएम पुष्कर धामी के लिए काफी चुनौतीपूर्ण बना गया है. ऐसे में देखना है कि धामी अपनी खटीमा विधानसभा सीट से उतरकर मुख्यमंत्रियों की हार का यह 'मिथक' तोड़ पाते हैं कि नहीं?
उत्तराखंड के 21 साल के सियासी सफर में अभी तक चार बार विधानसभा चुनाव हुए हैं और पांचवी बार अब चुनाव 2022 में होने हैं. पिछले चार चुनाव के रिकार्ड को देखे तो हर पांच साल में कांग्रेस और बीजेपी के बीच बारी-बारी से सत्ता परिवर्तन होता रहा है. मौजूदा समय में बीजेपी सत्ता में है और सूबे में अब तक रवायत के लिहाज से कांग्रेस को सत्ता में अपनी वापसी की उम्मीद दिख रही है.
वहीं, हर पांच साल बाद सत्ता बदलने की चली आ रही परंपरा को तोड़ने के लिए ही बीजेपी ने अपने दो सीएम को बदलकर तीसरे मुख्यमंत्री के तौर पर पुष्कर धामी की ताजपोशी जुलाई 2021 में की थी. बीजेपी ने उन्हें युवा सीएम के तौर पर सूबे में प्रोजेक्ट कर रही है और अब उनका इम्तिहान के 2022 चुनाव में होना है, जिसमें उन्हें सत्ता के साथ-साथ अपनी सीट को भी बचाने की चुनौती खड़ी है.
सीट बचाने वाले एकलौते सीएम रहे कोश्यारी
बता दें कि साल 2000 में उत्तराखंड का गठन हुआ तो विधायकों की संख्या बल पर बीजेपी की सरकार बनी और नित्यानंद स्वामी मुख्यमंत्री बने. लेकिन, बीजेपी ने 2002 के चुनाव से ठीक पहले नित्यानंद को हटाकर भगत सिंह कोश्यारी को सीएम बना दिया और उन्हीं के अगुवाई में बीजेपी चुनावी मैदान में उतरी. 2002 में पहली बार उत्तराखंड में चुनाव हुए तो कोश्यारी सत्ता तो नहीं बचा सके, लेकिन अपनी सीट बचाने में सफल रहे. वो राज्य के एकलौते मुख्यमंत्री जो अपनी सीट अभी तक के इतिहास में बचा सके हैं.
एनडी तिवारी छोड़ दिया था चुनाव मैदान
साल 2002 में कांग्रेस सत्ता में आई तो नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने और पांच साल तक सीएम की कुर्सी पर काबिज रहे. नारायण दत्त तिवारी ने 2007 में विधानसभा चुनाव में नहीं उतरे और कांग्रेस ने अपनी सत्ता गंवा दी. इस तरह वो खुद तो हार का तमगा लेने से बच गए, लेकिन कांग्रेस की हार ठीकरा जरूर उन पर फूटा.
खंडूरी को सत्ता और सीट गंवानी पड़ी
उत्तराखंड में बीजेपी की सत्ता के वापसी के साथ बीएस खंडूरी मुख्यमंत्री बने, लेकिन दो साल के बाद 2009 में पार्टी ने उन्हें हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक की ताजपोशी कर दी. हालांकि, भ्रष्टाचार के तमामों आरोपों की बीच साल 2012 के चुनाव से छह महीने पहले खंडूरी को फिर से सीएम बना दिया गया. 2012 चुनाव में बीजेपी खंडूरी के नेतृत्व में उतरी और कोटद्वार सीट से किस्मत आजमाई, लेकिन न तो वह अपनी सीट बचा सके और न ही बीजेपी की सत्ता.
हरीश रावत को दोनों सीट पर हार मिली
2012 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी किया तो मुख्यमंत्री का ताज विजय बहुगुणा जोशी के सिर सजा. हालांकि, 2014 में उन्हें हटाकर कांग्रेस ने हरीश रावत को सीएम बना दिया. 2017 का विधानसभा कांग्रेस हरीश रावत के अगुवाई में उतरी. रावत ने कुमाऊं की किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण दो विधानसभा सीटों से किस्मत आजमा, लेकिन उन्हें दोनों ही सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा. मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत न तो सीट बचा सके और न ही सत्ता.
पुष्कर धामी के लिए अब इम्तिहान
2017 में बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत बने, लेकिन चार साल के बाद पार्टी ने उनका इस्तीफा लेकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बना दिया. हालांकि, तीरथ सिंह रावत भी अपनी कुर्सी पर बहुत ज्यादा दिन नहीं टिक सके और 4 जुलाई को पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिया. 2022 का चुनाव अब धामी के अगुवाई में ही लड़ा जाएगा और ऐसे में उन्हें अपनी सीट और सत्ता दोनों को बचाने की चुनौती है.
मुख्यमंत्री पुष्कर धामी उधम सिंह नगर की खटीमा विधानसभा सीट से दूसरी बार विधायक हैं और माना जा रहा है कि वो इस बार भी खटीमा सीट से किस्मत आजमाने के लिए उतरेंगे. यही वजह है कि सत्ता के सिंहासन पर बैठते ही धामी ने अपनी सीट के लिए विकास के लिए सरकारी खजाना खोल रखा है. पिछले एक महीने में करीब 400 करोड़ रुपये की विकास की सौगात दे चुके हैं और पीएम मोदी गुरुवार को हल्द्वानी से उधम सिंह नगर को पानी, सड़क की तोहफा देंगे.
2022 के लिए खटीमा में चुनौती
हालांकि, 2017 विधानसभा चुनाव में पुष्कार सिंह धामी महज तीन हजार वोटों से कांग्रेस उम्मीदवार भुवन कापड़ी से जीत सके थे. ऐसे में खटीमा सीट इस बार सीएम धामी के लिए जीत आसान नहीं है, क्योंकि किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर उधमसिंह नगर जिले में ही रहा है. इसके अलावा लखीमपुर खीरी घटना का भी सियासी असर इसी जिले में सबसे ज्यादा दिखा है, क्योंकि सिख वोटर काफी निर्णायक भूमिका में है.
वहीं, उधम सिंह नगर जिले के कद्दावर नेता यशपाल आर्य बीजेपी और मंत्री पद छोड़कर कांग्रेस में वापसी कर गए हैं. ऐसे में पुष्कर धामी के लिए खटीमा सीट के लिए काफी चुनौती पूर्ण बन गई है. धामी के लिए अपनी सत्ता और सीट दोनों को बचाए रखना के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है.