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1940-50 का दशक हिंदी फिल्मों का गोल्डन दौर कहा जाता था. उस दौर में शानदार फिल्में बनाने वाले फिल्ममेकर महबूब खान, अपनी एक लव-ट्रायंगल फिल्म 'अंदाज' की शूटिंग कर रहे थे. फिल्म में कलाकार थे राज कपूर, दिलीप कुमार और नरगिस. दिलीप के साथ एक सीन का शूट निपटाकर राज पलटे तो सेट पर नरगिस की मां, जद्दनबाई नजर आईं. अपने दौर में फिल्म प्रोड्यूसर रहीं जद्दनबाई का इंडस्ट्री में अपना एक रुतबा हुआ करता था.
राज कपूर ने उन्हें देखा तो झट से उनकी तरफ चले आए. उनके पैर छूकर हाल चाल लेने के बाद वो फिर अपने रास्ते चले ही थे, लेकिन कुछ कदम चलकर फिर पलटे और देखा कि जद्दनबाई के बगल वाली कुर्सी पर एक बहुत यंग, मासूम सी लड़की भी बैठी है. राज लौटे और कुछ मिली सेकंड के लिए उस लड़की को देखते रहे. लड़की थोड़ी असहज हो रही थी. राज ने लड़की से सवाल किया, 'ऐ लड़की, तुम्हारा नाम क्या है?' करीब 16 साल की उस लड़की ने बड़े भोलेपन के साथ दोनों हाथों को एक अनोखे अंदाज में जोड़ते हुए जवाब दिया, 'जी मेरा नाम नवाब बानो है.'
असल में राज एक तरफ 'अंदाज' शूट कर रहे थे और दूसरी तरफ अपनी अगली फिल्म 'बरसात' की प्लानिंग शुरू कर चुके थे. फिल्म की कास्टिंग में सारी कड़ियां फिट हो चुकी थीं, लेकिन राज को सेकंड लीड रोल के लिए ऐसी एक्ट्रेस नहीं मिल रही थी, जिसमें 'गांव की गोरी' वाला नेचुरल भोलापन हो, जैसा 'बरसात' के किरदार में लिखा गया था. 'अंदाज' के सेट पर जब राज ने नवाब बानो को देखा तो जैसे 'बरसात' की कास्टिंग वाली पहेली का आखिरी पेंच भी सुलझ गया.
सिनेमा में नवाब बानो की एंट्री का फिल्मी फ्लेशबैक
18 फरवरी 1933 को जन्मी नवाब बानो असल में 'अंदाज' के डायरेक्टर महबूब खान की मुंहबोली बहन, वहीदन की बेटी थीं. भारत की आजादी से बहुत पहले के दौर में, 1930 के दशक में वहीदन एक तवायफ थीं और वो पेशा बदलकर फिल्मों में सिंगर-एक्ट्रेस बनी थीं. उन्होंने कुछ फिल्मों में काम किया था और इसलिए इंडस्ट्री में लोग उन्हें पहचानते थे. वहीदन ने आगरा के मिलिट्री कॉन्ट्रैक्टर अब्दुल हाकिम से शादी की थी. लेकिन अब्दुल मेरठ में रहते थे जहां दूसरी शादी से उनका एक और परिवार भी था.
वहीदन एक्ट्रेस बनने के बाद मुंबई (तब बॉम्बे) ज्यादा रहा करती थीं और जब अचानक उनका निधन हुआ तो निम्मी केवल 11 साल की थीं. तबतक उनके पिता और मां के बीच संपर्क लगभग खत्म ही था. इसलिए निम्मी को उनकी नानी के पास रावलपिंडी भेज दिया गया, जो 1947 के बंटवारे के बाद अपनी दूसरी बेटी के साथ मुंबई चली आईं. वहीदन की फिल्म इंडस्ट्री में पहचान मजबूत थी इसलिए जानने वालों के जरिए निम्मी का करियर फिल्मों में बनाने की कोशिशें शुरू कर दी.
