उत्तराखंड के पहाड़ों में मौसम जितनी बार बदलता है, उससे ज्यादा बार यहां की सियासत करवट ले लेती है. उत्तराखंड बनने के बाद से हर पांच साल पर सत्ता परिवर्तन होता आ रहा है. यही वजह है कि कांग्रेस अगले साल शुरू में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए हुए हैं. बीजेपी से दो-दो हाथ करने के लिए कांग्रेस ने दस लाख नए सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए गुरुवार से पार्टी प्रदेशभर में सदस्यता अभियान शुरू कर रही है.
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने सदस्यता अभियान के लिए पहले ही एक समिति का गठन कर दिया था, जिसने प्रत्येक बूथ में कम से कम 50 सदस्य बनाने का टारगेट रखा है. प्रदेश कांग्रेस कमेटी सभागार में जिला और महानगर अध्यक्षों की गुरुवार को बैठक के माध्यम से विधिवत रूप से पार्टी के सदस्यता अभियान का आगाज करेगी. विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस ने सभी जिला एवं शहर अध्यक्षों को निर्धारित लक्ष्य दिया है.
कांग्रेस का उत्तराखंड में मुख्य फोकस उन डेढ़ दर्जन विधानसभाओं पर है, जहां 2017 में पार्टी को बहुत कम वोटों के अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा था. ऐसे में कांग्रेस इन सीटों पर अपने सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 2022 के चुनाव में जीत का परचम फहराना चाहती है. इसलिए कांग्रेस उन सीटों को भी खास तवज्जो दे रही है, जहां पर उसे पिछली बार बहुत मामूली वोटों से जीत मिली है. इन सीटों पर अपना सियासी आधार बढ़ाकर मजबूत करने का टारगेट रखा है.
परिवर्तन यात्रा का दूसरा चरण हरिद्वार
विधानसभा चुनाव 2022 से पहले कांग्रेस परिवर्तन यात्रा के जरिए बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने में जुटी है. हरीश रावत ने पंजाब के मामले को छोड़कर अपना पूरा फोकस उत्तराखंड चुनाव पर लगा लिया है. कांग्रेस पहले चरण में कुमाऊं क्षेत्र की 11 विधानसभा सीटों को कवर करने के बाद परिवर्तन यात्रा का दूसरा दौर शुक्रवार को हरिद्वार में हरकी पैड़ी पर गंगा आरती के साथ शुरू करेगी. गणेश गोदियाल के नेतृत्व में शुरू होने वाली यात्रा में पार्टी के तमाम बड़े नेता और कार्यकर्ता भाग लेंगे.
उत्तराखंड की सियासत में क्षेत्रीय और जातीय समीकरण का रोल काफी अहम है. कुमाऊं और गढ़वाल के बीच संतुलन बनाना भी राजनीतिक दलों के लिए काफी अहम होता है. वहीं, जातीय आधार पर देखें तो उत्तराखंड में ठाकुर वोट सबसे ज्यादा है, करीब 35 फीसदी वोटर इस समुदाय से आते हैं. उसके बाद ब्राह्मण वोटर हैं, जो करीब 25 फीसदी तक हैं. ऐसे में कांग्रेस क्षेत्रीय और जातीय संतुलन का भी बैलेंस बनाकर चल रही है.
गढ़वाल और कुमाऊं में संतुलन
उत्तराखंड दो मंडल और 13 जिलों में फैला है. इस पर्वतीय प्रदेश में राज करने के लिए यहां संतुलन बैठाना सियासत की पहली शर्त माना जाता है. सत्ता में कोई भी पार्टी हो कुमाऊं और गढ़वाल मंडल से प्रतिनिधित्व बराबर रखने ही पड़ते हैं. गढ़वाल में बीजेपी की जो पकड़ है, वह कुमाऊं में नहीं है.
बीजेपी अब तक गढ़वाल को ही ज्यादा तवज्जो देती रही है, जब त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया गया उस वक्त भी कुमाऊं रीजन में बीजेपी के फैसले को लेकर नाराजगी थी. इसीलिए कुमाऊं क्षेत्र से पुष्कर धामी को सीएम बनाया गया है. वहीं, कांग्रेस ने प्रदेश संगठन में कुमाऊं और गढ़वाल के बीच बराबर का बैलेंस बनाकर रखा है. उत्तराखंड में 2022 के विधानसभा चुनावों की रणनीति के तौर पर कांग्रेस ने अपनी नई टीम तैयार की है, जिसमें अधिकांश चेहरे तो पुराने ही हैं लेकिन भूमिकाएं नई सौंपी गई हैं.
कांग्रेस ने गुटबाजी रोकने को लेकर किया उपाय
कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव को देखते हुए उत्तराखंड में भी 4 कार्यकारी अध्यक्ष वाला पंजाब का फॉर्मूला अपनाया है. प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के अलावा अब जीत राम, भुवन कापरी, तिलकराज बेहर और रंजीत रावत के पास वर्किंग प्रेसिडेंट का जिम्मा है. पार्टी में गुटबाजी को रोकने की कवायद के लिए सभी दिग्गजों और उनके करीबियों की भूमिका तय की गई है.
कांग्रेस ने सीनियर नेता हरीश रावत को चुनाव प्रचार की कमान दी है. इसके अलावा कैंपेन कमेटी, समन्वय कमेटी, मैनिफेस्टो कमेटी और कोर कमेटी में राज्य सभा सदस्य प्रदीप टम्टा और दिनेश अग्रवाल प्रमुख भूमिका में होंगे. कोर कमेटी के अध्यक्ष कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव होंगे, जबकि पूर्व उत्तराखंड अध्यक्ष किशोर उपाध्याय समन्वय की जिम्मेदारी संभालेंगे. नवप्रभात को मैनिफेस्टो कमेटी का चेयरपर्सन बनाया गया है, तो पूर्व सांसद महेंद्र पाल को वाइस चेयरपर्सन. हालांकि, कांग्रेस ने किसी भी चेहरे को सीएम के तौर पर अभी तक प्रोजेक्ट नहीं किया है, लेकिन हरीश रावत के मनमाफिक चुनाव टीम तैयार की गई है.