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फिल्मों में भी पॉलिटिक्स का तनाव है क्या, पता करो मुल्क में चुनाव हैं क्या...

फिल्मों पर राजनीति होना कोई नई बात नहीं है. लेकिन पिछले कुछ सालों में राजनीति का इतने स्पष्ट तरीके से फिल्मों में उतर आना एक सरप्राइज करने वाली चीज है. इससे पहले फिल्मों में रियल लाइफ पॉलिटिक्स का जिक्र किरदारों की कहानियों के जरिए, फिल्म के प्लॉट में बहुत महीन बुना हुआ होता था.

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विक्की कौशल-सनी देओल
विक्की कौशल-सनी देओल

सुपरस्टार शाहरुख खान की कमबैक फिल्म कही गई 'पठान' बहुत बड़ी हिट साबित हुई. फिल्म की सक्सेस का अंदाजा रिलीज से पहले ही बहुत लोग लगा चुके थे. फिल्म हिट ही नहीं हुई, बल्कि ऑल टाइम ब्लॉकबस्टर बनी. इसका नेट इंडिया कलेक्शन (543 करोड़) बॉलीवुड के लिए सबसे बड़ा कलेक्शन है. लेकिन ये अंदाजा किसी को दूर-दूर तक नहीं था कि इसी साल बॉलीवुड को 200 करोड़ से ज्यादा कमाने वाली एक बहुत तगड़ी स्लीपर हिट मिल जाएगी. 

जी हां, छोटे से बजट में बनी, बहुत कम पॉपुलर एक्ट्रेस के लीड रोल वाली फिल्म 'द केरला स्टोरी', अबतक 232 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाई कर चुकी है. बहुत लोगों को उम्मीद है कि एक महीने पहले रिलीज हुई ये फिल्म, आगे भी थिएटर्स में टिकी रहेगी और 250 करोड़ तक कमाएगी. बजट के हिसाब से छोटी और कम पॉपुलर फिल्मों का, इस लेवल पर हिट होना कि वो साल की सबसे बड़ी हिट्स को टक्कर देने लगे, कोई नई बात नहीं है. हां, ये जरूर है कि कुछ साल पहले ऐसा कम ही होता था. 'द केरला स्टोरी' का सरप्राइज हिट होना लोगों को पिछले साल आई 'द कश्मीर फाइल्स' की याद दिलाता है जिसने हर अनुमान को धता बताते हुए, 250 करोड़ से ज्यादा कमाई की. 

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वो फिल्म जिसने खेल बदला 
लगातार दो सालों में दो नॉन-स्टार, कम बजट फिल्मों का 200 करोड़ से ज्यादा कमाना एक दिलचस्प मामला जरूर है. लेकिन थोड़ा पीछे देखने पर समझ आता है कि ये कमाल 'उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक' से शुरू हुआ. 25 करोड़ के बजट में बनी, विक्की कौशल के लीड रोल वाली 'उरी' ने 245 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाई की थी और फिल्म बिजनेस के एक्सपर्ट्स को सारा गणित भुला दिया था! 

ऐसा बिल्कुल नहीं है कि 2019 में आई 'उरी' से पहले बॉक्स ऑफिस को सरप्राइज हिट्स या स्लीपर हिट्स नहीं मिलती थीं. लेकिन इनके कलेक्शन की रेंज इतनी बड़ी नहीं होती थी. 2018 तो सरप्राइज हिट्स के लिए सबसे अच्छा साल था. रानी मुखर्जी की 'हिचकी', तापसी पन्नू की 'मुल्क', आयुष्मान खुराना की 'अंधाधुन' और कार्तिक आर्यन की 'सोनू के टीटू की स्वीटी' इसी साल रिलीज हुईं. इन सबमें शायद सबसे ज्यादा चर्चा राजकुमार राव की फिल्म 'स्त्री' को मिली. 24 करोड़ के बजट में तैयार बताई गई इस फिल्म का नेट इंडिया कलेक्शन 130 करोड़ रुपये था. लगभग इसी के बराबर बजट में बनी 'उरी' के 245 करोड़ से तुलना करने पर समझ आता है कि विक्की कौशल की फिल्म की सक्सेस क्यों बहुत बड़ी थी. 

