scorecardresearch
 

आज के रिव्यूज बिकाऊ हो चुके हैं, ऑडियंस का ओपिनियन ज्यादा मायने रखता है: पूजा भट्ट

पूजा भट्ट इन दिनों अपनी फिल्म चुप: रिवेंज ऑफ द आर्टिस्ट का प्रमोशन कर रहे हैं. ऐसे में उन्होंने आजतक.इन के साथ बातचीत की. उन्होंने फिल्मों को मिलने वाले रिव्यू को लेकर अपनी राय रखी. फिल्मों को लेकर निगेटिविटी और उन्हें लेकर चल रहे कैंसिल कल्चर पर भी पूजा भट्ट ने बात की.

Advertisement
X
पूजा भट्ट
पूजा भट्ट

एक्ट्रेस पूजा भट्ट जल्द ही अपनी फिल्म 'चुप: रिवेंज ऑफ द आर्टिस्ट' में नजर आने वाली हैं. इस फिल्म में उनके साथ सनी देओल और दुलकर सलमान ने काम किया है. आर बाल्की की बनाई यह एक थ्रिलर फिल्म है. फिल्म का प्रमोशन पूजा भट्ट जोर-शोर से कर रही हैं. इस बीच आजतक.इन के साथ पूजा भट्ट ने बातचीत की. उन्होंने फिल्मों को मिलने वाले रिव्यू को लेकर अपनी राय रखी.

Advertisement

रिव्यू को लेकर क्या बोलीं पूजा?

पूजा भट्ट ने कहा, 'बॉक्स ऑफिस कलेक्शन का यही अर्थ होता है न कि ऑडियंस ने आपको और आपकी फिल्म को कितना स्वीकारा है. अगर कोई इंसान मेहनत से कमाए हुए पैसे से टिकट खरीदता है, ताकि वो फिल्म देख सके. तो मेरे लिए ऐसे इंसान का ओपिनियन उससे कहीं ज्यादा मायने रखता है, जो रिव्यूज पैसे के लिए लिखता है.'

उन्होंने आगे कहा, 'देखिए, आखिरकार रिव्यूवर भी जॉब कर रहा होता है. हम एक ही इंडस्ट्री के होते हैं, तो आपका काम है कि फिल्म को जज करना. हम एक ही इको सिस्टम में जीते हैं. रिव्यू जरूरी भी है क्योंकि मैं अपने आपको भगवान मानना शुरू कर दूं और एक के बाद एक घटिया फिल्म लाती रहूं, तो आपकी जिम्मेदारी है कि मुझे जमीन पर लेकर आएं. मगर आप अगर अपने कॉलम के जरिए, अपने आपको भगवान समझने लगेंगे, तो सही नहीं है. आज यही हो रहा है. अब ओपिनियन बिकाऊ हो चुके हैं. पब्लिक डोमेन पर यही चलता नजर आ रहा है. मैं आपकी तारीफ और कटाक्ष स्वीकारती हूं, अगर आप जेनुइनली कहते हैं. आपको पूरा हक है कि मेरी परफॉर्मेंस, फिल्म का क्लाइमैक्स, स्टोरी पर बात करें. आप अपनी रिव्यू से मुझे कंट्रोल नहीं कर सकते हैं, न ही आपकी तारीफ मुझे खुश कर सकती है और न ही आपकी आलोचना मुझे निराश करती है.'

