
हम जिस यथार्थ में जी रहे हैं, ठीक इसी समय में ऐसा ही कोई और यथार्थ भी तो हो सकता है... क्या हो अगर कोई व्यक्ति अपनी रियलिटी से किसी दूसरी पैरेलल रियलिटी में पहुंच जाए? इस आईडिया को थ्योरी में पैरेलल डायमेंशन या पैरेलल यूनिवर्स भी कहा जाता है. इस काल्पनिक आईडिया की जमीन पर दुनिया भर में साइंस-फिक्शन की कई अनोखी कहानियां उगी हैं. हॉलीवुड की बात करें तो 'अवेंजर्स: एंडगेम' के बाद मार्वल सिनेमेटिक यूनिवर्स की कहानियां इसी आईडिया पर आगे बढ़ी हैं. 'डॉनी डार्को' और 'इंसेप्शन' जैसी कल्ट फिल्में पैरेलल रियलिटी की थ्योरी पर ही बनी हैं.
इधर घरेलू सिनेमा की बात करें तो कुछ दिन पहले 'बैदा' नाम की एक फिल्म का ट्रेलर आया, जिसकी कहानी में यही पैरेलल रियलिटी वाला ट्विस्ट है. डायरेक्टर पुनीत शर्मा की इस फिल्म का टीजर और ट्रेलर देखकर ही जनता इतनी इम्प्रेस हुई कि इसकी तुलना 'तुम्बाड़' और 'कांतारा' जैसी फिल्मों से होने लगी क्योंकि ये दोनों ही फिल्में बहुत नए तरह की कहानियां लेकर आई थीं. 'बैदा' के ट्रेलर में मिल रही कहानी की झलक भी जनता को इन्हीं फिल्मों की तरह इम्प्रेस कर रही है.
ये कहानी लिखी है सुधांशु राय ने, जो 'बैदा' के लीड एक्टर और प्रोड्यूसर भी हैं. सुधांशु ने अपनी फिल्म को लेकर डिटेल में बात करते हुए हमें बताया कि 'बैदा' किस तरह उनकी कल्पना से निकलकर स्क्रीन तक पहुंची है. 21 मार्च को थिएटर्स में रिलीज होने जा रही 'बैदा' क्या कमाल करेगी, ये तो वक्त ही बताएगा. मगर इस फिल्म के बनने की कहानी अपने आप में बहुत इम्प्रेस करने वाली है.
एक बारिश ने सुधांशु को बना दिया कहानीकार
गोरखपुर से आने वाले सुधांशु ने बताया कि दिल्ली में पढ़ाई के दिनों में वो नई सड़क पर किताबें खरीदने गए थे. उस दिन पुरानी दिल्ली की तंग गलियों पर गिर रही बारिश ने सुधांशु को दुनिया देखने की एक नई नजर दी. वो बताते हैं, 'ये करीब 20 साल पुरानी बात है, तब सड़क पर ही किताबों के अड्डे सजते थे. बारिश हो रही है, उसी में रेहड़ी-पटरी वाले बैठे हुए हैं. हम छोटी-छोटी गलियों से निकल रहे हैं, पतली पतली गलियां हैं. कुछ दुकानें बेसमेंट में होती थीं. तो मुझे उस दिन ऐसा लगा जैसे मैं किसी मैजिकल जगह पर चला आया हूं. हल्की हल्की लाइट्स जलती थीं ऊपर से, शीशे पर पानी बिखरा हुआ होता था तो रौशनी और भी मजेदार लगती थी. उस दिन एहसास हुआ कि मैं अपनी आंखों से वो दुनिया देख पा रहा हूं जिसे आम तौर पर लोग नकार देते हैं या देख नहीं पाते हैं क्योंकि बिजी होते हैं.'
