प्रकाश झा बॉलीवुड के सबसे विवादित डायरेक्टर माने जाते हैं. प्रकाश अपनी फिल्मों के लिए बड़े ही बोल्ड टॉपिक्स को चुनते हैं, जो बहुत से लोगों के गले नहीं उतरती. गंगाजल से लेकर सत्याग्रह और अब आश्रम प्रकाश झा की लगभग हर फिल्म को लेकर बवाल हुआ है. लेकिन मुश्किलों का सामना करने के बाद भी प्रकाश झा दमदार कहानियों को पर्दे पर लाते रहे हैं. आज हम प्रकाश झा की फिल्मों पर बात कर रहे हैं और समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर उनकी फिल्मों में ऐसी भी क्या बात है कि उनपर बड़े विवाद छिड़ जाते हैं.
बॉबी देओल स्टारर प्रकाश झा की फेमस वेब सीरीज 'आश्रम' इन दिनों विवादों में घिरी हुई है. इस सीरीज के तीसरे सीजन के सेट्स पर जाकर बजरंग दल के लोगों ने मारपीट की और सेट पर तोड़फोड़ मचाई. सीरीज में प्रकाश झा खुद को गॉड मैन बताने वाले ढोंगी बाबा की कहानी दिखा रहे हैं, जो अच्छाई का चोला पहनकर काले काम करता है. अब हर किसी के गले से ऐसी कहानी उतरना आसान कहां है.
रणबीर कपूर और कटरीना कैफ स्टारर 'राजनीति' को लेकर ढेरों विवाद हुए थे. नाना पाटेकर ने फिल्म को बीच में छोड़ दिया था, तो एक लेखक ने आरोप लगाया था कि फिल्म की कहानी उसकी लिखी कहानी से मेल खाती है. लेकिन सबसे बड़ा विवाद था कांग्रेस के मेंबर्स का आरोप लगाना कि कटरीना का किरदार सोनिया गांधी पर आधारित है. वैसे कटरीना की बॉडी लैंग्वेज और उनका लुक जरूर सोनिया की याद दिलाता था. प्रकाश झा को अंत तक आते-आते UA सर्टिफिकेट मिल ही गया था. इसकी कीमत उन्होंने कटरीना और अर्जुन के बीच इंटिमेट सीन को काटकर और कुछ गालियों को डिलीट करके चुकाई थी.
2017 में प्रकाश झा के प्रोडक्शन में बनी फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' को लेकर भी कई विवाद खड़े हुए थे. इस फिल्म में महिला सशक्तिकरण और सेक्सुअलिटी से जुड़ी कहानी को दिखाया गया था. लेकिन उस समय CBFC चीफ रहे पहलाज निहलानी ने अजब कारण देते हुए इसे सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया था. हालांकि बाद में चीजें ठीक हुईं और फिल्म को रिलीज होने का मौका मिला.
प्रकाश झा अपनी फिल्मों में बोल्ड कहानियां तो दिखाते ही है, उन्हें रियलिस्टिक दिखाने के लिए मेहनत भी करते हैं. कई बार इसे लेकर भी वह मुश्किल में फंसे हैं. 2012 में फिल्म सत्याग्रह के भोपाल में लगे सेट पर बवाल देखने मिला था. एक लोकल एक्शन ग्रुप ने 19वीं शताब्दी में बने बेनजीर पैलेस के पास टार का रोड बनाने और शूटिंग पर आपत्ति जताई थी. यह मामला इतना बड़ा हो गया था कि नेशनल मोन्यूमेंट अथॉरिटी तक गया और फिर बॉम्बे हाई कोर्ट तक भी पहुंच गया. फिल्म को रिलीज करने के लिए प्रकाश और उनके साथियों ने बड़ी जंग लड़ी थी और बाद में फिल्म रिलीज करने में सफल रहे.
कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे प्रकाश झा के छूते ही चीजें विवादित हो जाती हैं. फिल्म चक्रव्यूह से प्रकाश का नाम जुड़ा और विवाद उसकी झोली में आ गए थे. फिल्म के एक गाने को लेकर विवाद शुरू हुआ था, जिसमें 'टाटा', 'बिरला', 'बाटा' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया था. जूते की कंपनी ने एक पेटिशन फाइल की थी, जिसमें गाने को मानहानिकारक और बदनामी करने वाला बताया गया. सुप्रीम कोर्ट ने काफी मशक्कत के बाद फिल्म को रिलीज होने की अनुमति दी थी, लेकिन साथ ही यह भी कहा था कि उस गाने को लेकर शुरुआत में डिस्क्लेमर दिया जाए. बिरला कंपनी की पेटिशन का मामला भी डिस्क्लेमर से सुलझा था.
वो प्रकाश झा ही थे जिन्होंने जाति के आधार पर एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में होने वाले रिजर्वेशन पर फिल्म बनाई थी. ये हमारे देश के सबसे विवादित विषयों में से एक है. फिल्म की रिलीज से पहले दलित समुदाय इससे नाराज हो गया था. फिल्म को एंटी-दलित बताया गया. उन्हें सैफ अली खान के किरदार से दिक्कत थी, जो एक दलित लीडर था. दूसरी तरफ राजस्थान की करणी सेना को लगा था कि ऊंची जाति को इस फिल्म में बुरा दिखाया जा रहा है.
इस फिल्म को लेकर कोई बड़ा विवाद तो नहीं हुआ था लेकिन साधु यादव का नाम लिये जाने से उनके सपोर्टर जरूर नाराज हो गए थे. वहीं प्रियंका चोपड़ा के साथ बनी फिल्म 'जय गंगाजल' को लेकर सेंसर बोर्ड ने काफी आपत्ति जताई थी. फिल्म में 50 कट लगाए गए थे, जिससे इसका पूरा स्ट्रक्चर ही बदल गया था. इसके बाद प्रकाश झा को इसे कुबूल करना ही पड़ा. रिलीज के बाद फिल्म को पसंद किया गया था. यहां तक कि मध्य प्रदेश में इसे टैक्स फ्री भी कर दिया गया था.
इन फिल्मों के बारे में पढ़ने के बाद लगता है कि शायद प्रकाश झा की फिल्मों पर विवाद इसलिए होते हैं, क्योंकि वो बड़े और 'विवादित' मुद्दों पर बात करने और उन्हें जनता के सामने ईमानदारी से दिखाने की हिम्मत रखते हैं! वैसे आपका ओपिनियन हमसे अलग जरूर हो सकता है.