उत्तराखंड की राजनीति में कांग्रेस बनाम बीजेपी का ही मुकाबला देखने को मिलता है. एक पार्टी हारती है तो दूसरी सत्ता पर विराजमान हो जाती है. लेकिन इस बार पहाड़ी राज्य के लिए तीसरा विकल्प बनने की कोशिश कर रही है आम आदमी पार्टी. AAP के राष्ट्रीय संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड फतेह करने का पूरा रोडमैप तैयार कर लिया है. फ्री बिजली, अच्छी शिक्षा जैसे मुद्दे तो वे हर चुनाव में उठा रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड की राजनीति में उन्होंने राष्ट्रवाद और हिंदुत्ववाद को भी अपने प्लान का हिस्सा बनाया है. एक तरफ उन्होंने कर्नल अजय कोठियाल को अपना सीएम उम्मीदवार बना राष्ट्रवाद मुद्दे पर लीड लेने की कोशिश की है तो वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड को पूरी दुनिया के हिंदुओं के लिए आध्यात्मिक राजधानी बनाने का वादा कर बड़ा 'हिंदुत्व कार्ड' खेल दिया है.
अब आम आदमी पार्टी उत्तराखंड के चुनाव में उस रणनीति पर अमल कर रही है जिसके दम पर भाजपा ने पूरे देश में अपना विस्तार किया है और कई राज्यों में सरकार भी बनाई है. ऐसे में इस बार के उत्तराखंड चुनाव में दो पार्टियां समान विचारधाराओं का समावेश लेकर जनता के बीच आने वाली हैं. सवाल उठने लगा है कि क्या बीजेपी और आप के लिए उत्तराखंड में लोकल से ऊपर राष्ट्रवाद-हिंदुत्ववाद?
आम आदमी पार्टी और उसका राष्ट्रवाद
आम आदमी पार्टी की बात करें तो उनकी तरफ से पिछले साल अगस्त महीने में ही ऐलान कर दिया गया था कि उनके सीएम उम्मीदवार कर्नल कोठियाल होने वाले हैं. तब अरविंद केजरीवाल ने दावा किया था कि उनके सीएम उम्मीदवार का चयन पार्टी ने नहीं बल्कि उत्तराखंड की जनता ने किया. यहां तक कहा गया कि अब उत्तराखंड की जनता अपने लिए एक 'देशभक्त फौजी' चाहती है. पिछली सरकारों ने उन्हें सिर्फ लूटा था, अब राज्य का नवनिर्माण करने के लिए असल फौजी की जरूरत है. अब केजरीवाल के इस एक बयान ने पार्टी के लिए चुनाव का पूरा नैरेटिव तैयार कर दिया. पिछले साल ही तय हो गया था कि शिक्षा-अस्पताल के अलावा इस बार बीजेपी की पिच पर बीजेपी को ही मात देने की तैयारी रहेगी.
यहां पर ये भी जानना जरूरी हो जाता है कि उत्तराखंड से सबसे ज्यादा फौजियों की भर्ती होती है. इस पहाड़ी राज्य में फौजियों का धर्म-जाति से ऊपर उठकर भी एक महत्वपूर्ण वोटबैंक है. इस बार आम आदमी पार्टी अपने कई वादों के जरिए इसे भी अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है. सीएम अरविंद केजरीवाल उत्तराखंड की धरती पर वादा कर गए हैं कि अगर राज्य में उनकी सरकार बनती है तो रिटायर होने के बाद हर फौजी को सरकारी नौकरी दी जाएगी. सभी को उत्तराखंड के नवनिर्माण में हिस्सेदार बनाया जाएगा. यहां तक कहा गया है कि अगर उत्तराखंड का कोई भी फौजी शहीद होता है तो खुद कर्नल अजय कोठियाल परिवार के घर एक करोड़ का चेक देकर आएंगे.
कर्नल कोठियाल भी लोगों से भावुक अपील कर रहे हैं. उन्होंने कहा है कि अगर मैं आज सेना में होता तो ब्रिगेडियर बन गया होता. लेकिन मुझे आप लोगों के लिए राजनीति करनी थी. मुझे फेल होने मत देना. आम आदमी पार्टी को सिर्फ 6 महीने का वक्त दिया जाए, जैसे आर्मी की शार्ट सर्विस कमीशन में दिया जाता है, हम विकास का आदर्श मॉडल बनाकर दिखाएंगे. वैसे आप का ये 'राष्ट्रवादी मॉडल' कई महीने पहले दिल्ली से ही शुरू हो चुका है. पहले सभी सरकारी स्कूलों में देशभक्ति पाठ्यक्रम को लागू किया गया तो वहीं बाद में दिल्ली की 500 जगहों पर तिरंगे की स्थापना का ऐलान कर दिया गया.
बीजेपी का राष्ट्रवाद कैसा है?