इस अनुभव के बाद सुधांशु को कहानियों के संसार में मजा आने लगा. फिर जब शादी हुई तो सुधांशु अपनी पत्नी को कहानियां सुनाने लगे. उनकी कहानियों के किरदार बहुत दिलचस्प और रहस्यमयी होते थे. सुधांशु बताते हैं, 'आप मुझे कोई भी टॉपिक दीजिए, किसी मैटेरियल पर भी, भले पंखे की बात करें, मैं उस कॉन्सेप्ट पर अभी के अभी आपको एक कहानी बनाकर सुना दूंगा. तो ऐसे ही हमारा ये रूटीन बन गया और मैंने उन्हें रोजाना इस तरह कहानी बनाकर सुनाना शुरू किया. फिर उन्होंने कहा कि ये काम तुम्हें शुरू करना चाहिए.'
ऐसे आया अलग कहानियां कहने का आईडिया
सुधांशु ने आगे बताया, 'नीलेश मिश्रा जी की कहानियां हम लोग सुना करते थे. उनकी कहानियां प्रैक्टिकल हुआ करती थीं. मैंने उन्हें सुना और फिर मुझे पता लगा कि मेरी कहानियां तो बहुत अलग हैं और इस तरह की कहानियों के लिए तो मार्किट अभी पूरी तरह खाली है. टाइम ट्रेवल-पैरेलल यूनिवर्स ये सब एक्सप्लोर ही नहीं हुआ है. तो वहां से फिर मैंने कहानियां लिखना, उन्हें नैरेट करना और यूट्यूब पर डालना शुरू किया.'
कॉलेज के वक्त से ही सुधांशु के दिमाग में जो क्रिएटिव आईडिया आते थे, उन्हें अब यूट्यूब चैनल का प्लेटफॉर्म मिल गया और कहानीकार सुधांशु राय के नाम से उनका यूट्यूब चैनल बहुत पॉपुलर हो गया. इसी चैनल पर कभी सुधांशु ने एक कहानी सुनाई थी 'सिल्वेस्टर कॉटेज'. जब सुधांशु ने ये कहानी सुनाई तो लोग दंग रह गए और उन्होंने तय किया कि जब वो फिल्म बनाएंगे तो यही कहानी उनकी पहली फिल्म बनेगी. सुधांशु को साथ मिला उनके दोस्त पुनीत शर्मा का जो उनकी ही तरह फिल्में बनाना चाहते थे. और यहां से पुनीत और सुधांशु ने मिलकर अपनी पहली फिल्म बनाने की तैयारी शुरू की.
'बैदा' से पहले छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स से की तैयारी
सुधांशु और पुनीत ने एक शॉर्ट फिल्म बनाई थी 'चायपत्ती'. करीब 15 मिनट की इस शॉर्ट फिल्म से इस जोड़ी को पहली बार चर्चा मिली थी. इस शॉर्ट फिल्म के बारे में सुधांशु ने बताया, 'हमने पहली बार शॉर्ट फिल्म बनाई एक्स्परिमेंट के तौर पर. हमने ये पुनीत के घर पर बेसमेंट में ही शूट की थी. टेक्निकली पहली बार कैमरा हमारे सामने आया था तो हम जानना चाहते थे सबकुछ कि लाइटिंग वगैरह क्या होती है. ये सारी टेक्निकल चीजें हमने वहां से सीखीं.'
शॉर्ट फिल्म से मोटिवेशन लेकर सुधांशु ने अपनी कहानियों में आए किरदार डिटेक्टिव बुमराह पर बेस्ड एक वेब सीरीज बनाई, जो पहले यूट्यूब पर और फिर एम.एक्स. प्लेयर पर रिलीज हुई. इसके बाद वो एक 24 मिनट की शॉर्ट फिल्म 'चिंता मणि' लेकर आए जो डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई. IMDB पर इस शॉर्ट फिल्म की रेटिंग 8.8 है.
