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जो लोग रामायण-महाभारत से नहीं सीख सके, वो सिनेमा से क्या सीखेंगे... क्यों बोले जयदीप

फिल्में लोगों को प्रेरित करती हैं ये बात हम सभी काफी समय से सुनते आ रहे हैं. कई लोग फिल्में देखकर कई सारी वारदातों को भी अंजाम देेते हैं जिससे समाज खराब होता है. लेकिन क्या सच में लोग फिल्मों से प्रेरित होते हैं? जयदीप का मानना थोड़ा अलग है.

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जयदीप अहलावत
जयदीप अहलावत

ऐसा कहा जाता है कि फिल्में हमें प्रेरित करती हैं. वो हमारे दिमाग में समाज की एक छवि बनाती हैं. हमें इस दुनिया की असलियत से रूबरू कराती है. लेकिन क्या सच में फिल्में समाज को बदलने का काम करती है? बॉलीवुड एक्टर जयदीप की सोच इस मुद्दे पर थोड़ी अलग है. 

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'महाभारत नहीं सिखा सकी, मिर्जापुर कहां से'

कुछ समय पहले जयदीप कई एक्टर्स समेत एक राउंड टेबल इंटरव्यू का हिस्सा बने थे जहां उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से लेकर एक्टिंग की बारीकियों पर बातें की. इसी बीच एक सवाल ये भी उठा कि क्या फिल्में समाज की सोच बदलने का काम करती हैं या नहीं? तो इसपर जयदीप ने भी अपना पक्ष रखा.

एक्टर ने कहा था, 'अगर हम रामायण महाभारत से कुछ नहीं सीख पाए, तो मिर्जापुर सीजन 1 या 3 हमें नहीं सिखा सकता है.' अक्सर ऐसा कहा जाता है कि कोई इंसान दरिंदगी और बदतमीजी फिल्मों और सीरीज से ही सीखता है. वो कई बुरे कामों को अंजाम समाज में शामिल फिल्में देखकर ही देता है. लेकिन जयदीप का मानना है कि 140 करोड़ देशवासियों की जिम्मेदारी अकेली सिनेमा पर थोपना गलत है. 

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'140 करोड़ की जिम्मेदारी सिनेमा पर नहीं'

उन्होंने कहा- 140 करोड़ की जिम्मेदारी आप सिनेमा पर नहीं डाल सकते. आपके समाज में ही कुछ गड़बड़ है. कोई भी उठकर ये नहीं कहेगा कि मुझे मिर्जापुर का गुड्डू भईया बनना है. और अगर उसके अंदर ये खयाल आया है, वो गुड्डू भईया को देखकर नहीं आया. वो पहले से ही वैसा था. वो पहले से किसी से प्रेरित था, बस एक बहाना ढूंढ रहा था. 

'अगर हमारा सिनेमा लोगों को बदलने में कामयाब होता तो ये स्थिति ऐसी नहीं होती. हम सिनेमा समाज से बनाते हैं, समाज से सिनेमा नहीं बनता. जो राइटर्स लिखते हैं वो सब समाज में पहले से पड़ा हुआ है.' जयदीप की ये बात कई लोगों को सोच में डाल रही है. पिछले काफी समय में देश में कई ऐसी वारदात भी हुई हैं जिसके बाद समाज ने सबसे पहला कसूरवार फिल्मों को ठहराया है. माना जाता है कि कई सारी वारदात फिल्मों में दिखाए सीन्स से प्रेरित होती हैं. आपका इस मुद्दे पर क्या विचार है? क्या सचमुच सिनेमा से लोग प्रेरित होकर खुद को बदलते हैं?

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