पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला है. सभी पार्टियां नए वादों के पिटारे के साथ वोटरों को रिझाने के लिए तैयार खड़ी है. उत्तराखंड में सभी राजनीतिक दल युवा वोट बैंक पर दांव लगाने की तैयारी में हैं. युवाओं को तमाम सब्जबाग दिखाए जाएंगे, लेकिन इस बार पहाड़ के नौजवान पिछले वादों का हिसाब करने के लिए तैयार खड़े हैं.
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में तराई इलाकों के मुकाबले सुविधाएं काफी कम है. रोजगार और बेहतर भविष्य के सपने लेकर पहाड़ों के नौजवान तराई की ओर पलायन कर रहे हैं लेकिन अगली पीढ़ी जो पहाड़ों में तैयार हो रही है, उसके अपने सपने हैं और वह कुछ कर दिखाना चाहती है.
कई युवाओं का कहना है कि पहाड़ में शिक्षा लेना ही बड़ी चुनौती है, क्योंकि उच्च शिक्षा के लिए देहरादून जाना पड़ता है. कॉलेज तक की पढ़ाई के लिए गांव से शहर की दूरी काफी ज्यादा है और सड़कें भी नहीं हैं.
पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुछ युवा चाहते हैं कि उनके इलाके में बेहतर शिक्षा व्यवस्था हो जाए तो कुछ चाहते हैं कि उन्हें स्थानीय स्तर पर ही रोजगार के नए मौके मिल जाएं.
शिक्षा की हो बेहतर व्यवस्था
ऐसे ही एक युवक सूरज उनियाल कहते हैं कि अगर यहीं पर निवेश हो और कंपनियां आए तो पहाड़ी अपना गांव छोड़कर पलायन क्यों करें. वहीं मनीष नाम के एक शख्स ने कहा, हमारे गांव में कई सारे बच्चों ने मेहनत किया है, संघर्ष किया है, इसके बाद वो आगे बढ़े हैं लेकिन बहुत सारे ऐसे युवा हैं जो बेरोजगार हैं.
आशीष ने बताया कि वो इलेक्ट्रॉनिक की शिक्षा ले रहे हैं और पहाड़ी इलाके में ही ऐसा कोई कारोबार शुरू करना चाहते हैं ताकि वह अपने साथ दूसरे युवाओं को भी मौका दे सकें. उसने बताया कि यहां काम खड़ा करना बेहद चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि कोई मदद नहीं मिलती.
पहाड़ों में लड़कियों की शिक्षा में मुश्किलें
उत्तरकाशी के बरकोट में रहने वाली दीपशिखा कहती हैं कि पहाड़ में रहने वाली लड़कियों के लिए जीवन तराई क्षेत्र के मुकाबले ज्यादा मुश्किल है, क्योंकि वहां लड़की दूर पढ़ने जाती है तो लोग सवाल उठाते हैं और अगर वह पढ़ लिखकर अच्छी शिक्षा ले भी ले तो उसे रोजगार के मौके नहीं मिलते हैं.
इस बारे में पूनम उनियाल ने कहा, वो शॉर्टहैंड की पढ़ाई कर रही हैं लेकिन कॉलेज और हाई स्कूल की शिक्षा पाने के लिए उन्हें घर से काफी दूर जाना पड़ता था. उनके गांव में बेहतर सड़क ना होने के कारण स्कूल-कॉलेज पहुंचना भी बड़ी चुनौती थी.
मानसी कहती हैं, पहाड़ी क्षेत्र में लड़कियों से घरवाले उम्मीदें रखते हैं और उन्हें पढ़ने के लिए भेजते हैं लेकिन एक उम्र के बाद वह सवाल पूछने लगते हैं. ऐसे में लड़कियों के पास कोई रास्ता नहीं बचता. मानसी कहती है कि लड़कियां आगे बढ़ना तो चाहती हैं लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियां आती हैं जिससे उनके पैर रुक जाते हैं.
सिर्फ फौज में ही नौकरी की उम्मीद
उत्तराखंड वो राज्य है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां के हर जिले के हर गांव में कोई ना कोई भारत मां की सेवा कर रहा है. इस राज्य के हर गांव में एक फौजी जन्म लेता है. कई गांव तो ऐसे हैं जहां लगभग हर परिवार में कोई ना कोई भारतीय सेना में रहते हुए देश की सेवा कर रहा है.
उत्तरकाशी से भी बड़ी संख्या में युवा भारतीय सेना या अर्धसैनिक बलों में जाने की ख्वाहिश रखते हैं. इसका दूसरा पहलू यह भी है कि फौज पहाड़ के सबसे ज्यादा युवाओं के लिए रोजगार और अपने सपने को पूरा करने का सहारा है.
