बजरंगी भाईजान, ट्यूबलाइट और सुलतान जैसी बढ़िया फिल्में बना चुके डायरेक्टर कबीर खान ने अफगानिस्तान के काबुल के बारे में भी फिल्म बनाई हुई है. इस फिल्म का नाम काबुल एक्सप्रेस था और यह साल 2006 में रिलीज हुई थी. फिल्म देखने में जितनी दिलचस्प थी, इसे बनाने की कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है. आज हम आपको बता रहे हैं काबुल एक्सप्रेस से जुड़ी पर्दे के पीछे की कहानी.
कहां से शुरू हुई कहानी?
फिल्म काबुल एक्सप्रेस, कबीर खान की बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म थी. इस फिल्म की प्रमोशनल किताब में पब्लिसिटी शॉट्स थे, जिनमें फिल्म के पांचों मुख्य किरदारों को काबुल के सुनसान शहर में खोया हुआ देखा जा सकता है. उनके पास लंबे और खतरनाक कांटेदार तार पड़े हैं. इन किरदारों में दो भारतीय, एक अमेरिकी, एक अफगानी और एक पाकिस्तानी है. फिल्म में इन सभी का सामने बेरहमी से तबाह किए गए काबुल से होता है, जिसमें जगह-जगह टूटे हुए आर्मी के टैंक, गोलियां और बम संग अन्य चीजें बिखरी हुई है.
कबीर की इस फिल्म का प्रोडक्शन यश राज फिल्म्स ने किया था. ऐसे में उस समय आदित्य चोपड़ा से पूछा गया था कि आखिर सरसों के खेत में रोमांस दिखाने के बाद वह धूल भरी काबुल की गलियों में आखिर कैसे पहुंचे?
इसपर आदित्य ने कहा था, 'मैं कुछ चैलेंजिंग करना चाहता था, कुछ अलग करना चाहता था. ऐन पॉपुलर ब्लॉकबस्टर फिल्में बनाने के अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आना चाहता था और इंटरनेशनल ऑडियंस के लिए एक फिल्म बनाना चाहता था. जब काबुल एक्सप्रेस मेरे डेस्क पर पहुंची थी, मुझे समझ आ गया था कि मुझे इस फिल्म को जल्द से जल्द बनाना होगा.'
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कबीर खान लेकर आए थे कहानी
आदित्या चोपड़ा के पास काबुल एक्सप्रेस की स्क्रिप्ट पहुंचाने वाले कोई और नहीं कबीर खान ही थे. उस समय कबीर एक जाने माने डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार हुआ करते थे. कबीर और फिल्म काबुल एक्सप्रेस के एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर राजन कपूर ने तालिबान के शासन पर डॉक्यूमेंट्री शूट करने के लिए युद्ध से तबाह राष्ट्र में ट्रेवल किया था.
इसके बारे में कबीर ने कहा, 'वही पल था जब हमने दुनिया के सबसे दमनकारी शासनों में से एक के खूंखार आतंकवादी को रोते-बिलखते पिता में बदलते देखा था. उस छोटे से पल ने कहीं ना कहीं काबुल एक्सप्रेस के आईडिया की नींव रखी थी.'
फिल्म काबुल एक्सप्रेस आखिर थी किस बारे में?
कबीर खान के मुताबिक, यह कहानी 48 घंटों की है और पांच लोगों के बारे में है, जो नफरत और डर की वजह से जुड़े हुए हैं और किस्मत से साथ आते हैं. कबीर का कहना था कि 9/11 के बाद युद्ध में तबाह हुए अफगानिस्तान में सेट काबुल एक्सप्रेस ऐसे लोगों के बारे में एक ऐसी ड्रामा फिल्म है, जो वैसे तो अपनेआप में ही रहते हैं लेकिन जब साथ में समय बिताने के लिए उन्हें फोर्स किया जाए तो वह एक दूसरे को समझ लेते हैं.
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इन एक्टर्स ने किया था काम
फिल्म के लिए कबीर खान ने जॉन अब्राहम और अरशद वारसी संग एक अमेरिकी, अफगानिस्तानी और पाकिस्तानी एक्टर को कास्ट किया था. आदित्य चोपड़ा ने इस बारे में बात करते हुए कहा था, 'हर इंसान के अपने देश का प्रतिनिधित्व करने और अपने अलग भाषा में बात करने की वजह से यह फिल्म असली दिखी है.'
जॉन और अरशद के अलावा जिन एक्टर्स को कबीर खान ने फिल्म में लिया था वह थे Linda Arsenio, Salman Shahid और Hanif Hum Ghum, लिंडा न्यूयॉर्क की रहने वाली हैं और उन्होंने यूएस में कई इंडिपेंडेंट फिल्मों में काम किया हुआ है. सलमान शाहिद पाकिस्तानी सिनेमा के जाने माने एक्टर हैं. इसके अलावा वह थिएटर आर्टिस्ट और डायरेक्टर भी हैं. हनीफ, अफगानिस्तान से हैं, जिन्हें असल जिंदगी में एक्टिंग करियर बनाने के लिए तालिबानियों ने अगवा कर बेरहमी से पीटा था.
