कल्ट फिल्म लगान में 'कचड़ा' के किरदार से पहचाने जाने वाले आदित्य लाखिया ने सोमवार को अपना जन्मदिन सेलिब्रेट किया है. आदित्य की पहली फिल्म ओम दर बदर रही है. यह क्लासिक फिल्म आज भी कई फिल्म स्टूडेंट्स को दिखाई जाती है. लेकिन इस फिल्म से जुड़ी दिलचस्प बात यह है कि इसके लिए आदित्य ने एक रूपये भी नहीं लिए थे.
लगान में कचड़ा हो या फिर अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजौ के बाबू जी, आदित्य ने हर किरदार को बखूबी स्क्रीन पर निभाया है. आपको बता दें, आदित्य की जिंदगी में ऐसा दौर भी था यहां उन्हें लगातार काम नहीं मिलने की वजह से काफी स्ट्रगल करना पड़ा था. आदित्य अपनी इन स्ट्रगल को हमसे शेयर करते हैं.
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पांच साल रहा बिना काम के
आजतक डॉट इन से बातचीत के दौरान आदित्य ने बताया, वे इन दिनों अपने शहर अहमदाबाद में हैं. आदित्य बताते हैं, मैं पिछले कई सालों से अहमदाबाद में अपने पैरेंट्स के पास रह रहा हूं. स्टेनली का डिब्बा फिल्म के बाद मेरे पास कोई काम नहीं था. रोजाना ऑडिशन व प्रोडक्शन हाउस के चक्कर काटने के बाद भी मैं लगातार पांच साल बिना काम के बैठा रहा. ऐसे में मेरी जितनी भी सेविंग्स बची थी, वो सारी खत्म हो गई. अब मुंबई जैसे शहर में सरवाइव करना भी मुश्किल ही है. हालांकि वो दौर बुरा था, लेकिन अब बीत गया है. मैंने अब बतौर प्रोड्यूसर अपने नई पारी की शुरूआत कर ली है.
अच्छे किरदार के लिए तरस गया हूं
स्ट्रगल के दिनों को याद करते हुए आदित्य कहते हैं, मैं थक-हार कर अपने होमटाउन अहमदाबाद चला आया था. यहां मेरे पैरेंट्स की तबीयत भी ठीक नहीं चल रही थी. उन्हीं की देखभाल कर रहा हूं. इस इंडस्ट्री की यही रीत है, यहां कब किसकी किस्मत पलट जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है. एक ओर लगान, जो जीता वो सिकंदर, अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजौ जैसे प्रोजेक्ट्स से घर-घर पहचान दिलवाई है, वहीं फिल्म में एक अच्छे किरदार के लिए तरस गया था.
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50 फिल्मों से 20 के पैसे ही नहीं मिले
आदित्य कहते हैं, इन सालों में इंडस्ट्री संग मेरे कई मीठे और खट्टे अनुभव रहे हैं. कई फिल्मों में रातों-रात रिप्लेस कर दिया गया हूं. इतना ही नहीं फिल्में करने के बाद भी पैसे नहीं मिले हैं. अगर मैंने कुल मिलाकर 50 फिल्में भी की होंगी, तो उसमें से 20 के पैसे अबतक नहीं मिल पाए हैं. ज्यादातर लोग काम करवाकर पैसे नहीं देते हैं, कभी फिल्म के फ्लॉप होने का हवाला दे देते हैं, तो कई बार टाल मटोल करते रहते हैं. मैं कई बार ठगा जा चुका हूं. हालांकि कोई कंपलेन नहीं है क्योंकि मैंने जो कुछ भी पाया है. यहीं से तो पाया है इसलिए अब फिलहाल फोकस अपने काम और प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने पर है.
प्रोड्यूसर के तौर पर की है नई पारी की शुरूआत
खैर, वो कहते हैं न बुरा वक्त भी काफी देर तक नहीं रहता है. मैं अहमदाबाद से ही मुंबई में ऑडिशन की तलाश कर रहा हूं. इसके अलावा मैंने गुजराती प्रोडक्शन हाउस की भी शुरूआत की है. काफी कम बजट में एक गुजराती फिल्म बनाई है, जिसका नाम है 'खपे' यह अभी कई इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल्स में शिरकत कर रही है. एक दो डायरेक्टर दोस्तों के साथ फिल्में साइन की हैं. बस उम्मीद यही है कि जल्द ही दुख के बादल छट जाएं और मैं अपना मनचाहा काम कर सकूं.