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संपेरे से लेकर गैंगस्टर तक... परफेक्शनिस्ट बनने से पहले ऐसे भी किरदार निभा चुके हैं आमिर खान

आमिर ने 2000s की शुरुआत से ही जिस तरह का सिनेमा बड़े पर्दे पर पेश किया, उससे उन्हें मिस्टर परफेक्शनिस्ट का टैग मिला. लेकिन 90s के अंत में आमिर ने भी कई ऐसे किरदार निभाए, जिन्हें देखकर आपको यकीन नहीं नहीं होगा कि ये आमिर ही हैं. आइए बताते हैं उस दौर में आमिर के किरदारों के बारे में...

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संपेरे से लेकर गैंगस्टर तक... ऐसे भी किरदार निभा चुके हैं आमिर खान
संपेरे से लेकर गैंगस्टर तक... ऐसे भी किरदार निभा चुके हैं आमिर खान

बॉलीवुड के सुपरस्टार्स में से एक आमिर खान जल्द ही 60 साल के होने जा रहे हैं. 14 मार्च 1965 को जन्मे आमिर को देखकर ये यकीन पर पाना मुश्किल है कि वो उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच गए हैं जो भारत में सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट की उम्र है. मगर दूसरी तरफ उनकी इमेज एक सीरियस काम करने वाले, वजनदार किरदारों में नजर आने वाले ऐसे एक्टर की है जिसकी उम्र 60 साल होना बहुत अविश्वसनीय भी नहीं लगता. 

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आमिर ने 2000s की शुरुआत से ही जिस तरह का सिनेमा बड़े पर्दे पर पेश किया, वो उनके ही साथ इंडस्ट्री में आए शाहरुख खान या सलमान खान की फिल्मों से बहुत अलग था. इस तरह की फिल्मों ने ही उन्हें 'परफेक्शनिस्ट' का टैग दिलाया. लेकिन अपनी फिल्म चॉइस को लिमिटेड और वजनदार बनाने से पहले, 90s में आमिर ने भी कई ऐसे किरदार निभाए, जिन्हें देखकर आपको यकीन नहीं नहीं होगा कि ये आमिर ही हैं. बॉलीवुड की मशीनरी में अपनी एक अलग जगह बनाने से पहले, आमिर भी उस दौर में पॉपुलर मसाला खूब ट्राई कर रहे थे. आइए बताते हैं उस दौर में आमिर के किरदारों के बारे में... 

आमिर खान (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

बदला लेने को उतारू एक हिंसक लड़का 
'गजनी' (2008) में आमिर का भयानक हिंसक अवतार शायद ही कभी कोई भूल सके. हिंदी की पहली 100 करोड़ कमाने वाली फिल्म में शॉर्ट-टर्म मेमोरी लॉस से जूझते आमिर फिल्म में जिस तरह अपने दुश्मनों को चुन-चुनकर मारते हैं, बहुत लोगों के लिए पर्दे पर उस लेवल की हिंसा देखना कम्फर्टेबल एक्सपीरियंस नहीं था. लेकिन हिंसक किरदार में आमिर के गुस्से वाले एक्ट की एक झलक पहली बार 'गजनी' से लगभग दो दशक पहले, 'राख' (1989) में नजर आई थी. 

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इस फिल्म में आमिर ने 21 साल के लड़के का किरदार निभाया था जिसे अपनी उम्र से बड़ी एक महिला से इश्क होने लगता है. लेकिन एक गैंगस्टर, अपनी ताकत के दम पर उस महिला का रेप, उस लड़के की आंखों के सामने करता है. ये लड़का अब हिंसा के ऐसे चक्रवात में फंस जाता है जिसका असर पूरी फिल्म में खून-खराबे की शक्ल में नजर आता है.

वैसे, 'राख' की कहानी सुनकर आपको 'गजनी' का एक और सीन याद आ सकता है, जिसमें गैंगस्टर्स आमिर की आंखों के सामने हीरोइन असिन का मर्डर करते हैं. 'राख' उन फिल्मों में से एक है जिन्होंने 90s के दौर की कई गैंगस्टर फिल्मों को इंस्पायर किया. ये फिल्म बहुत बड़ी हिट तो नहीं रही, लेकिन इसे तीन नेशनल अवॉर्ड मिले, जिसमें आमिर को स्पेशल मेंशन भी मिला.

