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नेपोटिज्म पर बोलीं अदिति राव हैदरी- मुझे इससे कोई नाराजगी नहीं है

अदिति ने कहा, "मुझे इससे कोई नाराजगी नहीं है. मेरा आगे बढ़ना ये बताता है कि मैं क्या हूं. मैं एक सपने देखने वाली और एक बच्ची बनना चाहती हूं. मैं दूसरों के बारे में सोचकर बुरा महसूस नहीं करना चाहती."

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अदिति राव हैदरी
अदिति राव हैदरी

बॉलीवुड एक्ट्रेस अदिति राव हैदरी ने इंडिया टुडे कॉनक्लेव साउथ 2021 के पहले दिन इवेंट में शिरकत की. कार्यक्रम में अदिति ने रचनात्मक स्वतंत्रता, नेपोटिज्म और पैनडेमिक जैसे तमाम विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए. अदिति इवेंट में Cinema Central - The Girl on the Go: Acing Every Act विषय पर बोल रही थीं और इसी दौरान उन्होंने बताया कि किस तरह उन्हें नेपोटिज्म शब्द ही पसंद नहीं है.

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पैनडेमिक पर क्या बोलीं अदिति?

बातचीत के दौरान अदिति ने कहा, "ये बुरा शब्द है और मैं इसके बारे में बात नहीं करना चाहती हूं. यह सब पूरी दुनिया में हो रहा है. मुझे लगता है कि यह बिना मेरे सिर पर किसी के हावी हुए मुझे अपने फैसले लेने का अधिकार देता है. वो कहते है कि इससे एक परिवार के बच्चे के लिए आसान ऊपर तक पहुंच बनाना बहुत आसान हो जाता है."

अदिति ने कहा, "मुझे इससे कोई नाराजगी नहीं है. मेरा आगे बढ़ना ये बताता है कि मैं क्या हूं. मैं एक सपने देखने वाली और एक बच्ची बनना चाहती हूं. मैं दूसरों के बारे में सोचकर बुरा महसूस नहीं करना चाहती. मेरा हर फैसला मुझे सशक्त बनाता है और मुझे निडर बनाता है." लॉकडाउन के बारे में अदिति ने कहा कि उनके लिए ये बढ़िया रहा है. उन्होंने बताया कि अब शूटिंग सेट कितना बदल गया है.

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उन्होंने कहा, "ये बढ़िया है. अगस्त 2020 से मैंने जितने लोगों के साथ काम किया है, वे सभी संवेदनशील, दिमागदार और देखभाल करने वाले हैं. कभी-कभी, ऐसी चीजें होती हैं जो हम सेट पर अनदेखी करते हैं. महामारी के दौरान सेट संवेदनशील और बेहतर बना है. जिस नए तरीके से अब काम हो रहा है मैं उसे एन्जॉय कर रही हूं. मेरी दुआ है कि हम सबसे अच्छी चीजों को सीखें और इसे आगे बढ़ाएं. साथ ही समय भी बर्बाद नहीं करें."

क्या है साउथ और नॉर्थ के सिनेमा जगत का फर्क?
अदिति ने कहा कि जहां तक फर्क की बात है तो सेट पूरी तरह से सेट बनाने वाले लोगों पर निर्भर करता है. निर्देशक और पूरी टीम. बात नॉर्थ और साउथ या क्षमतावान और क्षमताहीन की नहीं है. फर्क इस चीज से पड़ता है कि आप क्या बना रहे हैं. मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं कि फर्क इससे पड़ता है कि आप लोगों को कैसा महसूस करा रहे हैं. भावनाओं की कोई भाषा नहीं होती है, ना कोई रंग और सीमा होती है.

 

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