पंकज त्रिपाठी बॉलीवुड इंडस्ट्री का वो नाम हैं, जो लंबे स्ट्रगल के बाद कामयाबी की राह पर पहुंचे हैं. पंकज इन दिनों अपनी फिल्म मैं अटल को लेकर चर्चा में हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का किरदार निभाने से पहले वे काफी डरे हुए थे लेकिन फिल्म का ट्रेलर देखकर जो प्रतिक्रिया उन्हें मिल रही है उससे उन्होंने राहत की सांस ली है. पंकज से इस फिल्म से जुड़े मुद्दों पर aajtak.in ने विस्तार से बात की.
अटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक के लिए आप कैसे राजी हो गए?
- अटल जी का इतना विराट चरित्र है, तो उनके किरदार को मैं कैसे निभाऊंगा यही सोचता था. फिर मेकर्स अड़ गए, कि अगर आप नहीं करेंगे, तो हम फिल्म ही नहीं बनाएंगे. फिर मैं राजी हुआ और दो तीन किताबें लेकर दिल्ली चला गया, जहां फुकरे की शूटिंग कर रहा था. मेरे कमरे में दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर और एक जर्नलिस्ट आए थे. उन्होंने किताब देखी, तो उनका जवाब यही था कि तुम्हीं से हो पाएगा. फिर क्या, मैंने हामी भर दी.
अटल जैसे दिखने के लिए बेशक प्रोस्थेटिक लुक भी ट्राई किया होगा?
-हां, जब मोबाइल की लॉक स्क्रीन खोलने गया, तो मेरे मोबाइल ने चेहरा पहचानने से इनकार कर दिया था. मैं उन दिनों पासवर्ड डालकर फोन ऑपरेट किया करता था. प्रोस्थेटिक मेकअप टफ था. क्योंकि तीन से चार घंटे मेकअप कर, लखनऊ की 43 से 45 डिग्री की गर्मी में शूट करना बहुत मुश्किल भरा था. कह लें, फिजिकली बहुत तकलीफ हो रही थी. हालांकि मुझसे ज्यादा राइटर के लिए यह फिल्म टफ रहा है क्योंकि ऐसे प्रभावी व्यक्ति की जिंदगी को दो घंटे की फिल्म में कैसे समेटा जाए. यह भी बात पता है कि लोग देखने के बाद भी आकर कहेंगे कि भाई ये नहीं दिखाया, वो किस्सा रह गया.
ट्रेलर के बाद कुछ दर्शकों ने कहा कि कहीं न कहीं मिमिक वाली बात दिख रही है. आपका क्या कहना है?
-इसमें मैं क्या कहूं. -जिसके जो विचार हैं, सबका स्वागत है. मैं बस इतना कहूंगा कि पहले लोग फिल्म देखें. उसके बाद इस पर बात होगी. मैं उस वक्त सबकी राय का स्वागत करूंगा.
इलेक्शन से ठीक पहले इस फिल्म का आना क्या महज संयोग है?
-ये प्रश्न करना मतलब हमारे इंडियन वोटर्स के इंटेलिजेंस को भी कम आंकना है कि वो फिल्मों से प्रभावित होता होगा. ये दो पहलू ही हो सकते हैं बाकि जिसकी जो इच्छा है, वो अपनी राय बना सकते हैं. पहले फिल्म 25 दिसंबर को आने वाली थी. चूंकि इसके वीएफएक्स पर काम बहुत बचा हुआ था इसलिए इसकी डेट में बदलाव आया है. इसी हफ्ते अब सेंसर बोर्ड में फिल्म जाएगी.
सेंसर बोर्ड के रिजल्ट को लेकर कोई टेंशन है?
-नहीं, मुझे क्यों होगी, ये सारा काम तो डायरेक्टर व प्रोड्यूसर की झोली में आता है. मैंने फिल्म में अपना सौ प्रतिशत दिया और मैं अपना काम से संतुष्ट हूं. अब रिजल्ट को लेकर ज्यादा चिंता नहीं होती है. अभिनेता का अटैचमेंट शूटिंग के आखिरी दिन तक ही होता है. उस दिन मैंने अपना काम ईमानदारी से कर के सौंप दिया है. इसके बाद मैं कयास लगाकर, आंकलन कर चिंता करूं, तो इसका कोई अंत होने वाला नहीं है. क्योंकि हमारे हाथ में कुछ लिखा नहीं होता है. बस सब छोड़ दो, और बाकि सब जनता को निर्णय लेने दो.
किरदार करते वक्त कोई ऐसी घटना, जिसने आपको चौंकाया हो?
-अटल जी का किरदार करते वक्त मैंने खुद को निजी जिंदगी में बदलते हुए देखा है. मैं अंदर से बहुत सौम्य महसूस करता हूं. मैं बहुत संवेदनशील हुआ हूं. मैं अब लोगों को समझने लगा हूं. मैंने यह भी सीखा है कि बोलने से ज्यादा मौन रहना बेहतर होता है. आप जीवन में जितने बड़े होते जाते हैं, आपको अपनी सहनशक्ति भी बढ़ानी होगी.
आजकल की जो रैट रेस है, क्या वहां इतनी सौम्यता और सहजता काम आती है?
-रैट रेस का विनर भी रैट ही होता है. हमें इसे चूहे वाले दौड़ में शामिल ही नहीं होना है. हम जैसे हैं, वैसे ही ठीक हैं.
हम अटल जी को यहां बतौर राजनेता देखेंगे या कोई और पहलू भी छुआ है?
-हमने कोशिश तो की है कि सबकुछ समेट लें. बटेश्वर का लड़का कैसे आगे चलकर अटल बिहारी वाजपेयी के रूप में प्रभावी राजनेता और कवि बना है. सबकुछ देखने को मिलेगा.
बायोपिक को लेकर एक धारणा रही है कि कई बार इसे व्यक्ति की इमेज को ग्लोरीफाई करने के लिए बनाया जाता है?
-देखें, हर कोई अपने नजरिये से फिल्म बनाता है. मामला बहुत ही सब्जेक्टिव हो जाता है. वो मेकर्स किसी व्यक्तित्व को कैसे देखता है, ये उसकी आजादी है. अगर कोई क्रिटिकल होकर बनाता है, तो वो उसका तरीका है. कोई फिल्म खराब या अच्छी नहीं होती है, ये केवल डायरेक्टर व राइटर के नजरिये की बात है.