अब अगर आम आदमी पार्टी ने चुनावी रण में एक कर्नल को उतार राष्ट्रवाद की बड़ी लकीर खींचने का काम किया है, तो बीजेपी भी अपने पुराने कामों को गिना खुद को सबसे बड़ी 'राष्ट्रवादी पार्टी' बता रही है. चुनाव चाहे लोकसभा का हो या फिर विधानसभा का, गृह मंत्री अमित शाह से लेकर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा तक, शायद ही कोई मौका रहे जब चुनावी प्रचार के दौरान सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक या फिर कश्मीर से हटा अनुच्छेद 370 का जिक्र ना आता हो. ये वो मुद्दे हैं जो बीजेपी हर चुनाव में उठाती भी है और राष्ट्रीय सुरक्षा पर जोर देकर लोगों का वोट पाती है.
इस बार भी बीजेपी की कुछ ऐसी ही तैयारी दिख रही है. अगर आप ने एक कर्नल को सीएम उम्मीदवार बनाया है तो बीजेपी ने भी देश के पहले स्वर्गीय सीडीएस बिपिन रावत के भाई विजय रावत को पार्टी में शामिल कर लिया है. इसके अलावा पिछले साल उत्तराखंड के बड़े नेता अजय भट्ट को नरेंद्र मोदी की सरकार में शामिल किया था. मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान उन्हें केंद्र में रक्षा राज्यमंत्री की जिम्मेदारी दे दी गई थी. अब वो पद संभालने के बाद से उन्हें कई पूर्व सैनिकों से बात करते हुए देखा गया है. कई कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं, उत्तराखंड में हो रहे हैं, दिल्ली में हो रहे हैं. पूरा प्रयास है कि सैनिकों का वोट बैंक बीजेपी से ना छिटक जाए.
अब जिस वोट बैंक पर दोनों आम आदमी पार्टी और भाजपा की नजर है, उसके सियासी मायने भी समझ लेते हैं. आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में पूर्व सैनिकों की संख्या ढाई लाख से भी ज्यादा है. वहीं अगर उनके परिवार के सदस्य को भी जोड़ लिया जाए तो आंकड़ा साढ़े बारह लाख से ज्यादा बन जाता है. पहाड़ी राज्य में वर्तमान फौजियों की भी बड़ी संख्या है, उनके परिवार का भी अहम वोट रहता है. इसी वजह से दोनों बीजेपी और आप इसे साधने में लगी पड़ी हैं. उन्हें इस बात का अंदाजा है कि कई सीटों पर हार-जीत का फैसला ये 'फौजी वोटर' कर सकता है.
हिंदुत्व के नाम पर आप बनाम बीजेपी
राष्ट्रवाद से आगे बढ़ें तो चुनावी मैदान में इस बार मंदिर पॉलिटिक्स और हिंदुत्व का भी पूरा जोर देखने को मिल रहा है. उत्तराखंड में नया विकल्प बनने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी ने ही पिछले साल सबसे पहले इस दिशा में कदम बढ़ा दिए थे. देहरादून की धरती से उन्होंने कहा था कि हम उत्तराखंड को देवभूमि कहते हैं. यहां इतने तीर्थ स्थान हैं, कितने देवी देवताओं का वास है यहां. पूरी दुनिया से हिन्दू यहां श्रद्धा के साथ दर्शन करने आते हैं. ऐसे में हम उत्तराखंड को हिंदुओं की आध्यात्मिक राजधानी बनाएंगे तो वहीं दिल्ली प्रशासनिक राजधानी रहेगी. केजरीवाल ने तर्क दिया कि ऐसा होने पर उत्तराखंड में श्रद्धालुओं की संख्या में 10 गुना तक बढ़ जाएगी और स्थानीय निवासियों को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे.
अब अगर केजरीवाल आध्यात्मिक राजधानी का सपना दिखा रहे हैं तो बीजेपी भी अपने विकास कार्य गिनवाने में पीछे नहीं है. पार्टी का हर कार्यकर्ता, हर बड़ा नेता कुछ पहलुओं पर लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा है. पिछले साल नवंबर में पीएम नरेंद्र मोदी केदारनाथ दौरे पर गए थे. वहां पर उन्होंने आदि शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया था. इसके अलावा दावा किया गया कि अकेले केदारनाथ में पुनर्निमाण के लिहाज से 400 करोड़ के प्रोजेक्ट्स पर काम किया जा रहा है. बद्रीनाथ के लिए भी 250 करोड़ का मास्टरप्लान अप्रूव करवा दिया गया है. ऐसे में इस रेस में बीजेपी भी पीछे नहीं चल रही है.
चुनाव के इस बदलते ट्रेंड के बारे में राजनीतिक जानकर मानते हैं कि जैसे-जैसे देश की राजनीति बदली है, उसका असर उत्तराखंड में भी देखने को मिला है. हिंदी बेल्ट वाले इलाकों में ये फर्क और ज्यादा साफ दिखा है. हर दल खुद को इस बदलते ट्रेंड के साथ बदल रहा है.अब पलायन, भ्रष्टाचार, ड्रग्स जैसे लोकल मुद्दों के बीच उत्तराखंड चुनाव में राष्ट्रवाद और हिंदुत्तवाद कितना असरदार रहता है, कौन सी पार्टी किसे मात देती है, ये 10 मार्च को नतीजों से स्पष्ट हो जाएगा.