सरोवर नगरी नैनीताल के उत्तरी किनारे पर स्थित मां नयना देवी मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है और इसी कारण यहां देवी के चमत्कार देखने को मिलते हैं. नैना देवी मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और अपनी मनोकामनाएं उनके समक्ष रखते हैं. मान्यता है कि यहां देवी के दर्शन मात्र से ही लोगों की समस्याएं दूर हो जाती है.
यहां के लोग मां नयना को अपनी आराध्य देवी के रूप में पूजते हैं और कोई भी शुभ काम करने से पहले मां के दर्शन जरूर करते हैं. चाहे कोई प्रशासनिक अधिकारी हो, राजनेता हो, वह अगर नैनीताल जनपद में नियुक्त होता है तो पहले मां नयना देवी के दर्शन करता है. कोई शुभ काम हो, कोई इम्तिहान हो या राजनेता चुनाव में जाने से पहले, अपना नामांकन करने से पहले या चुनाव के बाद पद ग्रहण करने से पहले हर कोई व्यक्ति मां नैना से आशीर्वाद लेना नहीं भूलता.
उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियां चल रही हैं. यहां 14 फरवरी को मतदान है. चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों के नेता नामांकन कर रहे हैं. नैनीताल शहर में विभिन्न पार्टियों से चुनाव लड़ रहे राजनेता मां के दरबार में माथा टेक कर मां का आशीर्वाद ले रहे हैं. मान्यता है कि मां सती के नयन नैनी झील में गिरने के बाद मां सती के शक्तिरूप की पूजा के उद्देश्य से ही नयना देवी मंदिर की स्थापना हुई. यह मंदिर नेपाल की पैगोड़ा और गौथिक शैली का समावेश है.
शहरवासियों समेत लोगों की मंदिर से जुड़ी आस्था का अंदाजा इसी से लगया जा सकता है कि जो भी देशी-विदेशी सैलानी नैनीताल घूमने आता है, मां के दर्शन किए बिना नहीं लौटता. मान्यता है कि मां नयना देवी सभी भक्तजनों की मनोकामना पूरी करती हैं. वहीं यहां मांगी जाने वाली हर मुराद भी पूरी होती हैं. मंदिर के अंदर नैना देवी के संग भगवान गणेश जी और मां काली की भी मूर्तियां हैं.
मंदिर का वर्तमान स्वरुप
नैनीताल में बोट हाउस क्लब और पंत पार्क के निकट मंदिर की स्थापना हुई थी. 1880 में शहर में आए भयंकर भूस्खलन से मंदिर ध्वस्त हो गया था. बताया जाता है कि मां नयना देवी मंदिर ने नगर के प्रमुख व्यवसायी मोती राम साह के पुत्र अमर नाथ साह को स्वप्न में उस स्थान का पता बताया जहां उनकी मूर्ति दबी पड़ी थी. अमरनाथ शाह ने अपने मित्रों की मदद से देवी की मूर्ति का उद्धार किया और नए सिरे से मंदिर का निर्माण कराया गया. यह मंदिर 1883 में बनकर तैयार हो गया.
नयना देवी की कई कहानियां...
स्कन्द पुराण के 'मानस खंड' में नैनीताल को त्रिऋषि सरोवर अर्थात तीन साधुवों अत्रि, पुलस्क तथा पुलक की भूमि के रूप में दर्शाया गया है. मान्यता है कि यह तीनों ऋषि यहां पर तपस्या करने आये थे, परंतु उन्हें यहां पर उन्हें पीने का पानी नहीं मिला. प्यास मिटाने के लिए वे अपने तप के बल पर तिब्बत स्थित पवित्र मानसरोवर झील के जल को यहां लाये जिसके बाद ये झील बनी. तब से आज तक यहां पानी की कभी कमी नहीं हुई.
दूसरे महत्वपूर्ण पौराणिक संदर्भ के अनुसार नैनीताल शक्तिपीठों में से एक है. इन शक्ति पीठों का निर्माण सती के विभिन्न अंगो के गिरने से हुआ है जब भगवान शिव सती को जली हुई अवस्था में ले जा रहे थे. मान्यता है कि इस स्थान पर सती की बायीं आंख (नयन) गिरी थी जिसने नैनीताल की संरक्षक देवी का रूप लिया, इसीलिये इसका नाम नयन-ताल पडा जिसे बाद में नैनीताल के नाम से जाना जाने लगा. इस तालाब के उत्तरी छोर पर नैना देवी का मंदिर है, जहां पर देवी शक्ति की पूजा होती है.
कहते हैं कि माता पार्वती के पिता दक्ष प्रजापति ने कनखल हरिद्वार में यज्ञ किया जिसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. माता पार्वती ने जब देखा कि उनके पति का अपमान हुआ है तो यह देखकर वह दुखी हुई और यज्ञ की अग्नि में कूद गईं. फिर भगवान शिव ने आकर गौरव देवी का शरीर अपने हाथों में उठाया और वह ब्रह्मांड में घूमने लगे. शिव का क्रोध देखकर सारे देवी-देवता भयभीत हो गए कि शिव के क्रोध से पूरा ब्रह्मांड तहस-नहस हो जाएगा. तब विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से मां पार्वती के शरीर को खंड-खंड कर दिया. जहां-जहां माता के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ बनते गए. यहां पर मां पार्वती के नयन गिरे और यहां नयना देवी की स्थापना हुई.
यहां गिरा था देवी उमा का नयन
पौराणिक कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था. शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था. एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहां यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया. उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुंचीं. जब उसने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी. यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊंगी. आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल स्वरुप यज्ञ के हवन कुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूं.
जब भगवान शिव को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट कर डाला. सभी देवी-देवता शिव के इस रौद्र रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें, इसलिए देवी-देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध के शान्त किया. दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा मांगी. शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया, परन्तु सती के जले हुए शरीर को देखकर उन्हें क्रोध आ गया और सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश में भ्रमण करना शुरू कर दिया. ऐसी स्थिति में जहां-जहां शरीर के अंग गिरे, वहां-वहां शक्ति पीठ हो गए. जहां देवी का नयन गिरा वहां उमा यानी नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया. आज का नैनीताल वही स्थान है, जहां देवी के नयन गिरे थे. नयनों की अश्रुधार ने यहां ताल का रूप ले लिया. तब से निरन्तर यहां पर शिव की पत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है.
कहा जाता है कि किसी जमाने में सूर्यास्त के बाद नैनी झील के किनारे कोई भी व्यक्ति रुक नहीं सकता था जिसके लिए यहां के थोक दार नर सिंह बिष्ट ने कठोर नियम बनाए थे, अंग्रेजों ने भी सरोवर नगरी के संरक्षण को काफी प्रयास किए थे.