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साउथ वर्सेज बॉलीवुड पर बोले आयुष्मान- उनको अपनी मार्केट का पता है

पिछले कुछ समय में हिंदी वर्सेज साउथ की फिल्मों को लेकर डिबेट चलने लगी है. सोशल मीडिया की बात हो या स्टार्स के बीच का वॉर, हर कोई इसमें अपनी राय दे रहा है. विवाद की शुरूआत महेश बाबू के बयान से हुई थी, जहां उन्होंने कहा था कि बॉलीवुड उन्हें अफॉर्ड नहीं कर सकता. जवाब में सुनील शेट्टी ने बॉलीवुड को बड़ा बताते हुए इशारे-इशारे में कह दिया था कि बाप तो बाप होता है.

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आयुष्मान खुराना
आयुष्मान खुराना
स्टोरी हाइलाइट्स
  • हिंदी भाषा की डिबेट पर भी बोले आयुष्मान
  • अनेक में निभा रहे हैं एक अनोखा किरदार

आयुष्मान खुराना की आगामी फिल्म 'अनेक' आ रही है जो नॉर्थ ईस्ट के अलगाववाद पर आधारित है. ट्रेलर देखकर लगता है कि उसमें नॉर्थ,साउथ विवाद, हिंदी और अन्य भाषाओं की बहस को भी छुआ गया है.

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बॉलीवुड और साउथ इंडस्ट्री की इस डिबेट में अब आयुष्मान खुराना ने अपनी राय रखी है. आयुष्मान कहते हैं, मैं यही कहूंगा कि साउथ के सिनेमा को अपनी मार्केट खूब पता है. वो पब्लिक की नब्ज पहचानते हैं. यह महज संयोग की बात है कि इस वक्त हमारी फिल्में पब्लिक के साथ बॉक्स ऑफिस पर लैंड नहीं कर पा रही हैं. अब भूल भूलैया 2 चल गई, कहीं न कहीं इस फिल्म ने कनेक्ट किया है न. 

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आयुष्मान ने कहा कि मैं मानता हूं कि कमर्शल सिनेमा के ग्रामर में गलती है. कई बार हमारी फिल्म ज्यादा इंटेलिजेंट होती है या फिर कुछ ज्यादा ही मासी हो जाती है. यहां हमें इन दोनों के बीच रास्ता बनाने की जरूरत है. वहां पर कंपलीट कमर्शल फिल्मों का ग्रामर अलग होता है, उनका सुर अलग होता है. देखें, नॉर्थ और साउथ की कोई डिबेट ही नहीं है. यहां बस दर्शकों के कनेक्शन का सवाल है. कोई नहीं देख रहा है कि हिंदी फिल्म है या तमिल या तेलुगु फिल्म है, अगर आपको कहानी पसंद आएगी, तो आप देखेंगे ही न. अब भूल भूलैया 2 लोगों को पसंद आ रही है.

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आयुष्मान ने बॉलीवुड बनाम साउथ ही नहीं, हिंदी बनाम अन्य भाषाओं के मामले में भी अपनी राय विस्तार से रखी. उन्होंने कहा कि हमारे देश की सबसे बड़ी खूबसूरती इसकी विविधता रही है. कहीं न कहीं यह हमारे लिए कमजोरी भी बन चुकी है. ये वो देश है ही नहीं, जहां एक भाषा को मेन रखा जा सके. हम ऐसा नहीं कर सकते हैं. हर एक भाषा महत्वपूर्ण है. हर किसी को अपने कल्चर से प्यार है. 

आयुष्मान ने कहा कि मुझे लगता है कि भाषा एक नहीं होनी चाहिए बल्कि दिल एक होना चाहिए. इस पर हमें फोकस करना चाहिए. आप ही बताएं, जिसे बचपन से हिंदी बोलना नहीं आता, अचानक से उससे कहा जाए कि हिंदी सीख लो और यही बोलो, तो कैसा महसूस होगा. मुझे ही कोई कहे कि आज से आप तमिल बोलेंगे, तो मैं खुद हैरान हो जाऊंगा. देखिए ये प्रैक्टिस है. प्रैक्टिकल ही नहीं है. इसलिए हमें हर भाषा को तरजीह देनी चाहिए. अगर हम साउथ की फिल्में देख रहे हैं, तो वहां की भाषा को अपना ही लिया है न.

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