वो फिल्मों के सेट पर जाया करती थीं और इसी तरह वो महबूब खान की 'अंदाज' के शूट पर पहुंची थीं. निम्मी वहां सेट पर साइड में खड़ी थीं, क्योंकि दो कुर्सियों में से एक पर जद्दनबाई बैठ चुकी थीं. और मासूम निम्मी में इतनी हिम्मत ही कहां थी कि वो जद्दनबाई के बगल में जा बैठें! मगर अपनी बेटी का शूट देखने पहुंचीं जद्दनबाई ने इस 16 साल की लड़की को खड़ा देखकर, खुद ही उसे बैठने के लिए बुला लिया.
उस लड़की के दरवाजे पर अब फिल्मों का एक पूरा नया, जादुई संसार दस्तक देने वाला था. वो लड़की अब एक आइकॉन बनने वाली थी. उसने हाथों के जिस स्टाइल के साथ राज कपूर को जवाब दिया था, वो सिनेमा के पर्दे पर उतरकर यादगार बनने वाला था. इस लड़की को अपने करियर में कई आइकॉनिक फिल्मों में सेकंड फीमेल लीड किरदार निभाने थे. और एक दौर ऐसा भी आने वाला था जब सपोर्टिंग रोल में इस लड़की की ऑनस्क्रीन जल्दी मौत होने से प्रोड्यूसर को डर लगने वाला था कि कहीं दर्शक नाराज ना हो जाएं!
'अगर किसी दिन मैंने तुम्हें किसी और लड़की के साथ...'
राज ने उस लड़की को ऑडिशन के लिए बुलवा लिया. बड़ी हाईफाई सी कार लेने आई. लड़की पहुंची तो डायलॉग लिखा एक पर्चा देकर कहा गया कि इसे कैमरे के आगे पढ़ देना है. कैमरा रोल हुआ और वो नर्वस होने लगी. पर्चा तो रट लिया था लेकिन पूरा डायलॉग बोलते-बोलते आंख से आंसू गिरने लगे. लड़की ने बोलना खत्म किया तो देखा सेट पर मौजूद सब लोग तालियां बजा रहे हैं. उसने घबराकर एक असिस्टेंट से पूछा कि ये क्या हो रहा है? असिस्टेंट ने हंसते हुए बताया, 'अरे आप टेस्ट में पास हो गईं आपको फिल्म में काम मिल गया है.' नवाब बानो को राज कपूर ने अपनी बहन माना था और फिल्म करियर की शुरुआत हुई तो उन्हें नया नाम दिया- निम्मी.
'बरसात' की कहानी में दो कपल थे- प्राण-रेशमा यानी राज कपूर-नरगिस और गोपाल-नीला यानी प्रेम नाथ और निम्मी. प्राण और गोपाल कश्मीर में छुट्टियां मनाने गए दो शहरी लड़के थे, जिन्हें वहां की लड़कियों से प्यार हो जाता है. दोनों लड़के वापस शहर लौटते हुए अपनी प्रेमिकाओं से वादा करते हैं कि वो अपना प्रेम निभाएंगे. प्राण अपना वादा पूरा करता है, लेकिन गोपाल बेवफाई करने लगता है. जबकि नीला ने उसे कहा था, 'अगर किसी दिन मैंने तुम्हें किसी और लड़की के साथ देख लिया तो याद रखना मैं कुछ खा लूंगी.'
जबतक गोपाल को अक्ल आती है और वो वापस अपनी प्रेमिका के पास लौटता है, तबतक नीला उसके गम में मर जाती है. 'बरसात' के इस ट्रेजडी भरे अंत की वजह से जनता की सहानुभूति नीला के किरदार के लिए खूब उमड़ी और ये किरदार निभाने वाली निम्मी को खूब पॉपुलैरिटी मिली. इसके बाद निम्मी ने 1950 के दशक में 'अमर', 'चार दिल चार राहें', 'दीदार', 'दाग', 'सजा' और 'आंधियां' जैसी कई फिल्मों में काम किया.
