बॉलीवुड सिंगर केके का यूं जाना उनके चहेतों को बड़ा सदमा दे गया है. कोलकाता में परफॉर्म कर रहे केके को लाइव सुनने पहुंची बेहिसाब ऑडियंस की गूंज, एसी का बंद होना और तबीयत बिगड़ने के बाद ग्रीन रूम से निकलते केके संग सेल्फी की होड़ बताती है कि आयोजन में किस हद तक लापरवाही बरती गई. फैंस सवाल उठा रहे हैं. अगर उस हॉल में एक डॉक्टर मौजूद होता, तो शायद केके बच जाते. भीड़ से निकलने की कोशिश में न फंस केके अगर जल्दी कार तक पहुंचते, तो अस्पताल पहुंचने में देर नहीं होती.
बॉलीवुड फिल्मों में गाने के अलावा सिंगर्स के लिए लाइव परफॉर्म करना हमेशा से पसंदीदा काम रहा है. खुले आसमान में फैंस के बीच गाते इन सिंगर्स का जोश भी सातवें आसमान पर होता है. खासकर केके तो अपनी लाइव परफॉर्मेंस के लिए ही जाने जाते थे. केके को लाइव सुनना कई म्यूजिक लवर्स के बकेट लिस्ट में शुमार था. हालांकि उनकी मौत ने आर्टिस्टों को भी डरा दिया है. खासकर उन दिग्गजों को जो लगातार ऐसे लाइव शो करते रहते हैं. aajtak.in ने ऐसे ही कुछ सितारों से बातचीत की.
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आर्टिस्ट्स की सुरक्षा हमेशा हल्के में ली जाती हैः कैलाश खेर
लाइव परफॉर्मेंस में सबसे पहले ऑर्गनाइजर्स को एक चीज का ध्यान रखना होता है. ग्रीन रूम से लेकर स्टेज तक पहुंचने के रास्ते में भीड़ नहीं होनी चाहिए. आर्टिस्ट की अपनी टीम होती है, जो आर्टिस्ट को ही मैनेज करती है. भीड़ को कंट्रोल करना उसके बस में नहीं होता. इन दिनों में मैंने देखा है कि क्राउड के पास एक नहीं बल्कि दो से तीन फोन होते हैं. होड़ लगी होती है. वो आर्टिस्ट को कैप्चर करने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें सिंगर की असहजता दिखती नहीं है. कई बार मुझे ये भीड़ इंसानों की नहीं मशीनों की लगती है. इनका ओवरएक्साइटमेंट कई बार हम पर भारी पड़ जाता है, ये चीजें हमें कहीं न कहीं अफेक्ट तो करती ही हैं. ऑर्गनाइजर्स को इस चीज पर सोचना चाहिए कि जिस तरह वे क्राउड मैनेजमेंट ऑडियंस के साथ करते हैं, ठीक वैसे ही स्टेज व ग्रीन रूम में करना चाहिए. कोई भी धक्का मारकर अंदर आ जाता है. क्राउड मैनेजमेंट को गंभीरता से लेना चाहिए.
विदेशों में तो बिना इंश्योरेंस के कोई भी आर्टिस्ट परफॉर्म करता ही नहीं है. वहां तो इंश्योरेंस के बिना परमिशन ही नहीं होता है. इंश्योरेंस के साथ-साथ फायर ब्रिगेड, एंबुलेंस, डॉक्टर्स हमेशा इवेंट स्पॉट में खड़े ही होते हैं. यहां हमारे देश में ये सब नहीं होता है. सरकार ने कभी हम आर्टिस्ट को तरजीह नहीं दी है. आर्टिस्ट की सुरक्षा को बड़ा नहीं माना जाता है, हल्के में लिया जाता है. ये कुछ जरूरी चीजें हैं, जिस पर गर्वनमेंट को सोचना चाहिए.