Advertisement

'हालांकि एक्ट्रेस के रूप में मुझे क्रिटिक्स का हमेशा से प्यार मिला है. मीडिया से मुझे कभी कोई कंपलेन नहीं रही है. हां पहली बार क्रिटिसिज्म का सामना तब हुआ, जब मैं डायरेक्टर बनी थी. मैंने एक चीज भट्ट साहब से सीखा है कि फिल्म अगर हिट हो, तो यह सबका है. फ्लॉप हो, तो तुम्हारा है, ये तुम्हें एक्सेप्ट करना होगा. मेरी फिल्म को लेकर कई क्रिटिसिज्म मिले थे. कई ऐसे चेहरे भी थे कि जिन्होंने यह सोच लिया था कि अभी तो मैं तुम्हें सबक सीखाऊंगा, तुम अपने आपको ये समझती हो, मैं नीचे लेकर आऊंगा. फिल्म चुप में बहुत गहरी बात है, कि आर्ट का कोई भी फॉर्म हो, वो आपके अंदर की आग और दर्द से आता है. चाहे गुरू दत्त साहब की बात लें. वो ऐसे फिल्म मेकर थे, जिसे इंडस्ट्री ने रिजेक्ट कर दिया था. लोग कहने लगे थे कि इसकी कहानी खत्म है. और आज हम कागज के फूल को क्लासिक कहते हैं. हमारा कल्चर ही यही है कि जो जिंदा है, आप उसे प्यार नहीं देंगे, सम्मान नहीं देंगे और गुजरने के बाद उसकी फिल्म को कल्ट करार देंगे. कई लोगों को यह बात समझ नहीं आती है कि कई आर्टिस्ट ऐसे हैं, जो अपने वक्त से आगे हैं. उन्हें उनका ड्यू नहीं मिला है. लोगों को उनकी अहमियत तब समझ आती है, जब वो जा चुका होता है.'

Advertisement

निगेटिविटी-कैंसिल कल्चर पर पूजा भट्ट ने कही ये बात

फिल्मों को लेकर निगेटिविटी और उन्हें लेकर चल रहे कैंसिल कल्चर पर भी पूजा भट्ट ने बात की. उन्होंने कहा, 'एक बहुत बड़ी कोशिश की गई थी कि बॉलीवुड को उसके घुटनों पर लाकर खड़ा कर दे. आप समझते नहीं हो कि हमारा देश जो है, उसके कुछ पावर हैं. किसने आपके जेहन में डाला है कि सॉफ्ट पावर भी आपका नहीं है. जब भी आप दुनियाभर जाते हैं, जब आप लोगों से कहते हैं कि मैं इंडिया से हूं, तो उनका पहला रिएक्शन होता है कि ओह.. बॉलीवुड. आप क्यों इस सॉफ्ट पावर को खत्म कर देना चाहते हो. मैं यही कहूंगी कि आप इसे खुद का बनाओ, क्लेम करो. खत्म करना क्यों है. हां, कोशिश तो जरूर की गई थी कि इसे खत्म कर दी जाए और एक ऑल्टरनेट बॉलीवुड खड़ा कर दिया जाए. मेरा सवाल यही है कि क्या आप इतने सालों की हिस्ट्री, फिल्म, डायरेक्टर्स को डिलीट कर सकते हैं. देखिए हम तो मरेंगे, काम तो रहता है. आज के दौर में आपकी बुरी से बुरी फिल्म सैटेलाइट पर रिलीज हो जाती है.'

उन्होंने आगे कहा, 'मैं यही कहूंगी कि यह साजिश थी लेकिन कोई हेट कैंपेन न आपके फिल्म को फ्लॉप कर सकती है और न ही हिट. न ही पीआर से आप अपनी फिल्म को चला सकते हैं. अगर आपकी फिल्म में कोई बात होगी, तो लोग पैसे निकाल कर देखेंगे. वर्ना ट्वीटर पर गाली देना बहुत आसान है,अब तो हर कोई अपना रिव्यूर बन गया है. अब लोग एक दूसरे की आवाज सुनते नहीं हैं. अगर बॉलीवुड घिसा-पिटा हुआ है न, जिसे इंकार नहीं करती कुछ सेक्शन हैं, जो घिसे-पिटे हैं लेकिन अब आपके कैंपेन भी घिसे-पिटे लगने लगे हैं. यार अब अपना हैशटैग तो चेंज कर लो. कोई बायकॉट, कोई बायकुट, पता नहीं क्या चल रहा है. थोड़ा अपग्रेड करो अपने आपको. हम क्यों एक दूसरे को खत्म करने पर तुले हुए हैं.'

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement