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हनी सिंह के 'मेनिएक' से एक सदी पहले हिंदी गानों में आई थी भोजपुरी, ये था हिंदी फिल्मों का पहला भोजपुरी गाना

हनी सिंह के गाने 'मेनिएक' के काफी पहले से भोजपुरी, हिंदी गानों में उतरती रही है. बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी किरदार भोजपुरी में बोलते और गाने गाते नजर आए हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदी फिल्मों के गानों में भोजपुरी पहली बार कब इस्तेमाल हुई थी?

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हनी सिंह के 'मेनिएक' से एक सदी पहले हिंदी गानों में आई थी भोजपुरी
हनी सिंह के 'मेनिएक' से एक सदी पहले हिंदी गानों में आई थी भोजपुरी

सिंगर रैपर हनी सिंह का लेटेस्ट पॉपुलर गाना 'मेनिएक' पिछले कुछ दिनों से कंट्रोवर्सी की जड़ बना हुआ है. करियर के गिरते ग्राफ, पर्सनल लाइफ के स्ट्रगल और खराब हेल्थ से काफी समय तक जूझने के बाद हनी पिछले कुछ समय से कमबैक के मिशन पर हैं. उनके करियर की शुरुआती कामयाबी के साथ विविध मसलों पर तमाम विवाद जुड़े थे. अब 'मेनिएक' को लेकर जिस तरह विवाद बढ़ता जा रहा है, उससे ऐसा लगता है कि हनी अब अपने पहले वाले फॉर्म में कमबैक कर चुके हैं! 

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'मेनिएक' में सारा विवाद गाने के बीच में आने वाली दो भोजपुरी लाइनों को लेकर है, जिन्हें रागिनी विश्वकर्मा ने गाया है. लेकिन भोजपुरिया समाज हनी से इसलिए खफा हो गया है कि इतने नामी आर्टिस्ट होने के बाद उन्होंने भोजपुरी को छुआ भी, तो उसी अश्लीलता वाले एंगल को भुनाने के लिए जिससे पीछा छुड़ाना पहले ही भारी पड़ रहा है. 

कोर्ट पहुंचा हनी सिंह के 'मेनिएक' गाने का विवाद 
एक्ट्रेस और भोजपुरी फिल्म प्रोड्यूसर नीतू चंद्रा ने हनी सिंह के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में PIL फाइल कर दी है. नीतू ने हनी सिंह के गाने में 'आपत्तिजनक कंटेंट' को लेकर कोर्ट में शिकायत की है और साथ ही ऐसे भोजपुरी गानों पर बैन लगाने की मांग की है जो मिसोजिनी को प्रमोट करते हैं. नीतू ने आरोप लगाया है कि ऐसे गाने महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई करते हैं और उनका अपमान करते हैं. 

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'मेनिएक' गाने में हनी सिंह, ईशा गुप्ता (क्रेडिट-सोशल मीडिया)

ऐसा नहीं है कि भोजपुरी गायकों के गाए गानों से भोजपुरी समाज आहत नहीं हुआ है. बल्कि पिछले कुछ समय से भोजपुरी फिल्ममेकर्स, साहित्यकार और कलाकार अपनी भाषा के एंटरटेनमेंट पर लगे 'अश्लीलता' के टैग से लगातार लड़ रहे हैं. और ऐसे में एक पॉपुलर कलाकार का उसी टैग के साथ भोजपुरी को हाईलाइट करना विरोध की वजह बना हुआ है. 'मेनिएक' के काफी पहले से भोजपुरी, हिंदी गानों में उतरती रही है. बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी किरदार भोजपुरी में बोलते और गाने गाते नजर आए हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदी फिल्मों के गानों में भोजपुरी पहली बार कब इस्तेमाल हुई थी? आइए बताते हैं... 

भोजपुरी में थे दिलीप कुमार की फिल्म के कई गाने 
हनी सिंह के चोली-देवर भोजपुरी एडवेंचर से काफी पहले भोजपुरी के लोकगीत और भोजपुरी भाषा, हिंदी के पॉपुलर गीतों का हिस्सा बनती रही है. यहां तक कि भारतीय सिनेमा में जिस साल फिल्मों में आवाज आई उसी साल भोजपुरी, हिंदी फिल्मी गीतों का हिस्सा बनने लगी थी. इनमें से जिस फिल्म में भोजपुरी गाने पहली बार बहुत प्रमुखता से आए वो थी दिलीप कुमार और कामिनी कौशल स्टारर 'नदिया के पार' (1948). 

इस फिल्म की कहानी नाव चलाने वाले मल्लाहों पर बेस्ड थी. कहानी गांव के बैकग्राउंड पर थी तो इसमें लोगों के बोलचाल की भाषा भोजपुरी मिक्स हिंदी रखी गई. लेकिन कहानी को ऑथेंटिक फील देने के लिए म्यूजिक डायरेक्टर सी. रामचंद्रा ने फिल्म में आधे से ज्यादा गाने भोजपुरी में रखे. फिल्म का टाइटल ट्रैक 'मोरे राजा हो, ले चल नदिया के पार' अपने दौर में जमकर पॉपुलर हुआ. इसके साथ ही 'कठवा के नैया' और 'नजरिया में अइहो, डगरिया में अइहो' गाने भी खूब पसंद किए गए. 

