बॉलीवुड डायरेक्टर ओनीर लीक से हटकर बनाई गई फिल्मों के लिए जाने जाते हैं. फिल्मों में सोशल मुद्दों को हमेशा तवज्जो देने वाले ओनीर ने 'आई एम' फिल्म बनाई थी. इस फिल्म ने चार बड़े मुद्दों को हाइलाइट किया. सेरोगेसी, चाइल्ड अब्यूज, कश्मीरी पंडितों का दर्द और एलजीबीटी कम्यूनिटी की दिक्कतें.
कश्मीरी पंडितों पर आधारित उनकी फिल्म में जूही चावला और मनीषा कोइराला अहम भूमिका में थे. जूही इसमें कश्मीरी पंडित होती हैं जो 1990 में हुई त्रासदी के बाद परिवार सहित दूसरे शहर में जाकर बस जाती हैं. यह कहानी ओनीर के करीबी दोस्त व एक्टर संजय सूरी की असल जिंदगी से प्रेरित थी.
इन दिनों द कश्मीर फाइल्स की चर्चा है. फिल्म को थिएटर में जबरदस्त ओपनिंग मिली है. ओनीर से aajtak.in ने कश्मीर फाइल्स और उसे मिल रहे पब्लिक के रिस्पांस पर बातचीत की. ओनीर कहते हैं, मैं अभी तक फिल्म नहीं देख पाया हूं. मैंने 2011 में कश्मीरी पंडितों के दर्द की एक झलक दी थी, चाहता था कि इस पर और बात हो और अच्छे लेवल पर उनके दर्द को दिखाया जाए. मैं खुद डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए इस मुद्दे पर काम कर रहा हूं.
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पब्लिक की प्रतिक्रिया पर ओनीर कहते हैं, मेरी एक ही दिक्कत है कि सोशल मीडिया पर जिस तरह के विजुअल्स दिखाए जा रहे हैं. लोग थियेटर में जाकर चिल्ला रहे हैं और कम्यूनिटी को टारगेट कर उनपर अटैक कर रहे हैं, ये देख कर दुख होता है. जब स्टीवन स्पीलबर्ग की शैंडलर्स लिस्ट थिएटर पर आई थी, तो लोगों ने थियेटर पर चिल्लाकर नहीं कहा था कि जर्मन को मार दो. फिल्म में दिखा था कि कैसे मानवता गिरी थी, लेकिन लोगों का रिएक्शन इतना अग्रेसिव नहीं था. यहां मैं देख रहा हूं कि लोग किसी खास कम्यूनिटी के अंदर डर पैदा करने के लिए इस फिल्म का इस्तेमाल कर रहे हैं. मुझे लगता है कि मुस्लिम कम्यूनिटी के लिए अभी बहुत मुश्किल होगा कि वे थियेटर में आकर यह फिल्म देखें. यह भयावह, शर्मनाक और परेशान करने वाला है. मुझे ये नहीं समझ आता कि लोग इसके खिलाफ एक्शन क्यों नहीं ले रहे हैं कि कोई भी थिएटर के बीच में खड़ा होकर कम्यूनिटी को अटैक कर रहा है. आप चुप बैठे हैं, ये हैरानी की बात है.
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मैं चाहता हूं कि फिल्ममेकर खुद आकर इस तरह के रिएक्शन की निंदा करें और कहें कि उनकी फिल्म का गलत एजेंडे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. सरकार भी लोगों पर लगाम लगाए कि यूं बेवजह किसी कम्यूनिटी पर जोक नहीं बनाएं और उन्हें नीचा न दिखाएं. लेकिन कोई कुछ कर नहीं रहा है. इसपर गहराई से सोचने की बात है. मैं यहां मेकर्स के मकसद की बात नहीं कर रहा हूं. मैं यहां रिएक्शन से परेशान हूं. लोग फिल्म का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. ये लोग जानबूझकर थियेटर आ रहे हैं ताकि ऐसी हरकतें कर सकें और उसे रिकॉर्ड कर वायरल कर दें. अपने देश में इस तरह की नफरत देख कर परेशान हूं.
जब मैं 'आई एम' बना रहा था, तो मेरा मकसद यही था कि यहां मुझे हेट नहीं फैलाना है. मैं उन कश्मीरी पंडितों के दर्द को दिखाना चाह रहा था, जिन्होंने इतना कुछ सहा है. आप फिल्म देखने के बाद किसी कम्यूनिटी से नफरत नहीं करेंगे. आप उनके दर्द को महसूस करेंगे. वैसे एक और बात मैं पूछना चाहता हूं कि द कश्मीर फाइल्स देखने के बाद लोगों के जेहन में ये सवाल क्यों नहीं आ रहा है कि ये कश्मीरी पंडित अपनी घर वापसी कब और कैसे करेंगे. क्या है न लोग यहां एक दूसरे को अटैक करने के लिए लोगों के इमोशन का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. अगर आप वाकई में उनके दर्द को समझते हैं, तो क्यों नहीं उनकी घर वापसी करवाते हैं. एक कश्मीरी पंडित ने जब इस फिल्म से आपत्ति जताई, तो लोग उसे गालियां दे रहे हैं उसपर अटैक कर रहे हैं. क्योंकि वो बंदा आपके नजरिये पर फिट नहीं बैठ रहा है. यहां एजेंडा ही कुछ और है, जो आपके इंटेंशन को दर्शाता है.