डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'काली' के पोस्टर पर खूब बवाल मचा हुआ है. फिल्ममेकर लीना मणिमेकलई की इस फिल्म के पोस्टर में मां काली को सिगरेट पीते और एक हाथ में LGBTQ का झंडा लिए देखा जा सकता है. इस पोस्टर के रिलीज होने के बाद से सोशल मीडिया यूजर्स ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया. बात इतनी बढ़ गई कि कनाडा में भारतीय उच्चायोग ने इस मामले पर बयान जारी कर दिया है.
ये पहली बार नहीं जब लीना मणिमेकलई विवादों में फंसी हैं. वे अपनी ऐसी ही अन्य डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के कारण विवादों से घिर चुकी हैं. पर विवादों के अलावा लीना ने अपनी जिंदगी में काफी संघर्ष देखा है. समाज से परिवार से और आर्थिक रूप से. आइए जानें लीना की जिंदगी के कुछ संघर्षपूर्ण किस्से.
मामा से होने वाली थी लीना की शादी
लीना मणिमेकलई मदुरै के दक्षिण में स्थित सुदूर गांव महाराजापुरम की रहने वाली हैं. उनके पिता कॉलेज लेक्चरर थे. वो एक किसान परिवार से थीं और उनके गांव की प्रथा के मुताबिक प्यूबर्टी के कुछ साल बाद लड़कियों की शादी उनके मामा से करवा दी जाती थी. जब लीना को पता चला कि घरवाले उनकी शादी की तैयारी कर रहे हैं तब वह चेन्नई भाग गईं. वहां उन्होंने तमिल मैगजीन विकटन के ऑफिस में नौकरी के लिए अर्जी डाली. पता चला कि ऑफिस वालों ने उन्हें इंतजार करने को कहकर लीना के परिवार वालों से संपर्क किया और वापस लीना को उसके परिवार वालों को सौंप दिया. किसी तरह लीना ने अपनी फैमिली को मनाया और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की बात बताई.
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तमिल डायरेक्टर से प्यार और फिर मां की भूख हड़ताल
कॉलेज के आखिरी साल लीना के पिता की मौत हो गई. पिता के गुजरने के बाद लीना, अपने पिता की डॉक्टरल थीसीस जो कि तमिल डायरेक्टर P Bharathiraja पर लिखी गई थी, उसे किताब के तौर पर पब्लिश करवाने वापस चेन्नई गईं. वे डायरेक्टर P Bharathiraja के पास गईं और पहली नजर में ही लीना को उनसे प्यार हो गया. डायरेक्टर के साथ लीना के रिलेशन की खबरें भी फैलने लगी. इन खबरों को सुनने के बाद लीना की मां ने खाना-पीना बंद कर दिया और बेटी को वापस घर आने को कहा. मां की खराब हालत देखते हुए लीना ने सिनेमा और P Bharathiraja को त्याग दिया और घर चली गईं.
आईटी सेक्टर से लेकर फ्रीलांसर बनने तक
कुछ साल तक बेंगलुरू में आईटी सेक्टर में नौकरी की. फिर लीना की मुलाकात टेलीफिल्म मेकर C Jerrold से हुई और उन्होंने अपनी पुरानी जॉब छोड़ दी. पर यहां भी C Jerrold के साथ लीना काम नहीं कर पाईं और उन्होंने कई नौकरियां बदली. आखिरकार फ्रीलांसर बनने का फैसला किया. इस बीच लीना को एहसास हुआ कि वो क्या करना चाहती हैं. लीना शोषण का शिकार लोगों, सामाजिक मुद्दों की आवाज बनना चाहती थीं. वो राजनीतिक हस्तक्षेप करना चाहती थीं क्योंकि तभी बदलाव हो सकता था. और इस तरह 2002 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म 'Mathamma' पर काम करना शुरू किया.
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घर का किराया देने के नहीं थे पैसे
इसके बाद से लीना ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने फ्रीलांसिंग से पैसे कमाए और उन्हें अपनी फिल्मों पर लगाए. उन्होंने कई फेलोशिप्स जीते. कई अंतराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म्स पर उनकी फिल्मों का प्रीमियर हुआ. अपने प्रोजेक्ट्स पर पैसे लगाने की वजह से एक समय ऐसा भी आया जब लीना के पास घर का किराया देने के भी पैसे नहीं बचे थे.
इन फिल्मों पर हुआ था विवाद
साल 2002 में लीना ने देवदासी प्रथा को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई थी. फिल्म का नाम था 'Mathamma'. इसमें उन्होंने नाबालिग लड़कियों को 10-20 रुपये में मंदिर में समर्पित किए जाने और पुजारी-पंडितों द्वारा उनके शोषण की कहानियों को पेश किया था. अरुंधतियार समुदाय समेत खुद अपने परिवार से रोष झेलने के बाद भी लीना डरी नहीं. इसके बाद उन्होंने साल 2004 में दलित महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'Parai' बनाई. इसपर भी लीना को काफी आक्रोश झेलना पड़ा. लेकिन लीना कभी हिम्मत नहीं हारीं. 2011 में लीना ने एक बार और विवाद को दावत दी. उन्होंने धनुषकोढ़ी के मछुआरों पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'Sengadal' बनाई. सेंसर बोर्ड से महीनों की लड़ाई के बाद आखिरकार फिल्म रिलीज की गई और इसे कई अंतराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल्स में सराहा गया. इतने विवादों के बाद लीना एक बार फिर अपनी फिल्म के पोस्टर की वजह से विवादों में हैं.