हनीफ छह महीने तक जेल में बंद रहे थे. उन्होंने बाहर निकलने के लिए अपने घर को बेचा और पुलिस को रिश्वत दी थी. वह ईरान में एक रिफ्यूजी की तरह रहे. वह बीच-बीच में टीवी शोज में एक्टिंग किया करते थे. हनीफ अपने देश तब वापस लौटे थे जब वहां तालिबान का शासन खत्म हो गया था. हनीफ अफगानिस्तानी इंडस्ट्री का बड़ा नाम रहे हैं और उन्होंने अपने देश के सबसे फेमस चैनल Tolo TV के लिए शो भी होस्ट किया हुआ है.
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शूटिंग में आई थी दिक्कतें
कबीर खान ने उस समय बताया था कि उनकी फिल्म की कास्ट और क्रू को तालिबान से मौत की धमकियां मिली थी. उन्होंने कहा, 'जब मुझे समझ आया कि मैं काबुल एक्सप्रेस फिल्म को बनाना चाहता हूं, तब मैंने फैसला किया कि फिल्म अफगानिस्तान में ही शूट होगी. यह सिर्फ एक लोकेशन नहीं थी, बल्कि मेरी फिल्म का एक किरदार था.'
कबीर ने बताया कि वह अपनी डॉक्यूमेंट्री शूट करने के लिए 10 बार अफगानिस्तान जा चुके थे और वहीं उन्होंने अपनी फीचर फिल्म को भी बनाया. उन्होंने कहा, 'मैं काबुल से मुंह नहीं मोड़ सकता था. तब तो बिल्कुल नहीं जब मेरे कास्ट और क्रू को तालिबान से जान से मारने की धमकी मिल रही थी.'
शूटिंग लोकेशन पर पहुंचने से पहले हुआ ब्लास्ट
कबीर खान ने यह भी बताया था कि कैसे उन्होंने इन धमकियों का हिसाब अपनी डायरी में रखा था. इस डायरी में उन्होंने लिखा था कि भारतीय एम्बेसडर ने उन्हें कास्ट और क्रू को लेकर मिली धमकी के बारे में बताया. सिक्योरिटी मिनिस्टर ने उन्हें सुरक्षा देने की बात कही. कैसे सुसाइड बॉम्बर्स की गाड़ी ISAF की जीप से जलालाबाद रोड पर टकराई थी, जिसमें तीन जर्मन सोल्जर मारे गए थे. और उनकी कार के शूटिंग स्पॉट पर पहुंचने से 10 मिनट पहले ब्लास्ट हुआ था और उनके रास्ते को सिक्योरिटी ने बदला था.
एक भारतीय इंजीनियर को तालिबान ने अगवा कर लिया था, जिसके बाद सिक्योरिटी मिनिस्टर ने कबीर खान को जलालाबाद रोड पर शूटिंग करने के लिए मना कर दिया था. उन्होंने बताया रोड से तालिबानी बसों और ट्रकों में ट्रेवल कर उनपर नजर रख रहे हैं. इतना ही नहीं उस भारतीय इंजीनियर की सर कटी लाश को निमरोज नाम की जगह पर पाया गया था, जिसके बाद कबीर संग पूरी फिल्म की कास्ट और क्रू की सिक्योरिटी को बढ़ाया गया था और 60 कमांडो शूटिंग के दौरान उनके साथ रहते थे.
प्रोड्यूसर राजन ने बताया था, 'काबुल में शूटिंग करने के शुरूआती दो हफ्ते किसी सपने की तरह थे. लेकिन जैसे ही धमकियां मिलना शुरू हुई सब बर्बाद-सा हो गया था. हमारे पास शूट पर मौजूद क्रू मेंबर्स से ज्यादा सिक्योरिटी होती थी.'
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जब सेट्स पर चली गोली
फिल्म काबुल एक्सप्रेस की शूटिंग का सबसे खतरनाक हिस्सा तब था जब कबीर खान ने शूटिंग शुरू करने के लिए आवाज लगाई और उनके पास से बंदूक की एक गोली सन्न से निकली. तब शूटिंग को एक घंटे के लिए रोक दिया गया था. वहीं एक बार राजन बुज़कशी का सीन शूट करते हुए बुरी तरह घायल हो गए थे और एक हफ्ते तक ढंग से चल नहीं पाए थे.
अरशद वारसी ने अफगानिस्तान में शूटिंग करने को लेकर कहा था, 'वहां मोबाइल फोन से ज्यादा बंदूकें हैं. लेकिन अगर मैं इस फिल्म से जुड़ा ना होता तो मुझे मलाल होता.' वहीं जॉन अब्राहम ने कहा था, 'काबुल एक्सप्रेस की कहानी एक्टर्स से कहीं ज्यादा बड़ी है. जान से मारने की धमकी और सुसाइड बॉम्बिंग के बाद मैंने अपने ड्राइवर से पूछा था कि यह बॉम्बर कहां से आते हैं. उसने मुझे जवाब दिया था- अल्लाह आपको जहां से चाहे वहां से अपने पास बुला सकता है.'