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Yamunotri Assembly Seat: बीजेपी-कांग्रेस नहीं, प्रत्याशी के दम पर तय होगी हार जीत

यमुनोत्री विधानसभा सीट: 2022 के चुनाव में भी इस सीट का काफी महत्व है. क्योंकि पूरे जिले में यही एक मात्र सीट है, जहां राष्ट्रीय दलों के नाम पर वोट नहीं पड़ते हैं. बल्कि व्यक्तित्व के आधार पर वोट पड़ते हैं. इसलिए राष्ट्रीय पार्टियां, इस सीट पर किस्मत आजमाने तक ही सीमित रह जाती हैं.

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Uttarakhand Assembly Election 2022( Yamunotri Assembly Seat)
Uttarakhand Assembly Election 2022( Yamunotri Assembly Seat)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पार्टी नहीं प्रत्याशी रखता है मायने
  • कैंडिडेट अपने दम पर जीतता है चुनाव

यमुनोत्री विधान सभा सीट, यमुना नदी के उद्गम से जुड़ी और जिला उत्त्तरकाशी में यमुनाघाटी के नाम से जानी जाती है. हालांकि गंगा घाटी का कुछ हिस्सा भी इस विधान सभा से जुड़ा है. समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विश्व प्रसिद्ध धाम से जुड़ी ये विधानसभा राजनीतिक लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण है. इस सीट से राजशाही का इतिहास जुड़ा है. क्योंकि ये वही विधानसभा है जहां रवांई परगने के ग्रामीण, बड़ी संख्या में राजशाही की ओर से 30 मई 1930 को यमुना नदी के किनारे तिलाड़ी मैदान में इकट्ठा हुए थे. ये सभी लोग वन सीमा में ग्रामीणों की उपेक्षा के विरोध में एकत्र हुए थे. 

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अपने हक हुकूक सुनिश्चित करने की योजना पर विचार हो ही रहा था कि टिहरी राजा के वजीर चक्रधर जुयाल के निर्देश पर बंदूकों से लैस सैनिकों ने तिलाड़ी मैदान में जुटे ग्रामीणों पर फायरिंग शुरू कर दी. कुछ गोलियों के शिकार बने तो कई अपनी जान बचाने के लिए यमुना के तेज प्रवाह में कूद गए. लेकिन बच ना सके. इसीलिए इस विधान सभा के तिलाड़ी कांड को मिनी जलियांवाला कांड भी कहते हैं. 

इस विधानसभा से जुड़े अधिकांश गांव के ग्रामीणों के कमाई का जरिया पर्यटन व्यवसाय ही है. क्योंकि यमुनोत्री धाम की वजह से यात्रा काल मे यहां लाखों श्रद्धालुओं की आमद होती है. लिहाजा घोड़ा, खच्चर, डंडी, कंडी, ढाबे ,होटल्स आदि ही यहां का प्रमुख व्यवसाय है. साथ ही अगर गांवों की बात करें तो गांव में नकदी फसल, आलू, रामदाना, चौलाई, सेब, टमाटर आदि का उत्पादन बहुतायत में होता है. जिसे मंडियों में बेच कर लोग अपनी कमाई करते हैं. 

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2022 के चुनाव में भी इस सीट का काफी महत्व है. क्योंकि पूरे जिले में यही एक मात्र सीट है, जहां राष्ट्रीय दलों के नाम पर वोट नहीं पड़ते हैं. बल्कि व्यक्तित्व के आधार पर वोट पड़ते हैं. इसलिए राष्ट्रीय पार्टियां, इस सीट पर किस्मत आजमाने तक ही सीमित रह जाती हैं.