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फिल्म उरी के पोस्टर में विक्की कौशल

'उरी' और 'द केरला स्टोरी' की कामयाबी का लेवल लगभग एक जैसा है. इस बात से जिज्ञासाओं के सागर में कई सवाल एकसाथ उमड़ने लगते हैं...क्या इस कामयाबी के पीछे पॉलिटिकल सपोर्ट मिलना एक बड़ी वजह है? क्या और फिल्मों ने भी इस फैक्टर को भुनाने की कोशिश की? इन बाकी की फिल्मों का क्या हाल रहा? और क्या फिल्में अभी भी इस कॉमन फैक्टर को भुना रही हैं?
 
राजनीति के खेल में थर्ड अम्पायर बनतीं फिल्में 
5 मई को थिएटर्स में रिलीज हुई 'द केरला स्टोरी' अपनी कहानी के लिए राजनीति के मैदान में जोर आजमाने वाली लेटेस्ट फिल्म है. अदा शर्मा स्टारर ये फिल्म, पहला टीजर आने के बाद से ही अपने दावों के लिए विवादों में आ गई. इसकी कहानी में लीड किरदार एक लड़की है, जिसे ब्रेन वॉश किया जाता है और उसका धर्म बदलवाकर दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी संगठनों में से एक, ISIS जॉइन करने के लिए मोटिवेट किया जाता है. इराक-सीरिया बॉर्डर पर पहुंचकर उसे सारा खेल समझ आता है और वो भाग निकलने की कोशिश करती है. कहानी में उसके साथ दो और लड़कियां हैं जो इसी साजिश का शिकार बनती हैं. हालांकि, वो भारत छोड़ने के लिए राजी नहीं होतीं और इसलिए उन्हें भी बहुत कुछ भुगतना पड़ता है.  

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'द केरला स्टोरी' के टीजर में दावा किया गया कि इस कहानी में जो कुछ दिखाया गया है, केरल की 32 हजार लड़कियों ने वो भोगा है. फिल्म में भी बार-बार यही बात दोहराई गई कि हजारों लड़कियों ने ये नर्क झेला है. इस 32 हजार के आंकड़े पर विवाद उठना शुरू हुआ और कई जगह तो फिल्म पर बैन की मांग उठने लगी. मामला केरल हाईकोर्ट तक पहुंचा, तो कोर्ट ने फिल्म पर बैन लगाने से सरासर इनकार कर दिया. मगर कोर्ट में फिल्म के प्रोड्यूसर ये 32 हजार का आंकड़ा साबित नहीं कर पाए और उन्होंने टीजर से ये बात हटा दी. ये अलग बात है कि तब तक बात काफी आगे बढ़ चुकी थी और इस टीजर को लाखों लोग देख चुके थे. 

फिल्म द केरल स्टोरी का पोस्टर

'द केरला स्टोरी' की आलोचना में कहा गया कि ये केरल की गलत छवि दिखाती है. लेकिन एक बड़ा मुद्दा ये भी उठा कि फिल्म एक खास विचारधारा को प्रमोट करती है, जिसे राजनीतिक फायदे के लिए उठाया जा रहा है. शिव सेना (UBT) सांसद संजय राउत ने आरोप लगाया कि राजनीतिक फायदों के लिए 'द केरल स्टोरी' को विवादित बनाना भारतीय जनता पार्टी का एजेंडा है, जिसकी इस समय केंद्र में सरकार है. उन्होंने ये भी कहा कि कर्नाटक चुनाव से पहले भाजपा ने 'द केरला स्टोरी' का इस्तेमाल 'ध्रुवीकरण' के लिए किया है, जो गलत बात है. 

