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भारत में सिनेमा की शुरुआत से ही जब फिल्ममेकर्स ने भारतीय संस्कृति से जुड़ी कहानियों को बड़े पर्दे पर उतारने की कोशिशें शुरू कीं, तो रामायण उनकी लिस्ट में बहुत ऊपर थी. सिनेमा में रामायण पर आधारित कहानियों के आने की शुरुआत तो साइलेंट फिल्मों के दौर में ही हो गई थी.
फिल्मों में साउंड आने के बाद से रामायण को फिल्म में उतारने की कोशिशों ने और भी जोर पकड़ा. 1930-40 के दशकों में पूरे भारत में अलग-अलग भाषाओं में रामायण पर आधारित कई फिल्में बनीं. इन फिल्मों में डायरेक्टर विजय भट्ट की 'राम राज्य' (1943) एक बहुत खास फिल्म थी. विजय इससे ठीक एक साल पहले रामायण पर बेस्ड फिल्म 'भरत मिलाप' बना चुके थे, जो काफी पॉपुलर हुई. मगर 'राम राज्य' की पॉपुलैरिटी और भी ज्यादा थी. इस फिल्म की पॉपुलैरिटी के गवाह तीन बहुत अनोखे फैक्ट हैं.
अमेरिका में प्रीमियर
विजय भट्ट की 'राम राज्य' के नाम यूएसए में प्रीमियर होने वाली पहली भारतीय फिल्म होने का रिकॉर्ड है. देश की आजादी से ठीक पहले के सालों में सिनेमा की लोकप्रियता बहुत तेजी से बढ़ रही थी. इसी सिनेमा एक्सचेंज का फायदा ये हुआ कि भारतीय माइथोलॉजी पर बनी 'राम राज्य' को यूएसए में प्रीमियर का मौका मिला.
महात्मा गांधी की देखी हुई एकमात्र फिल्म
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक कहे जाने वाले, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सिनेमा को कुछ खास पसंद नहीं करते थे. बल्कि बापू ने 1929 में, रंगून में एक भाषण देते हुए सिनेमा को 'समाज का दुश्मन' तक कहा था. सिनेमा से वो इतनी दूरी रखते थे कि 1931 में जब लेजेंड चार्ली चैपलिन ने उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की, तो पहले गांधी जी को ये बताया गया कि चैपलिन हैं कौन!
लेकिन महात्मा गांधी अपने आंदोलनों में जब स्वतन्त्र भारत में लोकतंत्र के सपने के बारे में बात करते थे, तो इसकी तुलना 'राम राज्य' से करते थे. शायद यही वजह थी कि अपने सारे पूर्वाग्रह किनारे रखते हुए बापू ने जो एकमात्र भारतीय फिल्म देखी, वो विजय भट्ट की 'राम राज्य' थी.
प्रेम अदीब और शोभना समर्थ की जोड़ी हुई पॉपुलर
वैसे तो, डायरेक्टर विजय भट्ट ने 1942 में अपनी फिल्म 'भरत मिलाप' में पहली बार राम और सीता के रोल के लिए प्रेम अदीब और शोभना समर्थ को कास्ट किया था. लेकिन इस फिल्म की कहानी का फोकस, मर्यादा पुरुषोत्तम राम और उन्हें ईश्वर तुल्य मानने वाले उनके भाई भरत पर ज्यादा था.
हालांकि, फिल्म के सभी एक्टर्स को उनके किरदारों से ही पहचाना जाना शुरू हो गया था. मगर 'राम राज्य' में जब फिल्म की कहानी में सीता हरण, राम के विरह, लंका के युद्ध और अयोध्या वापसी को एक्सप्लोर किया गया तो लीड एक्टर्स की छवि जैसे दर्शकों के मन में ही बस गई. यहां से लोगों के लिए प्रेम अदीब और शोभना समर्थ ही राम-सीता बन गए. इसके बाद कैलेंडर्स और गिफ्ट आइटम पर जब राम-सीता नजर आते तो उनके चेहरे इन्हीं एक्टर्स के होते.
रामायण पर आधारित कहने होने से ही 'राम राज्य' को दर्शकों ने ऐसा प्यार दिया कि फिल्म के हिस्से बड़ी कामयाबी आई. इंडियन सिनेमा के उस दौर में सबसे बड़े स्टूडियो, बॉम्बे टॉकीज की मसाला एंटरटेनर 'किस्मत' और आइकॉन बन चुके के एल सहगल की 'तानसेन' के बाद 'राम राज्य' 1943 की तीसरी सबसे बड़ी हिंदी फिल्म थी.