राजनीतिक पृष्ठभूमि
इस सीट पर अब तक 04 विधान सभा चुनाव हो चुके हैं. 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल के प्रीतम पंवार ने कांग्रेस के प्रत्याशी केदार सिंह को 2485 वोट से हारा कर जीत हासिल की. जबकि 2007 में कांग्रेस प्रत्याशी केदार सिंह ने उत्तराखण्ड क्रांति दल के प्रीतम को 3328 वोटों से हराया. यही सिलसिला आगे भी चला. वर्ष 2012 के इलेक्शन में प्रीतम ने कांग्रेस के प्रत्याशी केदार सिंह को 2596 वोटों के अंतर से हरा कर जीत हासिल की.

वर्ष 2017 में केदार सिंह रावत, कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए और चुनाव लड़े. उन्होंने अपने निकटम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के संजय डोभाल को 5960 वोटों से हराया. जहां तक सीट की बात की जाय तो यमुनोत्री विधानसभा के वोटर्स व्यक्तिवादी सोच पर ज्यादा विश्वास रखने वाले प्रतीत होते हैं. वर्ष 2002 से 2017 तक के आंकड़ों पर यदि गौर किया जाय तो प्रीतम पंवार और केदार सिंह रावत पर ही जनता ने भरोसा जताया था. 

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इसका प्रमुख कारण है कि ये विधान सभा गंगा घाटी के कुछ हिस्सों और यमुनावेली के अधिकांश गांव से मिल कर बनी है. अगर बात करें उत्तराखंड क्रांतिदल के निर्दलीय प्रत्याशी प्रीतम पंवार की तो इनका प्रभाव गंगा घाटी के चिन्यालीसौड़ विकास खण्ड ओर डुंडा विकास खंड के कुछ गांव में अधिक माना जाता है. जबकि भाजपा के केदार सिंह रावत के बड़े भाई स्वर्गीय राजेन्द्र सिंह रावत चकबंदी प्रणेता के रूप में यमुनाघाटी में जाने जाते हैं.

स्वर्गीय राजेन्द्र सिंह रावत, अच्छी छवि के नेता माने जाते थे. उन्हीं की विरासत को उनके भाई केदार सिंह रावत आगे बढ़ाते चल रहे हैं. जिस वजह  से केदार सिंह जनता के बीच लोकप्रिय नेता के रूप में जाने जाते हैं. यमुनोत्री विधानसभा सीट पर वोटिंग का पैटर्न व्यक्तिवादी सोच पर आधारित है. इस छोटी सी विधानसभा में वोटर, प्रत्याशी के आधार पर ही वोट देने में विश्वास करते हैं. जिसका उदाहरण पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम में भी देखने को मिला. केदार सिंह कांग्रेस में थे तो जीते और केदार सिंह भाजपा में थे तो भी जीते. यही उत्तराखंड क्रांतिदल के तत्कालीन (अब निर्दलीय) प्रत्याशी प्रीतम पंवार का भी परिणाम रहा है.

सामाजिक ताना बाना
यमुनोत्री विधानसभा सीट पर बहुसंख्य मतदाता हिन्दू ही हैं. यहां कुल मतदाता 72,724 हैं. इनमें पुरुष मतदाता-35,366 और महिला मतदाता-37,358
हैं. वहीं अगर जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर ठाकुर मतदाता -55%, ब्राह्मण मतदाता-18%, अनुसूचित जाति-27% और मुस्लिम-0.01% हैं. इस सीट पर धर्म के आधार पर वोटिंग नही होती है. लेकिन क्षेत्रवाद का बोलबाला अधिक होता है. 

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और पढ़ें- गोण्डा विधानसभा सीटः कभी रहा कांग्रेस का बोलबाला, अभी बीजेपी का कब्जा, 22 में किसको मिलेगी जीत

2017 का जनादेश
2017 में इस विधानसभा में लगभग 60 फीसद वोटिंग हुई थी. जिसमें भाजपा के केदार सिंह रावत ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस उम्मीदवार संजय डोभाल को हराया था. इस चुनाव में भाजपा के केदार सिंह को 19,800 मत मिले. जबकि कांग्रेस के संजय डोभाल को 13,840 मत मिले.  