परफॉर्मेंस के बाद हाथ में नाखूनों के निशान होते हैं: अंकित तिवारी
केके की मौत ने हमें डरा दिया है. इससे पहले सिद्धू मूसावाला की खबर ने शॉक्ड कर दिया था. मैं किसी करीबी को यही बता रहा था कि हम आर्टिस्ट्स परफॉर्मेस के पहले बहुत खुश होते हैं. लोगों के बीच गाना, हमें एक हाई देता है. हम हमेशा लाइव कॉन्सर्ट को लेकर एक्साइटेड रहे हैं. लेकिन अब मुझे अहसास हो रहा है कि यह बुरा सपना हो सकता है. अब तो डर लगने लगा है कि पता नहीं स्टेज पर कुछ भी हो सकता है. कई सारे सवाल दौड़ रहे हैं. जब आर्टिस्ट चला जाता है, तो हम इन सबके बारे बात करते हैं लेकिन जब लाइव परफॉर्मेंस के दौरान कोई दिक्कत आती है, तो कभी इस पर बात नहीं होती है. मैंने कई बार खुद इस तरह की असहज हरकतों का सामना किया है लेकिन ऑर्गनाइजर वाले फैन मोमेंट बोलकर हमें कंफर्ट करवाने की कोशिश करते हैं. वो कहते हैं ऐसा तो हर आर्टिस्ट के साथ होता है, इसे इंजॉय करो क्योंकि तुम पॉपुलर हो. हाल ही में बनारस में एक शो किया था, वहां बैकस्टेज में था. वहां पुलिस और पॉलिटिशियन के बीच लड़ाई हो गई और बवाल कट गया. खैर सरकारी शो था, तो मामला संभल गया लेकिन नहीं संभल पाता, तो क्या होता? शो खत्म होने के बाद तो जो नजारा होता है, वो और भयावह होता है. ऑर्गनाइजर भी थोड़े ढीले पड़ जाते हैं. फिर भीड़ से निकलना मुश्किल हो जाता है. आर्टिस्ट को टच करने के चक्कर में मैं खुद स्टेज से गिरा हूं और परफॉर्मेंस के बाद अपने हाथों में नाखुनों के निशान पाए हैं.
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इवेंट के दौरान डॉक्टर होता, तो शायद केके बच जाते: कविता सेठ
केके की खबर ने पूरी रात सोने नहीं दिया है. मैं बेहिसाब रोई हूं. घरवाले कह रहे हैं कि इतना करीबी दोस्त था? मैंने कहा आपलोग नहीं समझोगे, ये आर्टिस्टों की बात है. मैंने केके को लाइव परफॉर्म करते देखा है, गजब की एनर्जी के साथ होता था. स्टेज पर हम तो उसे पावर हाउस कहते थे. एनर्जी कभी ड्रॉप नहीं होने देते थे. कमाल का आर्टिस्ट था...
कविता आगे कहती हैं, यहां इवेंट इंडस्ट्री हैं लेकिन कोई भी ऑर्गनाइज नहीं है. प्राइवेट शोज बहुत होते रहते हैं. चलो कोलकाता तो मेट्रो सिटी है, लेकिन छोटे शहरों में तो इवेंट वालों को खबर ही नहीं होती है कि क्या करना है और क्या नहीं. उन्हें कोई जानकारी नहीं होती है. हाल ही में कोलकाता में एक परफॉर्मेंस कर लौटी हूं, सच कहूं बहुत अच्छा एक्स्पीरियंस नहीं रहा था. मैं जैसे स्टेज पर पहुंची, वहां मौजूद लोगों ने खाने के डिब्बे खोल दिए. रिस्पेक्ट ही नहीं है आर्टिस्ट्स की. ये चीजें हमें हर्ट करती हैं. आप आर्टिस्ट को अपने यहां बुलाते हो, तो आपकी ये ड्यूटी बनती है कि उसकी सिक्यॉरिटी व सेफ्टी का ध्यान रखा जाए. मेडिकल सेफ्टी भी अब जरूरी है. केके के वीडियोज से साफ नजर आ रहा है कि उसे बहुत गर्मी लग रही थी. स्टेज पर असहज दिख रहे थे. अगर वहां कोई डॉक्टर मौजूद होता, तो शायद पंप-अप कर उसे बचा सकता था. शायद हम इतने बड़े आर्टिस्ट को नहीं खोते. मैं तो चाहूंगी कि इमेरजेंसी के लिए अब हर स्टेज पर डॉक्टर व एंबुलेंस की सुविधा होनी ही चाहिए. कविता आगे कहती हैं, हम तो मैं ये अश्योर करूंगी कि मैं अपने टेक-राइडर में एंबुलेंस व डॉक्टर की सुविधा मिले. इसके साथ ही सिक्यॉरिटी भी कड़ी हो.