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इन आरोपों से पहले, कर्नाटक के बेल्लारी में कैम्पेन करने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में 'द केरला स्टोरी' का जिक्र करते हुए, कांग्रेस पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा कि ये फिल्म 'परिश्रमी और प्रतिभाशाली' लोगों से भरे राज्य केरल में हुई 'आतंकी साजिशों का खुलासा करती है' और कांग्रेस इस 'आतंकी प्रवृत्ति के साथ खड़ी नजर आ रही है'. 

उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने 'द केरला स्टोरी' को राज्य में टैक्स-फ्री किया और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी कैबिनेट के साथ फिल्म भी देखी. फिल्म के मेकर्स ने मुख्यमंत्री से मिलकर उन्हें धन्यवाद भी दिया. भाजपा की सरकार वाले कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने 'द केरला स्टोरी' देखी, जिनमें गोवा के सीएम प्रमोद सावंत और असम के सीएम हेमंत बिस्वाशर्मा भी शामिल हैं. लव जिहाद और धर्मांतरण जैसे मुद्दों को अपने एजेंडे में लगातार रखने वाली भाजपा के कई अन्य नेताओं ने भी 'द केरला स्टोरी' के जरिए अपने राजनीतिक विरोधियों पर लगातार निशाना साधा.

क्या चुनावों से है पॉलिटिकल फिल्मों का कनेक्शन?
फिल्मों पर राजनीति होना कोई नई बात नहीं है. लेकिन पिछले कुछ सालों में राजनीति का इतने स्पष्ट तरीके से फिल्मों में उतर आना एक सरप्राइज करने वाली चीज है. इससे पहले फिल्मों में रियल लाइफ पॉलिटिक्स का जिक्र किरदारों की कहानियों के जरिए, फिल्म के प्लॉट में बहुत महीन बुना हुआ होता था. लेकिन अब रियल लाइफ नेताओं का नाम लिया जाना, स्क्रीन पर किरदारों के गेटअप के जरिए पॉलिटिकल चेहरों को दिखाना और पार्टियों के एजेंडे से जुड़े प्लॉट ट्विस्ट, एक आम बात होती जा रही है. 'द केरला स्टोरी' इसका लेटेस्ट उदाहरण है. ये सिलसिला 'उरी' के समय ही शुरू हो चुका था. इस मामले में एक और चीज नोट करने वाली है... फिल्मों का चुनाव के आसपास रिलीज होना. 

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अप्रैल 2019 में देश में लोकसभा चुनाव होने थे. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार अपने 5 साल पूरे कर चुकी थी और अब पार्टी एक बार फिर से चुनाव के दंगल में उतर रही थी. साल की शुरुआत से लेकर, चुनावों तक ऐसी कई फिल्में लगातार आती रहीं जो रियल लाइफ पॉलिटिक्स से बहुत करीब से जुड़ी थीं. इन फिल्मों ने लोकतंत्र के महायज्ञ में अपनी तरफ से भरपूर आहुति डाली.  

जनवरी में 11 तारीख को 'उरी' थिएटर्स में रिलीज हुई. सितंबर 2016 में, भारतीय सेना ने भारत-पाकिस्तान की नियंत्रण रेखा पार कर आतंकी लॉन्च पैड्स पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी. इस आर्मी एक्शन को भारत की तरफ से पठानकोट और उरी में भारतीय सेना के जवानों पर हुए आतंकी हमले का जवाब कहा गया. 'उरी' की कहानी इसी बैकग्राउंड पर थी. विक्की कौशल के लीड रोल वाली फिल्म को शानदार रिव्यू मिले और फिल्म बॉक्स ऑफिस पर भी जोरदार कमाई करने लगी. 'उरी' के डायरेक्टर आदित्य धर ने कहा कि उनकी फिल्म भारतीय सेना को एक ट्रिब्यूट है. लेकिन अप्रैल में हुए चुनावों तक 'उरी' लगातार राजनीति का हथियार बनी रही. फिल्म की कहानी में सेना की वीरता दिखाने के साथ-साथ, सर्जिकल स्ट्राइक प्लान करने के लिए प्रधानमंत्री और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की तारीफ भी थी. फिल्म का एक सबसे पॉपुलर डायलॉग 'न्यू इंडिया' का जिक्र करता है. ये 'न्यू इंडिया' प्रधानमंत्री मोदी के पॉलिटिकल विजन का एक हिस्सा है और उनके भाषणों में बार-बार आता रहा है. ये फिल्म सेना के साहस को दिखाने के साथ साथ बीजेपी के राष्ट्रवाद के एजेंडे को भी भरपूर मजबूती देती है, यही वजह है कि पार्टी और सरकार ने भी इसे भरपूर भुनाया. 

