
गैंगस्टर ड्रामा फिल्मों में कुछ तो बात होती है. एक एक्स-फैक्टर, जिसपर एकदम ठीक-ठीक तो उंगली नहीं रखी जा सकती मगर ये ऑडियंस को अपील बहुत करता है. 2022 में आई KGF चैप्टर 2 (KGF Chapter 2) गैंगस्टर ड्रामा स्टोरी को उस हाईट पर ले गई जहां से और ऊपर जाने का अभी शायद सपना भी कोई नहीं देख सकता.
रॉकी भाई के रोल में यश (Yash) का स्वैग आने वाले बहुत सालों तक गैंगस्टर किरदारों के लिए एक पैमाना बना रहेगा. लोग फिल्म के गैंगस्टर हीरो को देखकर नापते हुए कहेंगे- ये रॉकी भाई से 5 पॉइंट कम है. और ऐसा नहीं है कि ये स्वैग इसी साल एकदम से चमका.
2018 में KGF के पहले पार्ट में ही जब रॉकी ने छोटा हथौड़ा रखकर, बड़ा हथौड़ा उठाया था, तभी तय हो गया था कि ये बवाल अब यहीं नहीं रुकेगा. और इस बवाल को स्क्रीन पर भौकाली बनाने के लिए बैकग्राउंड में गाना चल रहा था- 'सुल्तान'.
स्क्रीन पर चलता ये गाना और थिएटर में यश की चाल, डायलॉगबाजी, एक्शन और कई बार तो उनके सिर्फ एक लुक पर बजती सीटियां, मास सिनेमा का बेहतरीन सेलेब्रेशन कहा जा सकता है. लेकिन क्या आपको यश, KGF और रॉकी भाई की इस महागाथा से पहले भी कोई ऐसा गैंगस्टर हीरो याद आता है, जिसका स्वैग इतना करिश्माई था?
अगर आपने 2010 के बाद थिएटर्स में कदम रखना शुरू किया है तो शायद आपको न याद हो. मगर उससे पहले थिएटर्स की टिकट खिड़की पर लाइन लगाने वाले आपको कन्फर्म कर सकते हैं कि ऐसा स्वैग एक बार और देखा गया था, 2010 में. इस कहानी का हीरो था सुल्तान मिर्जा. एक्टर थे अजय देवगन (Ajay Devgn). और फिल्म थी वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई (Once Upon A Time In Mumbai).
30 जुलाई 2010 को रिलीज हुई इस फिल्म को 12 साल पूरे हो चुके हैं. मगर इसकी अपनी एक कल्ट फॉलोइंग है. 'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई' को बॉलीवुड के सबसे बेहतरीन गैंगस्टर ड्रामा में गिना जाता है. और इसकी एक वजह ये भी है कि 12 साल पहले आई इस फिल्म में बहुत कुछ ऐसा था, जो एक पक्के फिलमची को KGF के दोनों पार्ट देखते हुए जरूर याद आएगा. दोनों किरदारों का डीएनए बहुत कुछ एक जैसा था.
'मुंबई का किंग कौन'
'सत्या' फिल्म का ये डायलॉग दोनों किरदारों के सफर पर सटीक बैठता है. दोनों ही कहीं बाहर से आए और मुंबई की गलियों, बस्तियों में जवान हुए. जहां सुल्तान मिर्जा ने बंदरगाह पर मजदूरी की वहीं रॉकी ने सड़कों पर जूते पॉलिश किए. दोनों को ही 'जी भाई' कहने वाला एक पठान नाम का कैरेक्टर भी था. दोनों की ही जवानी मुंबई में अंडरवर्ल्ड के लिए हरियाली लेकर आई.
KGF पर जान छिड़कने वालों को फिल्म का वो एक फ्रेम अच्छे से याद होगा जब 'दुनिया का सबसे बड़ा आदमी' बनने की तमन्ना लेकर मुंबई आया लड़का रॉकी, समंदर की तरफ मुंह किए खड़ा है और जैसे उसे अपनी मुट्ठी में करने की आस से ताक रहा है.