क्रिकेट प्लेयर
'लगान' (2001) में अपने क्रिकेटिंग स्किल्स से अंग्रेजों को धूल चटाने से पहले, आमिर ने 1990 में आई फिल्म 'अव्वल नंबर' में क्रिकेटर का रोल किया था. आमिर ने फिल्म में यंग क्रिकेट स्टार सनी का रोल किया था, जिसके आने से भारत की क्रिकेट टीम के पुराने खिलाड़ी नाखुश हैं. 'अव्वल नंबर' में क्रिकेट टीम की पॉलिटिक्स के साथ एक आतंकवादी हमले का सबप्लॉट भी था और आमिर के साथ फिल्म में देव आनंद ने काम किया था. किसे पता था कि क्रिकेट स्टार का रोल कर रहे आमिर एक दशक बाद 'लगान' में ऐतिहासिक क्रिकेट मैच खेलने वाले हैं.

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संपेरा 
आमिर ने अपने करियर में जितने भी किरदार निभाए हैं, उनमें से शायद ही कोई उतना 'डिफरेंट' किरदार हो जितना उन्होंने 'तुम मेरे हो' (1990) में निभाया. इस फिल्म में आमिर ने एक ऐसे संपेरे का किरदार निभाया था जिसकी बीन की धुन सुनकर सांप मदहोश होने लगते हैं. फिल्म में एक इछाधारी नागिन का एंगल भी है, जो आमिर की जान लेना चाहती है. 

इस नागिन से लड़ने के लिए आमिर काले जादू की भी ट्रेनिंग लेते हैं. कई साल बाद 'इश्क' फिल्म में एक्टर रजाक खान का बोला डायलॉग आपको याद ही होगा- 'किसने बनाया है ये मुजस्समा!' तो 'अव्वल नंबर' असल में ऐसा ही एक 'मुजस्समा' थी और दिलचस्प बात ये है कि इसे बनाने वाले यानी फिल्म के डायरेक्टर, खुद आमिर के पिता ताहिर हुसैन थे.

'गॉडफादर' स्टाइल का गैंगस्टर
90s में बॉलीवुड अपना गैंगस्टर फॉर्मूला तैयार कर रहा था. आमिर की ही 'राख' और अनिल कपूर-जैकी श्रॉफ-नाना पाटेकर स्टारर 'परिंदा' से इंस्पायर होकर तमामत फिल्ममेकर्स एक सॉलिड गैंगस्टर ड्रामा बनाने निकले थे. और इन फिल्मों के लिए हॉलीवुड क्लासिक 'द गॉडफादर' से खूब इंस्पिरेशन ली जा रही थी. ऐसी ही एक फिल्म थी 'आतंक ही आतंक'  (1995). 

इस फिल्म में एक आदमी गांव से निकलकर शहर में आता है और क्राइम लॉर्ड बन जाता है. अपराध की दुनिया में उसका परचम लहराने में सबसे बड़ा योगदान उसके गोद लिए बेटे का होता है, जिसका किरदार रजनीकांत ने निभाया. लेकिन अपराध की दुनिया के शहंशाह पर हमला होने के बाद विदेश से उसका छोटा बेटा घर लौटता है और अपने पिता की विरासत संभालता है. ये किरदार निभाया था पतली मूंछ रखे और बाल पीछे किए आमिर खान ने. 

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'आतंक ही आतंक' आमिर की उन फिल्मों में से एक है जिन्हें बाद में आमिर फैन्स ने भुलाना ही बेहतर समझा. हालांकि एक दिलचस्प फैक्ट ये है कि इस फिल्म में आमिर और रजनीकांत साथ नजर आए थे. अब 30 साल बाद ये दोनों तमिल इंडस्ट्री की पैन इंडिया फिल्म 'कुली' में साथ आने वाले हैं.