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संजय दत्त की नानी ने हिंदी फिल्म में रखवाई भोजपुरी ठुमरी 
दिलीप कुमार की फिल्म से पांच साल पहले कुंभ मेले में बिछड़ने-मिलने के प्लॉट पर एक फिल्म आई थी 'तकदीर'. संजय दत्त की मां, स्वर्गीय एक्ट्रेस नरगिस ने इसी फिल्म से फिल्मों में कदम रखा था. 'तकदीर' के डायरेक्टर महबूब खान थे, जिन्होंने बाद में नरगिस को लेकर 'मदर इंडिया' बनाई थी.

 

नरगिस की मां जद्दनबाई अपने वक्त में मशहूर तवायफ थीं और उन्होंने हिन्दुस्तानी क्लासिकल संगीत की ट्रेनिंग कई उस्तादों से ली थी. बाद में उन्हें फिल्मों में मौका मिला और वो एक्ट्रेस के साथ-साथ म्यूजिक कंपोजर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर भी रहीं. बनारस में जन्मीं और वहां अच्छा-खासा समय बिता चुकीं जद्दनबाई को भोजपुरी से काफी लगाव था. 

भोजपुरी सिनेमा का इतिहास लिखने वाले लेखक मनोज भावुक ने अपनी किताब में बताया है कि जब 'तकदीर' बन रही थी तो जद्दनबाई ने डायरेक्टर महबूब खान से फिल्म में एक ठुमरी रखने की जिद की. ये ठुमरी भोजपुरी में थी और इसका टाइटल था 'बाबू दरोगा जी कौन कसूर पे धरले सइयां मोर.' ये शायद किसी हिंदी फिल्म का सबसे पुराना भोजपुरी गीत है जिसका वीडियो यूट्यूब पर अवेलेबल है. हालांकि ये भी हिंदी फिल्म में आया पहला भोजपुरी गीत नहीं है. 

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भारतीय फिल्मों में आवाज के साथ ही गानों में आ गई थी भोजपुरी
भारत में पहली बोलती फिल्म 1931 में आई 'आलम आरा' थी. और 1931 में ही, यानी हनी सिंह के 'मेनिएक' से 94 साल पहले, हिंदी के गीतों में भोजपुरी की एंट्री हो चुकी थी. लेखक मनोज भावुक ने अपनी किताब 'भोजपुरी सिनेमा के संसार' में बताया है कि 1931 में ही कम से कम तीन ऐसी फिल्में रिलीज हुई थीं जिनके गानों में भोजपुरी प्रयोग की गई थी. 

फिल्म 'दौलत का नशा' में गीतकार मुंशी सागर ने भोजपुरी में एक मुजरा लिखा था 'गगरिया भरत न देख हो बांके छैला.' 'नूरजहां' में 'जब से मोहन दरसवा दिखाई गयो रे' और 'फरेबीलाल' का गाना 'बलमुआ साथी कहो मोसे बतिया' भी भोजपुरी में लिखे गए थे. 

फिल्मों के इतिहास के हिसाब से देखें तो जहां हिंदी फिल्मों में भोजपुरी की एंट्री 1931 से ही हो गई थी. वहीं, हिंदी फिल्मी गीतों में पंजाबी लिरिक्स का उतरना कुछ साल बाद शुरू हुआ. इसे लेकर कोई सटीक जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, मगर फिल्मी गानों में पंजाबी की एंट्री आइकॉनिक म्यूजिक कंपोजर मास्टर गुलाम हैदर के बनाए गानों से नजर आनी शुरू होती है. लाहौर में जन्मे गुलाम हैदर, पंजाबी में बनी शुरुआती फिल्मों 'मजनूं' (1935) और 'गुल-ए-बकावली' (1939) में संगीत दे चुके थे. उन्हें अक्सर फिल्मी गानों में पंजाबी लोकगीतों के एलिमेंट्स लाने का क्रेडिट दिया जाता है. 

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मेनस्ट्रीम हिंदी फिल्मों में भोजपुरी और पंजाबी के एंट्री ऑलमोस्ट एक सदी पहले ही हो चुकी थी. इन दोनों ही भाषाओं ने हिंदी सिनेमा के गानों की इमोशनल रेंज और एक्सप्रेशन को विस्तार देने में बड़ा रोल अदा किया है. लेकिन दिलचस्प बात ये है कि हनी सिंह जहां अपने गानों के लिरिक्स के लिए पहले पंजाबी बोलने वालों का निशाना बन चुके हैं, वहीं अपने गाने में पहली बार भोजपुरी इस्तेमाल करते ही उन्होंने भोजपुरी समाज को भी आहत कर दिया है. 

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