'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई' में इसी समंदर किनारे सुल्तान मिर्जा का बचपन भी नजर आता है. वो इसी समंदर की तरफ बड़ी हसरत से देखते हुए बैठा हुआ है. दोनों फ्रेम अपने हीरो के कद, उसकी हिम्मत और उसकी इच्छाओं को दिखाते हैं.
बस्ती, बंदरगाह, छोटी नावें, बड़ी मोटरबोट और जहाजों पर लदता-उतरता माल. KGF और 'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई' के ये एलिमेंट बिल्कुल एक जैसी इमेज क्रिएट करते हैं. रॉकी और सुल्तान मिर्जा दोनों की कहानी में समंदर का न होना संभव ही नहीं.
दोनों ही फिल्मों को दिल से देखने पर आप पाएंगे कि दोनों कहानियों की टाइमलाइन लगभग एक जैसी ही है. दोनों हीरो 60 के दशक में मुंबई आए और 70 के दशक में 'सुल्तान' बनकर मुंबई पर छा गए.
एक जैसे लेकिन अलग-अलग
कट्टर रॉकी भाई फैन्स बहस कर सकते हैं कि तूफानी एक्शन करने से उनके हीरो में एक ऐसा डायनामिक जुड़ जाता है जो सुल्तान मिर्जा में नहीं था. लेकिन सुल्तान के पास अपना एक अलग क्लास था. इस बहस से वो ये कहते हुए बच निकलता कि 'जब दोस्त बनाकर काम निकल सकता है तो फिर दुश्मन क्यों बनाएं?!'
रॉकी ने शहर को अपना नाम याद कराने के लिए उसे एक पुलिसवाले के सर पर कांच की बोतल से गोद डाला था. जबकि सुल्तान कि चाहत सिर्फ इतनी सी थी कि 'दुआ में याद रखना'.
दोनों किरदारों में ये एक बहुत बड़ा अंतर है. यहीं अगर रॉकी होता तो दुश्मन की गली में जा घुसता और बेकार का खून खराबा मचा आता. दोनों ही गैंगस्टर हैं, मुंबई पर राज करते हैं, दोनों को जितना मिला है उतने में खुश नहीं हैं और दोनों को दुनिया चाहिए.
मगर जहां सुलतान मिर्जा उस दुनिया को अपने सिरहाने रखकर एक चैन की नींद लेना चाहता है, वहीं रॉकी को दुनिया बस एक बार फुटबॉल खेलने के लिए चाहिए. उसके बाद ये दुनिया उसके काम की भी नहीं.
सुल्तान कभी कभी मुस्कुरा भी लेता है शायरी एन्जॉय कर लेता है, फिल्में देख लेता है... वहीं रॉकी एक सच्चा एंग्री यंग मैन है. उसे मुस्कुराने को कहा जाए तो कहीं पलटकर ये न कह दे कि 'इस दुनिया में खुश होने लायक है ही क्या?' हालांकि, दोनों के सफर में सबसे बड़ा अंतर ये है कि सुल्तान मुंबई पा कर खुश था. लेकिन रॉकी के लिए सिर्फ एक सराय. रुका नाम किया, आगे चल दिए.
KGF फ्रैंचाइजी के डायरेक्टर प्रशांत नील अगर मास्टर स्टोरीटेलर हैं, तो 'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई' बनाने वाले मिलन लुथरिया का भी अपना एक अलग कद है. दोनों ही फिल्ममेकर्स ने अपनी-अपनी फिल्मों में एक अलग दुनिया तैयार की. लेकिन एक सिनेमा फैन की तरह देखने पर ऐसा महसूस होता है कि KGF में रॉकी की मुंबई, सुल्तान मिर्जा की मुंबई जैसी ही है.
हालांकि, बहुत जूम कर के देखने पर ही आपको अंतर दिखेगा, लेकिन रॉकी अगर कभी-कभी थोड़ा मुस्कुरा लिया करता तो भी कोई बुराई नहीं थी!