परंपरा के लिए लड़ने वाला ठाकुर 
80s और 90s में ठाकुरों की राइवलरी वाली कई फिल्में बनी थी. इनमें से सनी देओल, संजय दत्त, विनोद खन्ना और धर्मेंद्र स्टारर 'क्षत्रिय' (1993) को सबसे पॉपुलर माना जा सकता है. लेकिन आमिर ने भी इस तरह का फॉर्मूला ट्राई किया था. यश चोपड़ा की 'परम्परा' (1993) में नई पीढ़ी के ठाकुर बने थे आमिर खान और सैफ अली खान. जबकि पुरानी पीढ़ी के ठाकुर थे विनोद खन्ना और सुनील दत्त. आमिर और सैफ, दोनों के करियर में 'परम्परा' एक बहुत बड़ी फ्लॉप बनकर आई थी. आज इस फिल्म को किसी भी वजह से याद नहीं किया जाता!

गरीब आशिक 
90s के लव स्टोरीज में गरीब आशिक, रईस प्रेमिका या एक दूसरे को टेढ़ी आंख से ना देखने वाले परिवारों के दो लोगों में प्यार वाला एंगल बहुत पॉपुलर रहा. आमिर ने इंडस्ट्री में पहला लीड रोल इसी एंगल पर बनी लव स्टोरी में निभाया था. 'कयामत से कयामत तक' में आमिर और जूही के परिवार एक दूसरे से इतनी नफरत करते थे कि अपने बच्चों का प्यार स्वीकार ही नहीं कर पाते. कहानी में ऐसे ट्विस्ट आते हैं कि फिल्म के अंत में दोनों लीड किरदारों की मौत हो जाती है.

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इस तरह की फॉर्मूला लव स्टोरी पर आमिर ने करीब आधा दर्जन फिल्में कीं. 'दिल' में आमिर एक कबाड़ी के बेटे थे और जूही चावला रईस सेठ की बेटी. 'दौलत की जंग' में आमिर और जूही के पिता बिजनेस राइवल थे. 'अफसाना प्यार का' में आमिर और नीलम के परिवार एक दूसरे के दुश्मन थे. 

'लव लव लव' में आमिर गरीब बाप के बेटे थे और जूही एक बड़े बिजनेसमैन की बेटी. टैक्सी ड्राईवर आमिर और रईस बाप की बेटी बनीं करिश्मा कपूर की लव स्टोरी लेकर आई 'राजा हिंदुस्तानी' भी इसी फॉर्मुले की फिल्म थी. 'दीवाना मुझ सा नहीं', 'हम हैं राही प्यार के' और 'दिल है कि मानता नहीं' में आमिर ने घर से भागने वाली लड़कियों के प्रेमी का रोल किया.  

इन फिल्मों के बीच में ही आमिर ने 'रंगीला' (1995) में काम किया था, जो फॉर्मुले तोड़कर नई कहानियां कह रहे डायरेक्टर रामगोपाल वर्मा की फिल्म थी. इस फिल्म में आमिर की परफॉरमेंस और फॉर्मुले से हटकर चलने वाली कहानियों का हिस्सा बनने की ललक, बाकी फिल्ममेकर्स ने भी पहचानी. तबतक आमिर खुद भी जांच-परखकर फिल्में सेलेक्ट करने लगे थे और साल में एक फिल्म करने वाला फंडा अपनाने लगे थे. 

उनके इस डिफरेंट नजरिए को फिल्ममेकर्स ने नोटिस किया और यहीं से उन्हें 'गुलाम' और 'सरफरोश' जैसी फिल्में मिलीं जो लेट 90s में रिलीज हुईं. यही 'डिफरेंट' इमेज नए मिलेनियम में आमिर की पहचान बनी और फिर वो एक के बाद एक ऐसी फिल्में करने लगे जो किसी भी तरह के फॉर्मुले से अलग थीं. शुरुआती 90s में आमिर ने तमाम फिल्मों से जो सबक लिए, उन्हीं की वजह से वो अपने साथ की बाकी एक्टर्स से अलग साबित हुए.

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