अधिकतर फिल्मों में उनका भोलापन, उनके किरदारों की एक हाईलाइट था. राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद जैसे बड़े हीरोज की कई-कई फिल्मों में निम्मी ने काम किया. 'देवदास' (1955) में पारो (सुचित्रा सेन) के साथ अपने अधूरे प्यार की टीस में शराबी बन चुके देवदास के रोल में दिलीप कुमार सभी को याद हैं. मगर उससे पहले दिलीप साहब 'दाग' (1952) में भी एक पारो के गम में शराब के सहारे टिके नजर आए थे, उस पारो का किरदार निम्मी ने निभाया था.
जिन फिल्मों में निम्मी ने सेकंड लीड या आज की भाषा में 'सपोर्टिंग किरदार' निभाए उनमें नरगिस, मधुबाला, मीना कुमारी और सुरैया जैसी नामी एक्ट्रेसेज ने काम किया था. मगर हीरो की प्रेमिका वाले लीडिंग रोल की बजाय, निम्मी ने जो ट्रैजिक किरदार निभाए वो कहानी के ट्विस्ट का सेंटर होते थे. वो इन किरदारों को पूरी ईमानदारी से निभा भी लेती थीं और इसलिए उनकी पॉपुलैरिटी जनता में अलग लेवल पर थी.
निम्मी की पॉपुलैरिटी का मीटर
'आन' (1952) भारत की पहली टेक्नीकलर फिल्म थी और इसमें भी निम्मी ने दिलीप कुमार की प्रेमिका का किरदार निभाया था. इस फिल्म में निम्मी का किरदार जहर खाकर आत्महत्या कर लेता है. पुरानी खबरें बताती हैं कि जब 'आन' के फाइनेंसर और डिस्ट्रीब्यूटर्स ने फिल्म का पहला एडिट देखा तो वो परेशान हो गए थे.
उन्हें डर था कि निम्मी के किरदार का जल्दी मर जाना कहीं दर्शकों को नागवार ना गुजरे. इसलिए फिल्म के अंत की तरफ एक ड्रीम-सीक्वेंस जोड़ा गया ताकि निम्मी को और स्क्रीन टाइम मिले. 'आन' जबरदस्त हिट हुई और अपने दौर की सबसे बड़ी फिल्मों में से एक बन गई. 'आन' उन शुरुआती हिंदी फिल्मों में से एक थी जिन्हें वर्ल्डवाइड रिलीज किया गया और इस फिल्म को विदेशों में भी अच्छी कामयाबी मिली. 'आन' का प्रीमियर लंदन में भी हुआ और उस इवेंट पर कुछ ऐसा हुआ जिसने निम्मी को विदेशी अखबारों की हैडलाइन बना दिया.
'अनकिस्ड गर्ल ऑफ इंडिया'
निम्मी के फिल्मी सफर की शुरुआत से आप समझ चुके होंगे कि पर्दे पर उनके भोले किरदारों की कामयाबी का असली कारण उनकी रियल लाइफ मासूमियत थी. इस मासूमियत का एक किस्सा 'आन' के लंदन प्रीमियर से जुड़ा है.
'आन' के प्रीमियर के बाद हॉलीवुड की एक बड़ी शख्सियत ने फिल्म की टीम को अपनी पार्टी में बुलाया. कई साल पहले के एक इंटरव्यू में निम्मी ने बताया था कि उस पार्टी में, उस दौर के कई बड़े हॉलीवुड एक्टर्स भी थे जो 'आन' की टीम को रिसीव करने के लिए खड़े हुए थे. इनमें डगलस फेयरबैंक और एरन फ्लिन भी शामिल थे जो उस दौर में हॉलीवुड के बड़े एक्टर्स में से एक थे. विदेशों में तब भी और आज भी, लोगों से मिलते हुए उनका हाथ चूमना कल्चर का हिस्सा है. निम्मी आगे बढ़ीं तो एरन फ्लिन उनका हाथ पकड़ने बढ़े. निम्मी ने झट से हाथ पीछे खींचते हुए कहा- 'नो'. एरन ने पूछा 'व्हाय?', तो निम्मी ने जवाब दिया- 'मैं एक इंडियन लड़की हूं, आप ऐसा नहीं कर सकते.'
