ओटीटी सीरीज पंचायत में सचिव के किरदार से घर-घर में पॉपुलर हुए जीतेंद्र की ख्वाहिश है कि वे स्क्रीन पर दिल्ली के चीफ मिनिस्टर अरविंद केजरीवाल के किरदार को साकार करें. अब जबकि पंचायत का दूसरा सीजन आने को तैयार है तब जीतेंद्र ने aajtak.in से अपने शूटिंग एक्स्पीरियंस और काम को दर्शकों के मिले रिस्पॉन्स पर बातचीत की.
सवालः पंचायत की सक्सेस के बाद इसके दूसरे सीजन को लेकर कितने नर्वस व एक्साइटेड हैं?
जीतेंद्रः नर्वस तो हर प्रोजेक्ट को लेकर रहता हूं. पता नहीं लोग कैसे रिस्पॉन्स करेंगे. खासकर पहले भाग को जो रिस्पॉन्स मिला है, वो प्रेशर तो बना है. हैरानी की बात है कि पंचायत को शहर के लोगों ने काफी पसंद किया था. अभी यही देखना है कि क्या उसी फ्लो में लोग हमारे इस नए सीजन को पसंद करेंगे.
सवालः आपका किरदार आज के यूथ को रिप्रेजेंट करता है. किस तरह का मेसेज देना चाहते हैं?
जीतेंद्रः मुझे लगता है कि इंडिया ट्रांसिशनल फेज पर है. बहुत सी चीजें नई हो रही हैं, बहुत सी अडैप्टेबिलिटी आ रही हैं. उसके हिसाब से लगता है कि बदलाव तो आएगा ही. मेरा किरदार वही कहता है कि दिक्कतें तो बहुत सी आनी हैं लेकिन उससे बचने के बजाए उसे फेस करने की जरूरत है. मैं मानता हूं कि हमारे देश के यूथ ने हर जेनरेशन में वो बदलाव लाया है और अच्छे से इवॉल्व किया है.
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सवालः सचिव के किरदार के लिए अबतक का सबसे बेस्ट कॉम्पलीमेंट?
जीतेंद्रः तारीफें तो बहुत सी मिली हैं. सचिव की नौकरी ऐसी है, जिसके लिए हर कोई अप्लाई करता है. चाहे वो इंजीनियर हो या ग्रैजुएशन वाला बंदा. बहुत से लोगों ने मुझे मेसेज किया है. ये वैसे लोग हैं, जो सरकारी नौकरी के दबाव पर जबरदस्ती गए हुए हैं. शो ने उनके अंदर एक्साइटमेंट भरा है. उनमें यह कॉन्फिडेंस आया है कि वो भी अब गांव में रह सकते हैं. ये लोग मुझे अपनी तस्वीरें भेजा करते थे, अपनी पंचायत की और रूम की. यह सब देखकर बहुत अच्छा लगा कि चलो हमारी कहानी उनतक पहुंची है.
सवालः आपने आईआईटी से इंजीनियरिंग की है. सेटल करियर को छोड़ एक ऐसी फील्ड में आना, जहां सफलता की कोई गारंटी नहीं है. लगता है सही फैसला लिया था?
जीतेंद्रः मैंने बाकी चीजें भी ट्राई की थीं. मैंने जॉब भी किया है, लेकिन वहां जाकर यह अहसास हुआ कि मैं ये सब चीजें कर नहीं पाऊंगा. मैं यहां रह गया तो आगे नहीं बढ़ पाऊंगा. मुझे बहुत पहले से ही यह अहसास था कि मैं बुरा इंजीनियर हूं. दिल से चीजें नहीं बना पाऊंगा. मैं इसके अलावा कॉलेज में थिएटर करता था, तो एक्टिंग को लेकर पैशन था. जिस पैशन को लेकर मैं मुंबई आया था और यहां तीन चार महीने ब्रेक की आस में बैठा रहा. पेशेंस नहीं था, तो फिर घबरा गया और वापस बैंगलोर जॉब के लिए चला गया. वहां भी मन नहीं लगा. फिर मैंने एक्टिंग स्कूलों में अप्लाई किया, वहां भी सिलेक्ट नहीं हुआ. आखिरकार मुंबई आकर थिएटर शुरू किया. उस दौरान यू-ट्यूब नया-नया आया था. उसने वेब क्रिएट किया और चीजें लोगों तक पहुंचने लगी थी. वहां से मेरी जिंदगी बदली है.
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सवालः आज आपको सोशल मीडिया का सुपरस्टार कहा जाता है. यकीन होता है? खुद के वैलिडेशन के लिए कोई लक्जरी चीज खरीदी हो?
जीतेंद्रः हां, मैंने कार खरीदी है. वैसे कोई खास शौक नहीं है. बचपन से सोचा करता था कि कभी पैसे आए, तो ये कार जरूर खरीदूंगा. वहां से मैंने शुरूआत की है. हालांकि लग्जरी कार नहीं है, ये बचपन के सपने वाला कार है. रही बात सुपरस्टार की, ये तो पता नहीं फिलहाल अपने काम को इंजॉय करता हूं.
सवालः गांव में शूटिंग करते वक्त क्या ऐसी चीजें लगी हैं, जिसकी कमी शहर कभी पूरा नहीं कर सकता है?
जीतेंद्रः जो बेसिक चीज है, वो है पूरा दिन. मुंबई में तो पता ही नहीं चलता है कि कब सुबह हुई है और कब दिन गुजर गया. वहां आप हर पहर महसूस करते हैं. एक-एक चीज को आप इंजॉय कर पाते हैं. मसलन शाम हुई है, तो वहां आसपास के लोगों संग बैठकर आप चाय पी रहे हैं, बातें कर रहे हैं. काफी समय बाद यह अहसास किया कि भई एक पूरा दिन होता है, फ्रेश ऑक्सीजन पॉसिबल है.
सवालः शूटिंग कहां हुई थी और कैसा रहा एक्स्पीरियंस?
जीतेंद्रः मध्यप्रदेश में एक गांव है महौरिया. वहां की असली पंचायत में जाकर हमने शूट किया है. वहां के प्रधानजी ने हमें परमिशन दिलवाई थी. बहुत ही अच्छा गांव है, एक बात जो मुझे खली कि वहां ज्यादा लोग नहीं दिखते थे. या तो बच्चे हैं या फिर बुजुर्ग. यूथ दिखते ही नहीं थे, फिर पता चला कि यूथ तो सारे शहर चले गए हैं. उनलोगों ने हमेशा अच्छा माहौल दिया है. शूटिंग के वक्त कोई दिक्कत नहीं हुई थी.
सवालः बायोपिक का दौर है. आप किसकी कहानी पर्दे पर जीना चाहेंगे?
जीतेंद्रः पता नहीं क्यों, लेकिन मुझे केजरीवाल जी को पर्दे पर जीना है.