स्वर कोकिला 'लता मंगेशकर' अब हमारे बीच नहीं रहीं... लता मंगेशकर ने अपनी जिंदगी में जो मुकाम हासिल किया वो काटों भरा रहा. उन्होंने बचपन से ही काफी स्ट्रगल किया. पिता के निधन के बाद लता ने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा ली थी. बचपन में लता की जिंदगी में ऐसे दर्दनाक तीन महीने आए थे, जब उनके परिवार को लगा था कि अब वो उन्हें खो देंगे. लेकिन लता की फैमिली ने उन्हें बचाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी.
जब लता मंगेशकर को हुआ भयंकर चेचक
राइटर हरीश भीमाणी ने अपनी किताब 'इन सर्च ऑफ लता मंगेशकर' में लता से जुड़े इस किस्से को लिखा है. किताब के मुताबिक, जब लता 5 साल की थी तब उन्हें चेचक हो गया था. उनको चेचक इतनी भयंकर हुआ कि सभी को लग रहा था कि अब वो नहीं बचेंगी.
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उनके घावों में मवाद पड़ गया था. उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी. वो दर्द में कराहती थीं. लता की मां उन्हें केले के पत्तों में लपेटकर रखती थीं और उन्हें धीरे-धीरे हिलाती रहतीं. डॉक्टरों को उनकी आंखों की रोशनी जाने का डर था. लता पूरे तीन महीने इस भयंकर बीमारी की चपेट में रहीं. ये तीन महीने उनकी जिंदगी के सबसे दर्दनाक महीने साबित हुए थे. लेकिन धीरे-धीरे उनकी हालत में सुधार हुआ. ये किसी पुनर्जन्म से कम नहीं था.
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लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि दें
जब वो ठीक हो गईं तो उनके पिता ने बैंड-बाजे वालों को बुलाया था. मां ने अनाज-नारियल और महंगी साड़ियां शगुन के तौर पर बांटी थीं. उनके घर में जश्न का माहौल था.