अगले दिन अखबारों में निम्मी का जिक्र करते हुए हैडलाइन छपी- '...Unkissed girl of India.' निम्मी कई इंटरव्यूज में बता चुकी हैं कि 'आन' के बाद उन्हें हॉलीवुड से कम से कम चार फिल्मों के ऑफर मिले, लेकिन उन्होंने ये सोचकर हॉलीवुड फिल्में छोड़ दीं कि 'ये किस-विस मुझसे नहीं होगा.' हालांकि, इंटरव्यूज में ये सब बताते हुए वो अक्सर इन बातों को अपनी 'नासमझी' कहा करती थीं.
'मुगल-ए-आजम' से भी एपिक वो फिल्म जो पूरी ना हो सकी
निम्मी से फिल्ममेकर्स किस कदर इम्प्रेस थे, इसे समझने का एक तरीका और है. भारतीय सिनेमा की सबसे आइकॉनिक फिल्मों में शुमार 'मुगल-ए-आजम' का नाम तो आपने सुना ही होगा. डायरेक्टर के. आसिफ ने इससे पहले एक फिल्म पर काम शुरू किया था, जो लैला-मजनूं की कहानी पर बेस्ड थी. फिल्म का टाइटल था 'लव एंड गॉड'. निम्मी का मानना था कि ये फिल्म उनके करियर के लिए परफेक्ट आखिरी फिल्म होगी और उन्हें उस तरह का फेम दिलाएगी जो 'मुगल-ए-आजम' से मधुबाला को मिला था. ऐसा सोचने की एक वाजिब वजह भी थी, आसिफ खुद निम्मी से कहा करते थे कि 'जिस दिन ये फिल्म पूरी होगी लोग 'मुगल-ए-आजम' को भूल जाएंगे.'
'लव एंड गॉड' में निम्मी और गुरु दत्त लीड रोल में थे. लेकिन गुरु दत्त के अचानक निधन के बाद फिल्म अटक गई. फिर लीड रोल में संजीव कुमार को लेकर इस फिल्म पर दोबारा काम शुरू हुआ. मगर फिर के. आसिफ ही दुनिया से रुखसत हो गए और ये फिल्म डब्बा बंद हो गई.
आसिफ के निधन के बाद उनकी पत्नी ने आधी-अधूरी बनी 'लव एंड गॉड' को 1986 में, पति की एक याद के तौर पर रिलीज किया. मगर निम्मी इससे बहुत पहले, धर्मेंद्र की फिल्म 'आकाशदीप' (1965) में काम करने के बाद रिटायर हो चुकी थीं. उन्होंने महबूब खान की फिल्मों में राइटर रहे अली रजा से शादी कर ली थी और रिटायरमेंट के बाद ज्यादातर पारिवारिक जीवन में ही व्यस्त रहीं. बढ़ती उम्र में वो बीमार रहने लगी थीं और 2020 में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
'बरसात' से निम्मी को रातोंरात मिली कामयाबी की एक वजह ये थी कि नरगिस के लीड रोल में होने के बावजूद, फिल्म के कई गाने उन्हीं पर फिल्माए गए थे. इस फिल्म से 'बरसात में हमसे मिले तुम', 'जिया बेकरार है' और 'पतली कमर है' जैसे गाने आज भी सुने-देखे जाते हैं. और इनमें निम्मी की एक्टिंग, उनकी खूबसूरती और उनका ट्रेडमार्क भोलापन आज भी साफ नजर आता है.