इसके बारे में सुधांशु ने बताया, 'हमने एक टेक्निकली बेहतर शॉर्ट फिल्म 'चिंता मणि' बनाई. उसमें आपको कलर ग्रेडिंग, लाइटिंग और एक्टिंग वगैरह बेहतर मिलेंगी. उसे हमने लर्निंग के लिए बनाया था. वहां पर हमने डी.ओ.पी. को बुलाया, पूरी टीम को इकठ्ठा किया. लाइटिंग कैसे होती है, एक फिल्म का पूरा प्रोसेस कैसे चलता है, कॉस्टयूम क्या होता है, मेकअप क्या होता है, वो सब हमने उस शॉर्ट फिल्म से सीखा. फिर हमने तय किया कि अब फिल्म बनाने का समय आ गया है.'
लिमिटेड बजट में बनी 'बैदा' का 'कांतारा' कनेक्शन
सुधांशु ने अपनी कहानी 'सिल्वेस्टर कॉटेज' को एक फीचर फिल्म की स्क्रिप्ट में बदला और पुनीत शर्मा के साथ फिल्म बनाने का सपना पूरा करने में जुट गए. लेकिन सुधांशु के साथ भी वही दिक्कत थी जो हर इंडिपेंडेंट फिल्ममेकर के साथ होती है- बजट. लिमिटेड बजट में 'बैदा' को अपनी पूरी क्रिएटिविटी के साथ पर्दे पर लाने के लिए सुधांशु ने दो चीजें कीं. कन्नड़ फिल्ममेकर ऋषभ शेट्टी की सरप्राइज करने वाली फिल्म 'कांतारा' की तरह उन्होंने भी अपनी फिल्म का 85% हिस्सा गोरखपुर में अपने गांव में शूट किया, जिसकी अपनी एक अलग कहानी है.
सुधांशु ने दूसरा बड़ा काम ये किया कि उन्होंने फिल्म के लिए टेक्निकल टीम बहुत मजबूत जुटाई. उनकी फिल्म के एडिटर प्रतीक शेट्टी हैं जिन्होंने 'कांतारा' और '777 चार्ली' एडिट की हैं. ये दोनों ही नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली फिल्में हैं. 'बैदा' का टीजर और ट्रेलर देखते हुए आप फिल्म के बैकग्राउंड स्कोर से इम्प्रेस हुए बिना नहीं रह सकते. इस काम के लिए सुधांशु ने इंटरनेशनल मंचों पर तारीफ पा चुके रोनाडा बक्केश और कार्तिक चेनोजी राव के साथ कोलेबोरेट किया. सुधांशु ने कहा, 'हमने टेक्निकल टीम बहुत अच्छी चूज की क्योंकि हमें पता था कि हमें अच्छा कंटेंट देना है. और अगर हमने स्टार्स पर इन्वेस्ट कर दिया तो हमें टेक्निकल क्रू में समझौता करना पड़ेगा.'
सुधांशु बताते हैं कि 'बैदा' के ट्रेलर पर उन्हें हर तरफ से जो रिस्पॉन्स मिला, उससे वो बहुत खुश हैं. उन्हें उम्मीद है कि लोग उनका काम सराहेंगे और उनके इस एक्स्परिमेंट को प्यार देंगे. हालांकि, वो फिल्म की कमाई और बिजनेस को लेकर बहुत टेंशन नहीं ले रहे. यहां देखिए 'बैदा का ट्रेलर:
अपनी बात खत्म करते हुए सुधांशु ने कहा, 'हम जैसे फिल्ममेकर्स पैशन वाले लोग होते हैं. हमारा ये मानना होता है कि आज नहीं तो कल हमारा ड्यू हमें मिल ही जाएगा. मिल जाए तो अच्छा, ना मिले तो हम रुकने वाले नहीं हैं, हमारा अगला प्रोजेक्ट रेडी है. 'तुम्बाड़' ने पहले जब थिएटर्स में बड़ी कमाई नहीं की थी, तो वो ओटीटी पर बहुत पॉपुलर हुई और बाद में री-रिलीज से उन्होंने कमाई भी जमकर कर ली. हम कहीं ना कहीं से तो पॉपुलर हो जाएंगे ये हमें भरोसा है क्योंकि कंटेंट हमारा बहुत अच्छा है.'