दिलीप कुमार के निधन से देशभर में शोक की लहर है. एक्टर ने 98 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. 55 साल के करीब उनका बॉलीवुड करियर रहा. इस दौरान उन्होंने 65 के करीब फिल्में कीं. अपनी नेचुरल एक्टिंग और शानदार एक्सप्रेशन्स के दमपर एक्टर ने एक अलग ही मुकाम हासिल किया. उन्होंने आने वाली जनरेशन को भी अपने काम से प्रभावित किया. दिलीप कुमार ने अपनी ऑटोबायोग्राफी लिखी थी. इसका टाइटल दिलीप कुमार- द सब्सटेंस एंड द शैडो है. इसमें उन्होंने अपनी निजी जिंदगी और काम से जुड़ी अनसुनी बातें शेयर की थीं. उनके निधन पर बता रहे हैं एक्टर की जुबानी उनके जीवन की कुछ अनसुनी कहानी.
पहली फिल्म- मेरी पहली फिल्म थी ज्वार भाटा. मैं इसकी स्क्रीनिंग के लिए हॉल में पहुंचा. जब खुद को पर्दे पर देखा, तो एक सवाल पूछा. अगर आगे भी मुझे काम मिलता रहा तो क्या मैं ऐसे ही एक्टिंग करूंगा. जवाब था, नहीं. मुझे महसूस हुआ कि एक्टिंग करना इतना आसान काम नहीं है. अगर मुझे ये करियर जारी रखना है, तो अपना तरीका ईजाद करना होगा. तब अगला सवाल सामने आया, कैसे.
मधुबाला से प्यार- क्या मुझे मधुबाला से प्यार था, जैसा कि उस वक्त के अखबार और मैगजीन बार बार रिपोर्ट करते थे. हां, मैं उनकी तरफ आकर्षित था. निस्संदेह वह बहुत अच्छी एक्ट्रेस थीं. उनमें एक औरत के तौर पर भी ऐसी बहुत सी खूबियां थीं, जो मेरी उस वक्त की चाह के करीब थीं. अजीब सा चाव था उनकी शख्सियत में. उन्हीं की वजह से मैं अपने शर्मीलेपन से बाहर आया.
क्यों ठुकराई मदर इंडिया- मैं मदर इंडिया से पहले दो फिल्मों में नर्गिस का हीरो रह चुका था. ऐसे में उनके बेटे के रोल का प्रस्ताव जमा नहीं. जब महबूब खान ने मुझे इस फिल्म की स्क्रिप्ट सुनाई तो मैं अभिभूत हो गया. मुझे लगा कि यह फिल्म हर कीमत पर बनाई जानी चाहिए. फिर उन्होंने नरगिस के एक बेटे का रोल मुझे ऑफर किया. मैंने उन्हें समझाया कि मेला और बाबुल में उनके साथ रोमांस करने के बाद यह माकूल नहीं होगा.
क्यों करते थे रिहर्सल- देविका रानी ने जब मुझे समेत कई एक्टर्स को बॉम्बे टॉकीज में नौकरी दी, तो साथ में इसके लिए भी ताकीद किया कि रिहर्सल करना कितना जरूरी है. उनके मुताबिक एक न्यूनतम लेवल का परफेक्शन हासिल करने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है. फिर ये सीख मेरे साथ शुरुआती वर्षों तक ही नहीं रही. बहुत बाद तक मैं मानसिक तैयारी के साथ ही सेट पर शॉट के लिए जाता था. मैं साधारण से सीन को भी कई टेक में और लगातार रिहर्सल के बाद करने के लिए कुख्यात था
जब सायरा की मुहब्बत के गिरफ्त में- ये 1966 के 23 अगस्त की शाम थी. सायरा बानो अपने नए घर के बगीचे में खड़ी थीं. मैं जैसे ही कार से उतरा, नजर उन पर ठहर गई. चकित हो गया. अब तक मैं उन्हें एक लड़की के तौर पर सोचता था. इसीलिए उनके साथ फिल्में करने से भी बचता था. मगर यहां तो एक बेहद खूबसूरत औरत थी. वह हकीकत में मेरी सोच से भी ज्यादा खूबसूरत नजर आ रही थीं.
सितार बजाना कब सीखा- 1960 में मेरी एक फिल्म आई थी कोहिनूर. ये फिल्म मेरे लिए खास है क्योंकि मैंने एक्टिंग के अलावा भी इसके लिए बहुत कोशिशें कीं. सितार सीखने के लिए मैं घंटों अभ्यास करता था. इसी दौरान मेरी मीना कुमारी से दोस्ती भी मजबूत हुई. हम दोनों ही पर्दे पर अपने इमोशनल ड्रामा के लिए मशहूर थे. मगर इस फिल्म में दोनों ही कॉमेडी कर रहे थे.
बहन ने डांटा मेरे हज्जाम को- मेरे हज्जाम को मेरे बालों से हमेशा दिक्कत होती थी. उसे लगता था कि ये कम्बख्त कुछ ज्यादा ही तेजी से बढ़ते हैं. हर 15 दिन में कटवाने की नौबत आ जाती थी. वह बार बार उन्हें संवारता, मगर वे अपनी जगह पर ही नहीं ठहरते. एक बार का किस्सा याद आ रहा है. हज्जाम बाल काटने के लिए घर आया. मैं कहीं शूटिंग में मसरूफ था. मैंने उससे कह रखा था कि अगर घर पर न मिलूं, तो इंतजार करना. जब मैं वापस आया तो देखा अलग ही नजारा. वह साहब मेरे ड्राइंगरूम में बैठ गए थे. ये मेरी बड़ी बहन को इतना नागवार गुजरा कि वह लगीं उसको डांट पिलाने में. मैंने फौरन अपने हज्जाम से इसके लिए माफी मांगी. बाद में मेरी सकीना आपा से इस बात को लेकर झड़प भी हुई.
अमिताभ दिलीप साहब का कौन सा सीन देखते थे- अभी कुछ दिनों पहले की बात है. मैं और अमिताभ गुफ्तगू कर रहे थे. तब उन्होंने मुझे ये किस्सा सुनाया. जब वह इलाहाबाद में थे और स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे. तब मेरी फिल्म गंगा जमुना वह बार बार देखते थे. यह बात उन्हें बहुत गहरे से छू गई थी कि एक पठान यूपी के एक युवा का किरदार कितनी सहजता से निभा रहा है. वहां की बोली को कितने यकीनी तौर पर बोल रहा है.