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पंजाब में बीजेपी से शिरोमणि अकाली दल का नाता भले ही टूट गया हो लेकिन उत्तराखंड के मिनी पंजाब में अभी भी शिरोमणि अकाली दल बीजेपी को समर्थन दे रही है. उत्तराखंड में शिरोमणि अकाली के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में हरभजन सिंह चीमा हैं जिनका काशीपुर में चार बार विधानसभा चुनाव में कब्जा रहा है. उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से अब तक 4 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. चारों बार हरभजन सिंह चीमा ने काशीपुर विधानसभा सीट पर जीत हासिल की है. इस बार भी पार्टी ने हरभजन सिंह चीमा के पुत्र त्रिलोक सिंह चीमा पर भरोसा जताया है.
कैसे अब अकाली दल का गढ़ बन गया काशीपुर
उधम सिंह नगर के दो विधानसभा बाजपुर ओर काशीपुर में सबसे ज्यादा पंजाबी (सिख) समुदाय के लोग रहते हैं. जब पाकिस्तान भारत से अलग हुआ था तब पंजाब से विस्थापित सिख समुदाय के अधिकतर लोग तराई के इन दो क्षेत्रो में रह गए थे. उसी समय से लगातार सिख समुदाय की संख्या यहां अच्छी खासी है. यहां ज्यादातर पंजाबी ही बोली जाती है,जिससे ये क्षेत्र अब मिनी पंजाब के नाम से जाने जाना लगा है.
काशीपुर विधानसभा का इतिहास
उधम सिंह नगर की विधानसभा काशीपुर का पुराना नाम उज्जैनी तथा यहां से बहने वाली ढेला नदी का नाम सुवर्णभद्रा था. हर्ष काल में इसे गोविषाण कहा जाने लगा. बाद में काशीनाथ अधिकारी ने तराई क्षेत्र के अधिकारी का महल रुद्रपुर से यहां स्थानांतरित किया, जिसके बाद उनके नाम पर इसे काशीपुर कहा जाने लगा. गोविषाण शब्द दो शब्दों गो (गाय) और विषाण (सींग) से बना है. इसका अर्थ गाय का सींग है. प्राचीन समय में गोविषाण को तत्कालीन समय की राजधानी व समृद्ध नगर कहा गया है.
उत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर जनपद में स्थित एक महत्वपूर्ण पौराणिक एवं औद्योगिक शहर है. 2011 की जनगणना के अनुसार. इस नगर की कुल जनसंख्या 1,21,623 है, जबकि काशीपुर तहसील की कुल जनसंख्या 2,83,136 है. इस प्रकार जनसंख्या की दृष्टि से काशीपुर कुमाऊं मंडल में तीसरा और उत्तराखण्ड में छठी सबसे बड़ी विधानसभा है. पश्चिमी भाग में स्थित यह नगर नई दिल्ली से लगभग 240 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में और उत्तराखखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून से लगभग 200 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है.
काशीपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तराखंड के 70 विधान क्षेत्रों में से एक है. उधमसिंह नगर जिले में काशीपुर निर्वाचन क्षेत्र ऐतिहासिक विधानसभा है. 2000 में राज्य विभाजन के बाद इस क्षेत्र में 2002 में विधानसभा चुनाव हुए. उधमसिंह नगर जिले में स्थित यह निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है. 2012 में इस क्षेत्र में कुल 117,999 मतदाता थे. विधानसभा में राज्य विभाजन वे बाद से अब तक 4 बार चुनाव हो चुके हैं.
परिसीमन के बाद काशीपुर विधानसभा में पहली बार उत्तराखंड शिरोमणि अकाली दल के एक मात्र हरभजन सिंह चीमा विधयाक बने जिन्हें बीजेपी का समर्थन मिला था. दूसरी, तीसरी और चौथी बार भी हरभजन सिंह चीमा विधायक रहे. इससे पहले पूरा इलाका बाजपुर, काशीपुर और जसपुर एक ही विधानसभा में था. बाद में जसपुर, काशीपुर और बाजपुर का इलाका एक अलग विधानसभा का हिस्सा बन गया.
हालांकि, काशीपुर विधानसभा सीट पहले से ही वजूद में थी, जहां फरवरी 2002 में बीजेपी का कब्जा रहा और कांग्रेस के दिग्गज कहे जाने वाले केसी सिंह बाबा को हार का मुंह देखना पड़ा है. उसके बाद फिर एक बार बीजीपी ने इस सीट से जीत हांसिल की. इस जीत में बहुचर्चित एसपी नेता मोहम्मद जुबेर को हरा कर एक बार फिर से हरभजन सिंह चीमा ने जीत हासिल की थी.
2012 में हुए विधान सभा चुनाव में काशीपुर सीट अनारक्षित थी जिसमें कांग्रेस से मोहन जोशी ओर बीजीपी से हरभजन सिंह चीमा चुनाव मैदान में उतरे जहां अकाली दल बीजेपी समर्पित से हरभजन सिंह चीमा ने जीत हासिल की. सूबे में एक मात्र शिरोमणि अकाली दल के नेता हैं जिन्हें काशीपुर विधानसभा सीट से लगातार 4 बार जीत हासिल हुई है.
मायावती ने क्यों बनाया था उधम सिंह नगर?
उधमसिंह नगर पहले नैनीताल जिले में था, लेकिन अक्टूबर 1995 में इसे अलग जिला बना दिया गया. इस जिले का नाम उधम सिंह के नाम पर रखा गया है. उधम सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे. जलियांवाला बाग हत्याकांड के मुख्य अंग्रेज अफसर जनरल डायर की हत्या इन्होंने ही की थी. इस जिले को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने सिख वोटों को साधने के उद्देश्य से बनवाया था.
कभी कांग्रेस का गढ़ था, नारायण दत्त जैसे दिग्गज नेता क्यों हारे?
अनिरुद्ध निसाबन इतिहासकार (वरिष्ठ पत्रकार) बताते हैं कि 1948 में भारत से पाकिस्तान अलग होने के बाद केंद्र के तत्कालीन गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने तराई में जमीनें अलॉट कर दी थीं, जब से अब तक भारी संख्या में सिख समुदाय इस क्षेत्र में निवास करते चले आ रहे हैं. 1952 में काशीपुर विधानसभा जिले की एक मात्र विधानसभा थी. तब काशीपुर एक कांग्रेस का गढ़ था लेकिन 1977 में एमरजेंसी के दौरान लोगों के साथ जोर जबरदस्ती और 1991 में अयोध्या में श्री राम मंदिर मामले को लेकर राम लहर चली जिस दौरान नैनीताल बहेड़ी लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस से नारायण दत्त तिवारी और बीजेपी से बलराज पासी चुनाव मैदान में थे. इसी दौरान कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी को बुरी तरह से हार का मुंह देखना पड़ा था.