बॉलीवुड के म्यूजिक इंडस्ट्री में कविता कृष्णमूर्ति एक बहुत बड़ा नाम रही हैं. हम दिल दे चुके सनम, बॉम्बे जैसे कई एल्बम में अपनी आवाज का जादू बिखेरने वालीं कविता को इंडस्ट्री में एक लंबा अरसा हो गया है. मुंबई में कविता ने 16 साल की उम्र में अपनी सिंगिंग करियर की शुरुआत की थी. आज उनका जन्मदिन है, इस खास मौके पर वे हमसे अपने करियर, जर्नी, म्यूजिक ट्रेंड पर दिल खोलकर बातचीत करती हैं.
16 साल की उम्र में आ गई थी दिल्ली
मैं 16 साल की उम्र में दिल्ली से मुंबई आई थी. तब से लेकर अबतक का करियर कमाल का रहा है. मैंने हेमंत दा, मन्ना दा, तलत साहब, मुकेश, किशोर दा, महेंद्र कपूर जैसे दिग्गजों के साथ काम किया है. मन्ना दा मुझे अपनी बेटी की तरह ट्रीट किया करते थे. हमने ट्रैवल कर देश-विदेश परफॉर्म किया है. हेमंत दा के रूप में भी मैंने एक बेहतरीन मेंटॉर पाया था. मेरा नाम शारदा हुआ करता था, उन्होंने ही मेरी मां से कहा कि इसका नाम बदलिए, ये नाम इंडस्ट्री में नहीं चलेगा. मेरी सिस्टर का नाम नंदिता है, तो मां ने मेरा नाम कविता रख दिया. मन्ना दा डायबेटिक थे लेकिन इसके बावजूद मिठाई उनसे नहीं छूटती थी. वो इंसूलिन लेकर स्टेज पर परफॉर्म किया करते थे. वे भी मुझे मिठाई खाने पर जोर दिया करते थे.
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म्यूजिक को लेकर अब भी ओल्ड स्कूल हूं
मुझे इंडस्ट्री ने बहुत कुछ दिया है. आज मैं जो कुछ भी हूं, इसी की देन है. मैंने जब अपने म्यूजिक जर्नी की शुरूआत की थी, तो मुझे नहीं पता था कि मैं इतना कुछ अचीव भी कर पाउंगी. मैंने उस वक्त कई दिग्गज डायरेक्टर्स सुभाष घई, संजय लीला भंसाली व बॉम्बे जैसी फिल्मों में काम किया है. हां, वक्त के साथ थोड़ा यहां काम करने का तरीकेकार बदला है. मैं आज भी खुद को ओल्ड स्कूल ही मानती हूं. मैं उस वक्त की ट्रेंड हूं, जहां लाइव म्यूजिक के साथ हमें परफॉर्म करना होता था जो काफी चैलेंजिंग हुआ करता था. एक दिन पहले हम गाना रिहर्स किया करते थे, तो वो भी काफी मजेदार माहौल हुआ करता था. लेकिन अभी तो हर कोई आकर अपना पार्ट गाकर चला जाता है. अब थोड़ा प्रफेशनलिज्म बढ़ा है. यह मुझे मजा नहीं आता था. मैं उस वक्त को बहुत मिस करती हूं, जहां आप अपने म्यूजिक डायरेक्टर से सीधे संपर्क में होते थे.
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थोड़ा इंटेलेक्चुअल म्यूजिक आ जाए, तो बेहतर
अब तो फिल्म भी ऐसे बन रहे हैं, जहां म्यूजिक को उतना तवज्जों नहीं दिया जाता है. बंदिश बैंडेट जैसी फिल्में और बननी चाहिए ताकि म्यूजिक के अलग फ्लेवर से फैंस रूबरू हो सकें. अब तो फिल्म का सब्जेक्ट इतना डार्क होता है कि फिल्म में बैकग्राउंड म्यूजिक रह गया है. साउंड प्रोडक्शन बहुत अच्छा है लेकिन कुछ गानों को देखकर लगता है कि इसमें थोड़ा इंटेलेक्चुअल म्यूजिक आ जाए, तो फिर कितना अच्छा हो. गानें थोड़े फिलॉसिफिकल हों, तो सुनने में बेहतर लगे. वहीं श्रेया घोषाल, अरिजीत, केके इतने बेहतरीन सिंगर्स हैं, इनकी वॉइस को भी ऑटो ट्यून करना सही नहीं है. सब सिंगर्स को अच्छे गानें मिले, ताकि वे अपने टैलेंट को सही तरीके से परोस सकें.
मंगल पांडे के बाद अच्छा काम मिला नहीं
मेरे बारे में सच कहूं, तो मंगल पांडे के बाद इंडस्ट्री से अच्छा काम मिला नहीं. अच्छे गानें तो लोगों ने दिए ही नहीं. किसी का कॉल नहीं आता है. मैं मीनिंगफुल गाना मिला नहीं. इसके अलावा मैंने यहां के एक कल्चर के बारे में सुना कि एक गाने को छ से सात सिंगर्स से गंवा दिए जाते हैं फिर किसी एक सिंगर का गाना रखते हैं. अब मैं उस तरह से गुजरी नहीं हूं न. अब इतने साल काम करने के बाद 6 सिंगर्स से डब करा कर मेरी आवाज नहीं रखी, तो यह मेरी भी तौहीन होगी न. मैं क्यों जाऊं उस रास्ते पर, इसलिए मैं अपने क्लासिकल पर फोकस करती हूं. मुझे बहुत कुछ मिल चुका है, मेरे अंदर कोई डेसपेरेशन नहीं है. जितना मिला है, उससे संतुष्ठ हूं.