इसीलिए कुछ ऐसे लोग हैं जो इन युवाओं के सपनों को पंख देने की कोशिश कर रहे हैं. पूर्व सैनिक राजेश सेमवाल उत्तरकाशी में युवाओं को फौज और अर्धसैनिक बलों और पुलिस में भर्ती के लिए तैयार करते हैं.
जम्मू-कश्मीर से लेकर देश के कई इलाकों में फौज में रहते हुए देश की सेवा करने वाले राजेश सेमवाल अब अपने गृह जिले उत्तरकाशी में लौटकर स्थानीय बच्चों को फौज, अर्धसैनिक बलों और पुलिस में शामिल होने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करते हैं.
कमांडर राजेश सेमवाल के कैंप में आर्थिक रूप से कमजोर और सुदूर इलाकों में रहने वाले परिवारों के बच्चे मुफ्त ट्रेनिंग लेते हैं. इस कैंप में बच्चे फौज और अर्धसैनिक बलों के साथ-साथ पुलिस में भर्ती के तमाम पैमानों पर खरा उतरने के लिए खुद को मजबूत करते हैं और पूरी ट्रेनिंग पर कमांडर राजेश खुद निगरानी करते हैं.
राजेश सेमवाल कहते है कि सेना से निकलने के बाद वह अपने इलाके के बच्चों के सपनों को पूरा करना चाहते थे क्योंकि यहां पर बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है. राजेश कहते हैं कि बच्चों को तैयार करने के लिए इस कैंप को स्थापित करने में उन्होंने कर्ज भी लिया लेकिन वह इसे अपना फर्ज समझते हैं. राजेश के कैंप में ट्रेनिंग पा चुके कई बच्चे भारतीय सेना में भर्ती हो चुके हैं.
उत्तरकाशी के सुदूर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले भारत कुमार कहते हैं, 'हमारे गांव से स्कूल कॉलेज लगभग 5 किलोमीटर दूर है. ऐसे में वहां तक चल कर जाना होता है. अगर जरूरत का सामान लेने के लिए बाजार आना हो तो उसके लिए भी लंबा सफर पैदल ही तय करना पड़ता है या फिर गाड़ी के लिए किराया देना पड़ता है.'
वहीं हैप्पी चौहान ने बताया कि हमारे जो युवा बेरोजगार हैं कि उन्हें अच्छा मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है. अगर पहाड़ के बच्चों को मोटिवेशन मिले तो बच्चे आत्मनिर्भर हो पाएंगे.
वहीं बिट्टू कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में बच्चे ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाते और स्कूल भी हमारे गांव से बहुत दूर है. उत्तरकाशी के युवा अपने रोजगार को लेकर सोच रहे हैं लेकिन हमारे नेता युवाओं पर ध्यान नहीं देते सिर्फ चुनाव के दौरान आते हैं और उसके बाद भूल जाते हैं.
सरकार से नाराजगी
पंकज और राम यमुनोत्री इलाके में एडवेंचर स्पोर्ट्स आयोजित करते हैं और इसी से अपनी आजीविका कमाते हैं. पंकज बताते हैं कि पर्यटन में अथाह संभावनाएं हैं लेकिन सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती है लेकिन उन्होंने ट्रेनिंग लेकर खुद को इस काबिल बनाया है कि वह रोजी-रोटी कमा सकें. साथ ही अपने इलाके के युवाओं को भी वह ट्रेनिंग देकर आत्मनिर्भर बना रहे हैं. राम कहते हैं कि उन्होंने अपने इलाके के कई युवाओं को इस क्षेत्र में उतारा है और उन्हें रोजगार के अवसर दिए हैं.
यमुनोत्री में रहने वाले युवाओं ने भी अपनी समस्याओं और अपनी उम्मीदों को लेकर आज तक से बातचीत की. मुकेश उनियाल कहते हैं कि इंटर के बाद पढ़ाई करने के लिए यमुनोत्री से युवाओं को सीधे देहरादून जाना पड़ता है जबकि हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए भी पहाड़ में 10 किलोमीटर की यात्रा तय करनी पड़ती है.
यमुनोत्री की रहने वाले सतबीर पवार ने बताया कि भविष्य के नाम पर उनका सब कुछ यात्राओं पर ही टिका हुआ है और अगर पर्यटन चला तो उनका जीवन चलेगा. दीपक उनियाल कहते हैं कि हमारे विधायक यही यमुनोत्री के पास के गांव के हैं लेकिन उनके गांव से ही कोई एक भी सरकारी नौकरी में नहीं है.
युवाओं को देश का भविष्य कहा जाता है लेकिन बेहतर मौके और नौकरियां नहीं होने की वजह से उनका भविष्य अंधकार की ओर बढ़ रहा है, बड़े शहरों में या संपन्न परिवारों से आने वाले बच्चों के लिए मौके फिर भी दरवाजा खटखटा देते हैं. लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले युवाओं को उतने अवसर या बराबरी का मौका नहीं मिलता.
ये भी पढ़ें: