उत्तराखंड की सियासत में सैनिकों और उनके परिवारों का वोटर काफी अहम है, क्योंकि लगभग हर घर में एक न एक शख्स सेना में है. ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी सहित सभी पार्टियां सैन्य परिवारों के वोटों को साधने में जुटी है, लेकिन उन्हें चुनावी मैदान में उतारने के लिए बड़ा दिल नहीं दिखा पाती हैं. हालांकि, जब भी मौजी अफसर को चुनाव लड़ने का मौका मिला है तो उन्होंने चौका जरूर लगाया यानि जीत दर्ज की. इसके बावजूद अखिर क्यों सियासी दल सैनिकों को चुनाव लड़ाने का भरोसा नहीं दिखा पाते?
उत्तराखंड में सैनिक वोटर अहम
उत्तराखंड में तकरीबन हर परिवार से एक व्यक्ति सेना में है या फिर उसका सैन्य परिवार से संबंध है. राज्य में सैन्य परिवारों से संबंधित 12 फीसद मतदाता हैं, जो किसी भी राजनीतिक दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. प्रदेश में पूर्व सैनिकों की संख्या ढाई लाख से ज्यादा है.
माना जाता है कि हर पूर्व सैनिक के परिवार में औसतन पांच वोटर होंगे. ऐसे में 12.5 लाख से ज्यादा वोटरों पर सभी की निगाहें हैं. इसके अलावा वर्तमान फौजियों के परिवार भी बड़ी संख्या में हैं. पूर्व फौजी उनके भी मतों पर असर डालते हैं. कई परिवार ऐसे भी हैं, जिनमें पूर्व के साथ ही वर्तमान फौजी भी हैं. ऐसे में विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो कुछ फौजी अफसर ही सूबे की सियासत में इन मतदाताओं के चेहरे बने हुए हैं बाकी नहीं.
कांग्रेस-बीजेपी डाल रहे डोरे
उत्तराखंड में बड़ी संख्या में सैन्य वोटों के देखते हुए पूर्व सैनिकों को सूबे की सियासत में भाजपा, कांग्रेस व अन्य सभी दल अलग अहमियत देते हैं. उनसे जुड़े मुद्दे हर चुनाव में चर्चाओं में होते हैं. लेकिन, राजनीतिक दलों के टिकट बंटवारे में नजर नहीं आते. ऐसे में सैनिकों, पूर्व सैनिकों और उनके परिवार सभी राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक बनकर ही रह गए हैं.
2017 विधानसभा चुनाव में सैनिकों के नाम पर महज गणेश जोशी को छोड़कर कोई भी फौजी अफसर बीजेपी और कांग्रेस से किस्मत आजमा नहीं सका था. इस बार के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कर्नल (सेवानिवृत्त) अजय कोठियाल को सीएम उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा है. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस पर दबाव बढ़ गया है कि वो किन फौजी अफसरों पर दांव लगाते हैं.
फौजी को मिला मौका तो मार दिया चौका
उत्तराखंड की सियासत में जिन फौजी अफसरों या सैन्य पृष्ठभूमि के नेताओं को मुख्यधारा की राजनीति में आने का मौका मिला, उन्होंने सियासी चौका जरूर लगाया है. ज्यादातर कामयाब चेहरे साबित हुए. मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) बीसी खंडूरी को बीजेपी ने आगे कर चुनाव मैदान में उतरी तो सफलता भी मिली. केंद्र के मंत्री बनने से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तक रहे.
कांग्रेस के दिग्गज नेता टीपीएस रावत भी सैन्य अफसर रहे हैं. ले. जनरल (सेवानिवृत्त) टीपीएस रावत कांग्रेस से दो बार विधायक चुनने के साथ ही वह प्रदेश में कैबिनेट मंत्री भी रहे. इसके अलावा गढ़वाल सांसद भी रहे और तीसरा नाम गणेश जोशी का आता है जो कि सेना में सेवारत रहे हैं. वर्तमान में बीजेपी सरकार में सैनिक कल्याण मंत्री हैं. इसके अलावा अन्य नाम नजर नहीं आते हैं. ऐसे में देखना है कि इस बार कांग्रेस, बीजेपी, आम आदमी पार्टी और बसपा किस फौजी अफसर को चुनावी मैदान में उतारती है.