विधायक का रिपोर्ट कार्ड
2 मार्च 1960 को जन्मे वर्तमान विधायक केदार सिंह रावत, भाजपा के कद्दावर नेता माने जाते हैं. यमुनाघाटी के नारायण पूरी में केदार सिंह रावत का पैतृक गांव है और इसी गांव से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद केदार सिंह ने देहरादून से बीएससी, एलएलबी की थी. केदार सिंह रावत की पत्नी पेशे से अध्यापिका हैं. इनकी दो संतान हैं. एक पुत्र पेशे से एडवोकेट हैं और एक विवाहिता पुत्री डॉक्टर हैं. 

संपत्ति की अगर बात की जाय तो केदार सिंह की कुल पैतृक संपत्ति 1 करोड़ और अन्य चल अचल संपत्ति मिला कर कुल 03 करोड़ की संपत्ति है. राजनीतिक जीवन की शुरुआत केदार सिंह ने छात्र जीवन से ही की. 1978 में डीएवी कॉलेज देहरादून में विज्ञान संकाय के महासचिव का चुनाव जीते. उसके बाद वर्ष 1980 में अपने भाई स्वर्गीय राजेन्द्र सिंह रावत के सानिध्य में भाजपा में शामिल हुए. 1984 में भाजपा के जिला महामंत्री बने. 1993 में भाजपा के जिलाध्यक्ष बनने के साथ ही लगातार 4 बार कॉपरेटिव बैंक के अध्यक्ष भी रहे.

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अलग राज्य उत्तराखण्ड  की कल्पना भी केदार सिंह रावत और इनके भाई स्वर्गीय राजेन्द्र सिंह रावत द्वारा ही की गई थी. दोनों भाइयों ने भाजपा के बैनर तले 1987 में यमुनोत्री धाम में अपनी 08 सूत्रीय मांगों के साथ आंदोलन शुरू किया. जिसमें पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग सबसे आगे थी. जो कि लगभग 05 माह तक चली. तत्कालीन उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने यमुनोत्री धाम पंहुच कर आंदोलन खत्म करवाया था.   

युवाओं और बुजुर्गों के बीच में विधायक की अच्छी पकड़ देखने को मिलती है. एक वाकया काफी वायरल है कि कुछ युवा छात्र संगठन के चुनाव की मदद मांगने इनके पास गए और शराब की मांग करने लगे. विधायक द्वारा युवाओं को जमकर फटकार लगाई गई कि एक अभिभावक के रूप में वो मदद करना चाहते है किंतु अपने बच्चों को शराबी नहीं बना सकते हैं. हालांकि इससे युवा नाराज जरूर हुए किन्तु जनता के बीच अच्छा संदेश गया. 

वहीं विधायक द्वारा अपने विधानसभा क्षेत्र में गांवों को सड़क से जोड़ने के लिए सड़कें स्वीकृत कराई गईं. 42 सड़कें गांवों तक जा रही हैं जबकि 05 सड़कें अभी प्रस्तावित हैं. पूरे प्रदेश में यमुनोत्री विधानसभा ही एक मात्र विधानसभा है, जहां सबसे अधिक सड़कें गांव को जोड़ रही हैं. 

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विधायक निधि में अब तक चार साल में विधायक द्वारा लगभग 14 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं. वहीं अगर बात की जाय 2017 में हारे प्रत्याशी की तो कांग्रेस के युवा प्रत्याशी संजय डोभाल का भी इस सीट पर खासा दबदबा रहा है. क्योंकि संजय डोभाल युवाओं के बीच में खासे चर्चित हैं. अपने प्रथम विधान सभा चुनाव में ही इन्होंने भाजपा के कद्दावर नेता केदार सिंह रावत को खासी टक्कर देकर 13,840 मत प्राप्त किए थे. इस बार चुनाव में जोरदार मुकाबला देखने की उम्मीद है.

 

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