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भाजपा नेता स्मृति ईरानी ने अपने चुनाव क्षेत्र अमेठी में एक मोबाइल थिएटर वैन भेजकर लोगों के लिए 'उरी' की कई स्पेशल स्क्रीनिंग करवाईं. ये सभी स्क्रीनिंग फ्री थीं. उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने भाजपा के प्रयागराज ऑफिस में पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए फिल्म की स्क्रीनिंग रखवाई और अगले ही दिन राज्य के कई कैबिनेट मंत्रियों ने कुम्भ मेले में एक स्पेशल मोबाइल थिएटर में ये फिल्म देखी. पूरे चुनावी मौसम में 'उरी' का डायलॉग ‘हाउज द जोश’ भाषणों का हिस्सा बना रहा. थियेटर में लोगों ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पूर्व सैनिकों के साथ फिल्म देखते और ‘हाउज द जोश’ के नारे लगाते हुए खूब देखा.

'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' रिलीज 

'उरी' के साथ ही 11 जनवरी को पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जीवन पर बनी फिल्म 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' भी रिलीज हुई. इस फिल्म में अनुपम खेर ने लीड किरदार निभाया था. 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' पर गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी को नेगेटिव शेड्स में दिखाने के आरोप भी लगे. भाजपा के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से इस फिल्म का ट्रेलर शेयर किया गया. ट्वीट में लिखा गया, 'एक परिवार ने 10 लंबे सालों तक देश को कैसे मजबूरी में डाले रखा, इसकी दिलचस्प कहानी.' इस फिल्म के डायरेक्टर विजय रत्नाकर गुट्टे के पिता, रत्नाकर गुट्टे 2019 में महाराष्ट्र की गंगाखेड़ सीट पर भाजपा गठबंधन के कैंडिडेट के तौर पर चुनाव लड़े और जीते भी. लेकिन 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' थिएटर्स में नाकाम रही. 

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'ठाकरे'- 'राम की जन्मभूमि' रिलीज 

25 जनवरी को थिएटर्स में नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म 'ठाकरे' रिलीज हुई, जिसके राइटर और प्रोड्यूसर, शिव सेना सांसद संजय राउत थे. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं कर पाई. हालांकि, इसमें शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के विवादित बयानों और उनकी पॉलिटिक्स को बिना किसी संकोच पूरी शान से दिखाया गया था. 2019 की चुनावी रेस से ठीक पहले 'राम की जन्मभूमि' नाम की एक फिल्म, 29 मार्च को थिएटर्स में रिलीज हुई. फिल्म अयोध्या के राम मंदिर पर बेस्ड कहानी थी. 

2022 में 'द कश्मीर फाइल्स' बनाने वाले विवेक अग्निहोत्री की 'द ताशकंद फाइल्स', 2019 के इसी चुनावी दौर में रिलीज हुई थी. फिल्म में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन से जुड़ी कॉन्स्पीरेसी थ्योरी दिखाते हुए, इसके लिए कांग्रेस और इंदिरा गांधी को दोषी बताया गया था. हालांकि मेकर्स ने 'हिस्टोरिकल एक्यूरेसी' यानी घटनाओं को सटीक तरीके से पेश करने का कोई दावा नहीं किया था. प्रधानमंत्री मोदी की बायोपिक 'पीएम नरेंद्र मोदी' का ट्रेलर भी 2019 चुनाव से पहले ही आया था. फिल्म की रिलीज डेट 11 अप्रैल रखी गई थी, जो वोटिंग का दिन था. लेकिन चुनाव आयोग के हस्तक्षेप के बाद फिल्म की रिलीज मई के लिए टाली गई. 

