डॉक्यूमेंट्री फिल्म काली के पोस्टर में देवी काली को सिगरेट पीते और एलजीबीटी समुदाय का झंडा उठाए दिखने पर बवाल मचा हुआ है. कई जगह फिल्म की निर्देशक लीना मणिमेकलई के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है. खुद केंद्र सरकार भी हरकत में आई है इसके बाद ट्विटर ने लीना का विवादित पोस्टर वाला ट्वीट अपने प्लेटफॉर्म से हटा दिया है. इस दौरान सवाल इस बात पर भी उठ रहा है कि आखिर ये पोस्टर रिलीज कैसे हो गया. क्या पोस्टर, फिल्म के ट्रेलर और अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में रिलीज होने वाली फिल्मों के सेंसर की कोई व्यवस्था नहीं है? aajtak.in ने इसे लेकर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पहलाज निहलानी और IMPPA (Indian Motion Picture Producers' Association)के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट अशोक पंडित से बात की.
कब पड़ती है सेंसर सर्टिफिकेट की जरूरत?
अशोक पंडित ने बताया कि जब आप अपनी फिल्म थिएटर पर रिलीज कर रहे होते हैं, तो आपको सेंसर सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ती है. थियेटर में डॉक्यूमेंट्री, क्रिकेट मैच, कमर्शियल एड्स तक को सेंसर बोर्ड से होकर गुजरना पड़ता है. अगर फिल्म को किसी भी पब्लिक व्यू के बीच लेकर जाना है, तो वहां भी आपको सेंसर सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ती ही है. 15 हो या 500 लोग, आप बिना सर्टिफिकेट के फिल्म नहीं दिखा सकते.
हालांकि अशोक पंडित कहते हैं कि 'फिल्म फेस्टिवल का मामला थोड़ा अलग है. अगर इंडिया में फिल्म फेस्टिवल होते हैं, जो गवर्नमेंट की देख-रेख में होते हैं, मसलन नेशनल अवॉर्ड, ईफी, तो वहां सेंसर सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ती है. यहां तक कि आपको फिल्म को ऑस्कर में भेजने से पहले भी सेंसर बोर्ड से गुजारनी होगी. दूसरे देशों में जो प्राइवेट फिल्म फेस्टिवल्स होते हैं, ये वहां के ऑर्गनाइजर पर निर्भर करता है कि उन्हें उस फिल्म के लिए सेंसर सर्टिफिकेट चाहिए या नहीं चाहिए.'
अशोक पंडित ने बताया कि 'फिल्मों का पोस्टर पूरी तरह से उनकी संस्था IMPA द्वारा अप्रूव किया जाता है. पहले उनके यहां पोस्टर अप्रूव होगा फिर सेंसर बोर्ड जाएगा. रही बात काली फिल्म के पोस्टर की, तो यह न तो पब्लिक व्यू के लिए रखी गई है और न ही इसे थिएटर पर रिलीज किया जा रहा है. डायरेक्टर ने हमारे पास इसके पोस्टर या सेंसर सर्टिफिकेट के लिए अप्लाई ही नहीं किया है. अगर वो केरल के किसी एरिया में पोस्टर रिलीज कर रही है, तो हम उस पर क्या कर सकते हैं. हमारा बोर्ड तो इसके लिए जिम्मेदार नहीं है.'
पहलाज निहलानी ने एक लंबे समय तक सेंसर बोर्ड की कमान संभाली थी. इस दौरान खुद पहलाज कई बार फिल्मों के सेंसर को लेकर विवादों में रह चुके हैं. चाहे वो उड़ता पंजाब की बात हो या फिर एंग्री इंडियन गॉडडेसेस, पहलाज ने कई तरह के निगेटिव रिएक्शन झेले हैं.
'सेंसर सर्टिफिकेट का फायदा उठाते हैं लोग'
पहलाज कहते हैं, 'जो भी फिल्में फेस्टिवल पर जाती हैं, उसके लिए मेकर्स हमारे यहां अप्लाई करते हैं. बतौर सीबीएफसी (सेंसर बोर्ड ऑफ सर्टिफिकेशन) हमारी कोशिश रहती है कि ऐसी फिल्मों को प्राथमिकता दी जाए, ताकि वो अपने निर्धारित समय तक पास हो जाएं. जो भी फिल्में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के नजरिए से बनाई जाती हैं, तो उनके सेंसर के तरीके अलग होते हैं. चूंकि फिल्म इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के लिए है, तो उन्हें लिबर्टी दी जाती है कि वो वहां के स्टैंडर्ड को मैच कर सकें. हम वहां की गाइडलाइंस को भी तवज्जो देते हैं. जिससे कई चीजें पास भी हो जाती हैं. अमूमन नॉर्मल बॉलीवुड फिल्मों के साथ ऐसा नहीं होता है.'
'बहुत से फिल्ममेकर्स इसका फायदा भी उठाते हैं. वो अपनी फिल्मों को कमर्शियल फिल्म फेस्टिवल में नहीं भेजते. वो फेस्टिवल का नाम लेकर फिल्म को फैमिली सर्टिफाइड करवा लेते हैं और कमर्शियली मुनाफा कमाते हैं.' पहलाज कहते हैं कि 'मैं जब सेंसर बोर्ड में आया, तो इस प्रैक्टिस पर लगाम लगाने की कोशिश की. शाहरुख खान की माया मेम साहब में फुल न्यूड शॉट था लेकिन वो उस वक्त चली. राम तेरी गंगा मैली के दौरान बच्चे को दूध पिलाने जैसे सीन्स को लॉजिकली सही कहा गया.'
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काली पोस्टर को लेकर चल रहे बवाल पर पहलाज कहते हैं कि 'ये चीजें पास होनी ही नहीं चाहिए. पीके में भी तो शिव के किरदार को लेकर विवाद हुआ था. मोहल्ला अस्सी फिल्म सालों बैन रही. आप शिव को गाली देते दिखाएं और बनारस को बदनाम करने की कोशिश करें, तो जाहिर है बवाल कटेगा. जो धर्म और आस्था के साथ खिलवाड़ करेगा, उसे भुगतना होगा. आप सिगरेट पीने वाला भगवान दिखाएंगे, तो आस्था किस पर रहेगी.'
काली पोस्टर पर अशोक पंडित ने कहा कि 'किसी भी धर्म को लेकर अब्यूज बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. आप में और याकूब मेनन में फर्क क्या है. याकूब मेनन गोली चलाता था और आपने फिल्म के जरिए लोगों के इमोशन पर गोली चलाई है. इस तरह की हरकत बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए.'