बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि इंडस्ट्री के सशक्त अभिनेताओं में से एक गजराज राव एक वक्त प्रदीप सरकार के असिस्टेंट रह चुके हैं. थिएटर के बाद गजराज ने उन दिनों प्रदीप की एडवर्टाइजिंग एजेंसी में लगभग पांच साल तक बतौर असिस्टेंट काम किया था. गजराज हमसे उनकी ज़िंदगी से जु़ड़े कुछ अनसुने किस्से शेयर करते हैं...
'मैं थिएटर करता था, तो उस दौरान ही मेरी मुलाकात प्रदीप सरकार से हुई थी. उस वक्त वो एडवर्टाइजिंग एजेंसी में ही थे. ऐड्स फिल्म डायरेक्ट करना चाह रहे थे. उन्होंने एजेंसी से निकलकर अपनी खुद की कंपनी खोली और दिल्ली में रहकर ऐड बनाने शुरू किए. बता दूं, उस वक्त लोगों के बीच यह धारणा थी कि अच्छी व क्वालिटी के ऐड्स तो केवल मुंबई में रहकर ही बनाए जा सकते हैं या फिर कोई मुंबई का डायरेक्टर ही इसके काबिल है. यही वजह है क्लाइंट्स को दिल्ली के डायरेक्टर्स पर ज्यादा भरोसा नहीं होता था.'
लेकिन प्रदीप दा भी अपनी जिद्द पर अड़ गए थे, और उन्होंने ठानी थी कि वो दिल्ली में रहकर ही बेहतरीन ऐड बनाएंगे. उन्होंने दिल्ली से ही बहुत सारे फेमस ऐड्स बनाए थे. इसके साथ ही वो म्यूजिक वीडियो में भी अपनी हाथ आजमा रहे थे. जो पहला म्यूजिक वीडियो था, वो शुभा मुद्गल जी के साथ मिलकर 'अबके सावन' रहा. वहां से इसकी बेहतरीन शुरुआत हुई थी. वो ऐसे लीडर थे, जो पूरी टीम को अपने साथ लेकर चलते थे. सबका बड़ा ख्याल रखते थे. मैंने ऐडवर्टाइजिंग का जो कुछ भी सीखा है, बस उन्हीं से सीखा है. गजब के टास्क मास्टर थे. आखिरी वक्त तक वो शूटिंग ही कर रहे थे. मुझे पता चला कि एक हफ्ते से उनकी तबीयत बिगड़ी हुई थी, इसके बावजूद वे परसो शूटिंग सेट पर पहुंचे थे. प्रदीप जी संग काम करने वाले हम असिस्टेंट सुजित सरकार, पवन शर्मा, आलिया सेन, अमित शर्मा जैसे कई दर्जनों लोग आज इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाए हुए हैं.
2 लाख की बजट में बना देते थे म्यूजिक वीडियो
गजराज राव आगे कहते हैं, 'यह जानकर आपको हैरानी होगी कि प्रदीप दा बहुत ही कम बजट में म्यूजिक एल्बम शूट कर लिया करते थे. उन्होंने तो 2 लाख, 4 लाख बजट में पूरी म्यूजिक वीडियो तैयार कर दी है. हालांकि इन प्रोजेक्ट्स को अपने हाथ में लेने का दादा का मूल कारण यही था कि वो क्रिएटिविटी को लोगों को सामने लाना चाहते थे. दिल्ली में रहते हुए उन्हें तमाम बंदिशों के बीच खुद को साबित करना था, उनकी ही डेडिकेशन का नतीजा है कि अब दिल्ली में रह रहे आर्टिस्ट व क्रिएटिव लोगों के लिए कई मौके खुले हैं. कम बजट में काम करने के बावजूद उन्होंने अपनी टीम को कभी खाली हाथ घर नहीं भेजा है. भले पैसे चंद दिए हों लेकिन किसी से मुफ्त में काम नहीं करवाया. उल्टा कई बार खुद की जेब से ही पैसे निकाल कर लोगों की फीस दे दिया करते थे. मैंने उनके साथ करियर की शुरुआत चार से पांच साल काम किया है, मुझसे कभी भी उन्होंने बिना पैसे के काम नहीं करवाया है.'
रोमन बस्ट मूर्तियों के कलेक्शन का था शौक
प्रदीप जी के शौक के बारे में गजराज बताते हैं, 'आपने उनकी फिल्मों में नोटिस किया होगा कि जगह-जगह रोमन बस्ट (ग्रीक गॉड मूर्ति) रखी होंगी. दरअसल वो उसे लेकर बहुत ऑब्सेस्ड थे. उन्हें रोमन बस्ट मूर्तियों को कलेक्ट करने का बड़ा शौक था. जो भी देश-विदेश गए, भले वहां कुछ खरीदा हो या न लेकिन वो ग्रीक गॉड की अलग डिजाइनों वाली मूर्ति की खरीददारी जरूर करते थे. वो कमाल के आर्ट डायरेक्टर थे. ऐड के दौरान सेट को सजाना, ऐड की फॉन्ट कैसी होगी, इन सब चीजों में उनका बड़ा मन लगता था.'
कहा था, तुम्हारे लिए स्क्रिप्ट लिख रहा हूं...
गजराज राव अपनी बॉन्डिंग को याद कर कहते हैं, 'जब तक मैंने दिल्ली में रहकर उनके साथ काम किया, तो रोजाना हम मिलते थे. फिर 2001 में मैंने खुद की एडवर्टाइजिंग एजेंसी खोल ली थी. हम गाहे-बगाहे मिल लिया करते थे. मुझे याद है बधाई हो की रिलीज के बाद कॉल कर उन्होंने कहा कि तुमने तो कमाल कर दिया है. फिर छह महीने पहले ही उन्होंने मुझे कॉल कर कहा कि सुनो, तुम्हारे लिए एक इंपोर्टेंट रोल लिख रहा हूं, यह फिल्म तुम्हें करनी हैं. वो इतना हक समझते थे, मुझपर. इस बात की कमी हमेशा खलेगी कि उनकी फिल्मों का हिस्सा कभी नहीं बन पाया.'