फिल्म द ताशकंद फाइल्स का पोस्टर

कमाल की बात ये है कि इसी दौर में एक और फिल्म का टीजर बहुत चर्चा में था, जिसे राहुल गांधी की कहानी बताया जा रहा था. ये फिल्म थी 'माय नेम इज रागा' (My Name Is RaGa). राइटर-डायरेक्टर रूपेश पॉल की ये फिल्म, किसी रियल फिल्म से ज्यादा राहुल गांधी का एक स्पूफ वीडियो लग रही थी. थिएटर्स में इस फिल्म के रिलीज होने का कोई जिक्र नहीं मिलता. लेकिन उस समय इसके टीजर को काफी चर्चा मिली थी.

चुनाव के साथ-साथ ही आ रही हैं पॉलिटिक्स से जुड़ी फिल्में 
अगले आम चुनाव 2024 में होने हैं और इस लिहाज से ये साल बहुत महत्वपूर्ण है. ऊपर से साल की शुरुआत से लेकर अंत तक कई राज्यों के भी चुनाव होने थे, जिनमें से त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और कर्नाटक के चुनाव हो चुके हैं. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना में चुनाव अभी होने हैं. ये इत्तेफाक नहीं है कि साल की शुरुआत ही जानेमाने डायरेक्टर राजकुमार संतोषी की फिल्म 'गांधी गोडसे- एक युद्ध' से हुई. 'पठान' के साथ थिएटर्स में रिलीज हुई इस फिल्म को दर्शक तो खास नहीं मिले, लेकिन इसकी चर्चा खूब हुई. 

'द केरला स्टोरी' ने पॉलिटिक्स को भरपूर आंच दी और अभी भी दे ही रही है. इस बीच एक बहुत हल्की क्वालिटी की फिल्म 'द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल' का ट्रेलर भी चर्चा में है. फिल्म का ट्रेलर बंगाल में 'कश्मीर से भी बदतर हालात' होने का दावा करता है. इसमें ये भी कहा गया कि बंगाल में हिंदुओं के साथ 'नरसंहार' और 'मास रेप' की घटनाएं हो रही हैं. हाल ही में बंगाल पुलिस ने जब फिल्म के डायरेक्टर को नोटिस भेजा तब ये ज्यादा चर्चा में आई. कुछ दिन पहले ही रणदीप हुड्डा की फिल्म 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' का टीजर रिलीज हुआ और इसे लेकर खूब चर्चा शुरू हुई. भारत की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों में से एक, वीर सावरकर को भाजपा अपना आदर्श मानती है. दूसरी तरफ सावरकर को लेकर भारतीय इतिहास और राजनीति में काफी विवाद भी रहे हैं. हुड्डा की फिल्म 2024 में रिलीज होगी और यकीनन राजनीतिक गलियारों में इसका काफी शोर भी होगा. 

 

पॉलिटिक्स में अपना सिनेमेटिक योगदान देने के लिए तेलुगु इंडस्ट्री के स्टार निखिल सिद्धार्थ भी तैयार हैं. हाल ही में निखिल की एक नई फिल्म अनाउंस हुई है 'द इंडिया हाउस'. इस फिल्म का कनेक्शन भी वीर सावरकर से है. सावरकर ने लंदन में जिस संगठन इंडिया हाउस को क्रांतिकारी तेवर दिए थे, फिल्म उसी पर आधारित है. RRR स्टार राम चरण के प्रोडक्शन में बन रही ये फिल्म भी अगले साल तक ही रिलीज होगी. लेकिन इस फिल्म से पहले निखिल, इसी साल एक फिल्म लेकर आ रहे हैं, जिसका राजनीति में असर हो सकता है. उनकी फिल्म 'स्पाई' में स्वतंत्रता संग्राम के हीरोज में से एक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के एक रहस्य की कहानी है. नेताजी के निधन को लेकर कई तरह की थ्योरीज हैं और कहा जाता है कि ये देश के सबसे बड़े रहस्यों में से एक है. फिल्म के टीजर में निखिल का किरदार इसी रहस्य का पता लगाने निकल रहा है. 'स्पाई' 29 जून को थिएटर्स में रिलीज हो रही है. 

