
कुछ दिन पहले ही हिंदी फिल्म 'बैदा' का ट्रेलर रिलीज हुआ जिसने भारतीय फिल्म लवर्स की एक्साइटमेंट बहुत बढ़ा दी है. इस साइंस-फिक्शन फिल्म का विजुअल, कॉन्सेप्ट और म्यूजिक देखकर लोग हैरान हैं. सोशल मीडिया पर जनता इसकी तुलना बहुत कम बजट में बनी 'तुम्बाड़' और 'कांतारा' जैसी फिल्मों से कर रहे हैं, जो कल्ट बन चुकी हैं.
'बैदा' को पुनीत शर्मा ने डायरेक्ट किया है और सुधांशु राय इसमें लीड रोल निभाने के साथ-साथ इसके प्रोड्यूसर भी हैं. जो लोग यूट्यूब पर किस्से-कहानियां देखने के शौकीन हैं, वो सुधांशु को 'कहानीकार' के नाम से भी पहचानते होंगे. 'बैदा' सुधांशु की पहली फिल्म है, मगर इसका ट्रेलर भर देखने से ही आप इसकी कहानी की गिरफ्त में फंस जाते हैं.
'बैदा' की प्रोडक्शन वैल्यू देखकर ये कह पाना बहुत मुश्किल है कि ये बॉलीवुड फिल्मों के एवरेज प्रोडक्शन बजट, 20-30 करोड़ के मुकाबले बहुत कम बजट में बनी फिल्म है. मगर अपने लिमिटेड रिसोर्स के साथ 'बैदा' को इस स्केल पर शूट करने के लिए सुधांशु ने जो रास्ता चुना वो ऋषभ शेट्टी की कन्नड़ ब्लॉकबस्टर 'कांतारा' जैसा है.
अपने गांव में शूट की फिल्म
'कांतारा' के एक्टर-डायरेक्टर-प्रोड्यूसर ऋषभ शेट्टी कम बजट में फिल्म बनाने में इसलिए कामयाब हुए थे क्योंकि उन्होंने इसका शूट अपने गांव में किया था. इसी तरह सुधांशु ने भी 'बैदा' अपने गांव में शूट की है.
एक खास बातचीत में सुधांशु ने हमें बताया कि वो गोरखपुर के गोला बाजार इलाके के रहने वाले हैं और उन्होंने अपनी फिल्म का 85% हिस्सा इसी इलाके में शूट किया है. 'बैदा' के ट्रेलर में पनघटा नाम के जिस गांव में कहानी घट रही है, वो सुधांशु के अपने ही गांव, बनकटा का बदला हुआ नाम है. दिल्ली में पढ़ाई करने वाले सुधांशु ने बताया कि जिस तरह का विजन उन्होंने अपनी फिल्म के लिए सोचा था उसे कम बजट में पूरा करने के लिए उन्हें लोकल हेल्प की बहुत जरूरत थी.
बजट कंट्रोल करने के इस नुस्खे को समझाते हुए सुधांशु ने कहा, 'लीड एक्टर भी मैं ही हूं, लेखक भी मैं ही हूं तो राइटिंग का पैसा बच गया. लोकेशन का हमने सारा पैसा बचा लिया क्योंकि हमने अपने गांव में शूट किया है. कोई रिश्तेदार है, कोई अपनी जमीन है, कोई अपना खेत है. आर्ट का भी काम हमने लोकल लोगों से मिलकर करवाया है.'
रिश्तेदारों के घर में रुका फिल्म क्रू
'बैदा' को पर्दे तक लाने में सुधांशु के पिता का भी बड़ा रोल रहा. सुधांशु ने बताया, 'मेरे पिता वहां उन लोगों से मिले जिनकी पिछली पीढ़ियों में, ब्रिटिश दौर के समय से ही लोग झोंपड़ी बनाया करते थे. उन्होंने बांस की रियल झोंपड़ी बनाई हैं, जैसे उस दौर में बना करती थीं. इसमें बहुत कुछ खर्च हमने बचाया है, फिर भी खर्च तो होता ही है.'
अपने गांव में शूट करना सुधांशु के लिए किस तरह मददगार रहा, ये बताते हुए उन्होंने कहा, 'लगभग 100 लोगों का क्रू शूट करने गया था. हमने उन्हें अपने घर पर रुकवाया था, रिश्तेदारों के घर रुकवाया था. वहां लोग सपोर्टिव तो होते ही हैं और अब तो बहुत लोगों के घर भी खाली ही रहते हैं क्योंकि बच्चे तो कमाने बैंगलोर और मुंबई-दिल्ली चले गए हैं. तो कोई चाचा था, कोई भैया था... किसी के घर 4 लोग ठहरा दिए, किसी के घर 10 लोग. हलवाई रख लिया था खाना बनाने के लिए और खाना तो उस तरफ मजेदार बनाते ही हैं. अपने गांव में शूट करने का ये सपोर्ट और फायदा तो मिलता ही है.' गोरखपुरियों के लिए सुधांशु ने बताया कि 'बैदा' के टीजर में दूसरा ही शॉट सरयू नदी का है, जिससे लोकल लोग बहुत रिलेट करते हैं. उन्होंने बिसरा इलाके के प्राचीन मंदिर के पास भी शूट किया है.
फिल्म में हिंदी के साथ भोजपुरी का भी प्रयोग
'बैदा' एक हिंदी फिल्म है, लेकिन गोरखपुर में कहानी सेट होने की वजह से लोकल फ्लेवर देने के लिए सुधांशु ने भोजपुरी भी खूब इस्तेमाल की है. उन्होंने बताया, 'मैंने अपनी इच्छा से 'बैदा' में भोजपुरी का इस्तेमाल किया है, वो भी ठीक उसी रॉ फॉर्मेट में. इस फिल्म में एक भोजपुरी गाना भी है जो बहुत साफ सुथरा और अच्छा गाना है.' सुधांशु का कहना है कि इस फिल्म से उनके पास काबिल टेक्निशियन्स की के टीम भी जुड़ गई है और वो आगे हिंदी के साथ-साथ अपनी मातृभाषा भोजपुरी में भी ऐसे प्रोजेक्ट बनाना चाहते हैं, जो लीक से बहुत हटकर हों. यहां देखें 'बैदा' का ट्रेलर:
'बैदा' 21 मर्च को थिएटर्स में रिलीज हो रही है. इस फिल्म की कहानी पैरेलल यूनिवर्स की थ्योरी पर बेस्ड है, जिसपर हॉलीवुड में काफी काम हुआ है. लेकिन हिंदी फिल्मों में इस तरह का एक्स्परिमेंट बहुत कम देखने को मिला है. सुधांशु राय के साथ 'बैदा' में जानेमाने एक्टर सौरभ राज जैन, हितेन तेजवानी और तरुण खन्ना भी महत्वपूर्ण किरदारों में हैं.