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'खलनायक' बनना चाहते थे अनिल कपूर, गंजा होने को थे तैयार, इस वजह से संजय दत्त को मिला रोल

सुभाष घई की 'खलनायक' में संजय दत्त के अलावा किसी और एक्टर को सोच पाना भी अब नामुमकिन है. मगर सुभाष ने अब एक दिलचस्प खुलासा करते हुए बताया है कि अनिल कपूर इस फिल्म में लीड रोल करने के लिए इतने उत्सुक थे कि अपने बाल कुर्बान करने के लिए भी राजी थे.

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संजय दत्त और अनिल कपूर
संजय दत्त और अनिल कपूर

बॉलीवुड के नामी डायरेक्टर्स में से एक सुभाष घई की फिल्म 'खलनायक' (1993), अपने आप में एक कल्ट-क्लासिक है. संजय दत्त ने इस फिल्म का लीड किरदार इस तरह निभाया कि इसका टाइटल हमेशा के लिए उनके नाम के साथ जुड़ गया. और इस फिल्म से जनता के फेवरेट 'संजू बाबा' के करियर को एक नया बूस्ट मिला था. 

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डायरेक्टर सुभाष घई ने अब इस फिल्म से जुड़ा एक बहुत दिलचस्प खुलासा किया है. उन्होंने बताया है कि अनिल कपूर 'खलनायक' में लीड रोल निभाना चाहते थे. और इस रोल को निभाने के लिए उनकी दीवानगी ही अलग लेवल की थी. मगर घई चाहते थे कि इस किरदार को संजय दत्त ही निभाएं. उन्होंने बताया कि अनिल इस फिल्म में काम करने के लिए किस कदर तैयार बैठे थे लेकिन इसके बावजूद दत्त को ही क्यों चुना गया. 

घई का फेवरेट होने के बावजूद अनिल नहीं बन सके 'खलनायक' 
80 के दशक में सुभाष घई ने बैक टू बैक, तीन फिल्मों में अनिल कपूर के साथ काम किया था. 'मेरी जंग' 'कर्मा' और 'राम लखन' में अनिल कपूर, घई के हीरो रह चुके थे. एएनआई से बात करते हुए घई ने बताया कि उस समय का हर स्टार 'खलनायक' में लीड रोल निभाना चाहता था, जो आखिरकार संजय दत्त ने निभाया. 

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उन्होंने बताया, 'जब मार्किट में खबर फैली कि मैं 'खलनायक' बना रहा हूं, बहुत सारे हीरोज ने मुझे फिल्म में काम करने के लिए अप्रोच किया. अनिल कपूर आए और उन्होंने फिल्म करने में अपनी दिलचस्पी जाहिर की. वो गंजे होने को भी तैयार थे, मगर मैं कुछ और तलाश रहा था. संजय दत्त सबसे सही फिट थे.' 

इस खासियत की वजह से संजय दत्त बने 'खलनायक'
जब घई से पूछा गया कि उन्होंने इस रोल के लिए खास तौर पर दत्त को ही क्यों चुना तो उन्होंने समझाते हुए कहा, 'संजय दत्त का एक टिपिकल फेस है. वो खतरनाक लग सकते हैं, वो मासूम लग सकते हैं. अगर आप उनका चेहरा देखें, उसमें एक मासूमियत है, लेकिन उसी के साथ अगर वो गुस्सा हो जाएं, तो वो बहुत खतरनाक हैं. वो दो शेड्स में ऑपरेट करते हैं और इसीलिए वो 'खलनायक' के लिए बेस्ट चॉइस थे.' 

घई ने ये भी बताया कि उन्होंने कैसे ये किरदार पहले खुद निभाया था. उन्होंने आगे कहा, 'मैंने उन्हें कहा कि  आपको बस मुझे फॉलो करना है, तो उन्होंने कहा कि आप एक्ट करके बताइए, मैं आपको फॉलो करूंगा और उन्होंने बिल्कुल यही किया. 'खलनायक' का हर सीन उन्होंने कॉपी किया क्योंकि मैंने उन्हें बहुत डिटेल में लिखा था. मैं खुद एक परफॉर्मर था तो उससे भी काफी मदद मिली.'    

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बता दें, फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टिट्यूट (FTII) से पढ़कर निकले सुभाष घई ने अपना करियर एक्टिंग से शुरू किया था. फिल्म प्रोड्यूसर्स के एक टैलेंट कॉन्टेस्ट में तीन लोगों को चुना था- राजेश खन्ना, सुभाष घई और धीरज कुमार. जहां राजेश खन्ना को इसके बाद ही फिल्म मिल गई थी, वहीं सुभाष घई को एक साल बाद एक्टिंग डेब्यू का मौका मिला.

उन्होंने राजेश खन्ना के साथ फिल्म 'आराधना' (1969) में एक किरदार भी निभाया था और 'उमंग और गुमराह' (1970) में उन्होंने लीड रोल भी किया था. एक्टिंग के ऑफर कम होते जाने के बाद उन्होंने डायरेक्शन में हाथ आजमाया और शत्रुघ्न सिन्हा स्टारर 'कालीचरण' से हिट डेब्यू किया. 

अनिल कपूर की बात करें तो वो 'खलनायक' के बाद, सुभाष घई के प्रोडक्शन में बनी अगली फिल्म 'त्रिमूर्ति' (1995) में फिर से उनके हीरो बने. दोनों ने 1999 में आई सुपरहिट फिल्म 'ताल' और 2008 में आई 'युवराज' में भी साथ काम किया. 

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