बॉलीवुड के बड़े स्टार रहे सनी देओल, जो अब खुद भाजपा सांसद हैं, इस साल 'गदर 2' लेकर आ रहे हैं. साल 2001 में आई उनकी ब्लॉकबस्टर हिट 'गदर' का ये सीक्वल यकीनन राजनीति का तापमान बढ़ाएगा. सनी खुद भी बड़ी राजनीतिक हस्ती हैं, ऐसे में उनकी फिल्म आज के पॉलिटिकल सीन पर कुछ कमेंट्री न करें, इसके चांस बहुत कम हैं. ऊपर से सनी को अपनी पार्टी से तो सपोर्ट मिलेगा ही. 

विचारधारा को सपोर्ट करने के लिए बनाया गया प्लान! 

ये मान लेना सरासर गलत होगा कि इस तरह की सभी फिल्में राजनीति को प्रभावित करने के लिए बनाई जाती हैं, या एक प्लानिंग के तहत इन्हें किसी विचारधारा को सपोर्ट करने के लिए बनाया गया है. लेकिन ये जरूर है कि अगर किसी फिल्म की कहानी में दिख रही पॉलिटिक्स, किसी पार्टी के एजेंडे या विचारधारा से मेल खाती है, तो उसे सपोर्ट मिलने के चांस काफी बढ़ जाते हैं. राजनीति के गलियारों से मिलने वाला सपोर्ट फिल्म को किस तरह की पॉपुलैरिटी और जबरदस्त भीड़ दिला सकता है, इसे 'उरी' 'द कश्मीर फाइल्स' और 'द केरल स्टोरी' की कामयाबी से आसानी से समझा जा सकता है. 

लॉकडाउन के बाद के दौर में फिल्मों के टिकट के दाम कामयाबी का एक बड़ा फैक्टर हैं. 'ब्रह्मास्त्र' 'दृश्यम 2' और थिएटर्स में ताजा बॉलीवुड रिलीज 'जरा हटके जरा बचके' की कमाई में टिकट पर मिली छूट या ऑफर का बहुत बड़ा रोल है. जो फिल्में सरकारों के एजेंडा से मैच करती हैं उनके टैक्स-फ्री होने का चांस भी रहता है, जिससे टिकट के दाम भी कम होते हैं. ये भी दर्शक बढ़ाने में मदद करता है. फिल्मों को टैक्स फ्री घोषित किए जाने के पीछे की राजनीति पर बात करते हुए, जे.एन.यू की प्रोफेसर सौगता भादुड़ी ने इंडिया टुडे से कहा, 'सभी फिल्में पॉलिटिकल होती हैं. अगर किसी एक सरकार का पॉलिटिकल एजेंडा, फिल्म की आइडियोलॉजिकल पोजीशन को मैच करता है, तो सरकार उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने का सोच सकती है.' 

उन्होंने आगे कहा, 'इस बात की संभावना ज्यादा है कि एक फिल्ममेकर फिल्म बनाए और सरकार को किसी गुपचुप तरीके से पता चल जाए कि ये फिल्म, उनकी अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने में फायदा पहुंचा सकती है. इस केस में, सरकार इसे टैक्स-फ्री करने की घोषणा कर सकती है. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग फिल्म देखें.' शायद यही वजह है कि ऐसी फिल्मों की गिनती बढ़ जा रही है जो सरकार की पॉलिटिकल पोजीशन के साथ मैच करती हैं. ये देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के चुनाव से पहले ऐसी और कितनी फिल्में थिएटर्स में पहुंचती हैं और इनमें से कितनी कामयाब हो पाती हैं.


 

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