90s के दशक की राजनीति और गैंगस्टर दो ऐसे टॉपिक हैं जिनपर लोग आज भी पूरे चस्के के साथ गप्पबाजी कर लेते हैं. दोनों के बीच की लकीर न जाने कितने नामों पर आकर लगभग मिट जाती है. इन्हें जनता ने 'बाहुबली' कहा. पॉलिटिक्स के गेम में बड़े खिलाड़ी रहे इन बाहुबलियों की कहानियां लोग किसी एपिक की तरह सुनते-सुनाते हैं.
Zee5 के शो 'रंगबाज' का पहला सीजन 2018 में आया था. साकिब सलीम स्टारर शो ने धीरे-धीरे अपनी एक अलग पहचान बना ली और शो का गोल ये दिखाना हुआ कि कैसे एक आम व्यक्ति गैंगस्टर बनता है. जिमी शेरगिल के साथ 2019 में शो का दूसरा सीजन आया, जिसमें एक अलग गैंगस्टर की कहानी दिखाई गई.
अब रंगबाज का तीसरा सीजन आया है जिसका नाम है 'डर की राजनीति'. 'मुक्काबाज' फेम विनीत कुमार सिंह लीड रोल में हैं. 6 एपिसोड की ये सीरीज जैसे ही आप शुरू करेंगे उसमें दो एकदम उलट डिस्क्लेमर आते हैं. पहला कहता है कि ये कहानी एक फिक्शन है. लेकिन दूसरा कहता है 'रियल घटनाओं से प्रेरित'. शो देखने पर समझ आता है कि कहानी रियल के बहुत करीब भी है, मगर कहानी कहने में फिक्शन का सहारा भी लिया गया है.
बिहार की राजनीति में रत्ती भर इंटरेस्ट लेने वाले लोग भी शो की कहानी से पता लगा लेंगे कि कौन सा किरदार किस रियल इंसान से मेल खाता है. शो की रिलीज से पहले रंगबाज 3 के मेकर्स और लीड एक्टर विनीत कुमार सिंह ने कई जगह कहा कि शो बिहार के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की कहानी पर नहीं है. मगर ऐसा है या नहीं ये जानने के लिए आपको शो देखना होगा.
कहानी
शो शुरू होता है एक कपल से जो आत्महत्या करने के लिए रेल की पटरी पर बैठा है. मगर कोई है जो उन्हें बचा लेता है और उनकी शादी करवा देता है. यहां एंट्री होती है कहानी के हीरो हारून शाह अली बेग की जिसे सब 'साहब' कहकर ही बुलाते हैं. 1989 से शुरू होकर 2010 तक फ्लैशबैक में जाती और वापस लौटती टाइमलाइन में आपको 'साहब' के बचपन से जवानी तक और फिर गैंगस्टर बनने की कहानी दिखाई जाती है.
ये सब जिस जगह घट रहा है उसका नाम धीवान है जो बिहार की रियल जगह सीवान से बहुत मेल खाता है. पॉलिटिक्स के दो मुख्य चेहरे हैं जिन्हें देखकर आपको बिहार पॉलिटिक्स में नीतीश कुमार-लालू प्रसाद यादव की इक्वेशन याद आएगी. कहानी में चारा घोटाला से लेकर कॉमरेड चंदू की हत्या तक कई घटनाएं हैं जो रियल लाइफ से एकदम पैरेलल लगती हैं.
हारून शाह अली बेग बने विनीत कुमार सिंह का काम बिल्कुल उसी ऑरा में है जिसकी जरूरत उनके किरदार को थी. उनका चलना बोलना देखना सब कुछ एक दमदार बाहुबली की इमेज तैयार करता है. क्लोजअप शॉट्स में विनीत के एक्सप्रेशन तब भी बहुत असरदार लगते हैं जब वो जुबान से एक भी शब्द नहीं बोल रहे.
लेकिन उनके किरदार के साथ एक छोटी सी समस्या है, जो इस बार की कहानी को पिछले दो सीजन से अलग करती है. पहले दो सीजन में 'रंगबाज' के किरदारों का एक पूरा सफर था जिससे ये महसूस होता था कि आदमी पैदा ही गैंगस्टर नहीं होता. उसकी परिस्थितियां उसे ऐसा बनाती हैं.
हारून के साथ ये समस्या है कि उनके किरदार के सफर में आपको ये एक पॉइंट मिसिंग लगता है. उससे उसकी कहानी में टिके रहने की वजह थोड़ी कम वजनदार हो जाती है. गैंगस्टर ड्रामा देखने की नीयत से शो शुरू करने वाले दर्शक को गैंगस्टर एक्शन भी चाहिए होता है, जो इस शो में थोड़ी देरी से आता है.
एक्टर्स की परफॉरमेंस
कहानी में विनीत समेत सभी कलाकारों की दमदार परफॉरमेंस आपको शो से बांधे रखती है. रंगबाज 3 में कैमरा वर्क बेहद उम्दा है और एक्टर्स के चेहरे पर मात्र डेढ़ सेकंड ज्यादा कैमरा रुकने से उनके एक्सप्रेशन और वजनदार हो जाते हैं. स्नेहा खानवलकर का म्यूजिक कहानी को भरपूर सपोर्ट करता है और अंत में कैलाश खेर का एक गीत, जो कबीर के निर्गुण के अंदाज में है दिल को छूता है.
शो में परफॉरमेंस की बात करें तो विनीत के बाद गीतांजलि कुलकर्णी का काम बहुत असरदार है. यहां उनका किरदार 'गुल्लक' से बहुत अलग है मगर वो बेहद दमदार लगती हैं. राजेश तैलंग और विजय मौर्या अपने बेहतरीन काम को यहां भी जारी रखते हैं और बिहार के दो बड़े पॉलिटिकल लीडर्स के रोल को दमदार बनाते हैं. आकांक्षा सिंह की स्क्रीन प्रेजेंस बहुत जबरदस्त है लेकिन कहानी में उनके किरदार को थोड़ा और गहराई से लिखा जाता तो और बेहतर होता.
'रंगबाज डर की राजनीति' एक ऐसा गैंगस्टर ड्रामा है जो दर्शकों को बांधकर तो रखेगा लेकिन तभी जब वो इसमें थोड़ा टाइम इन्वेस्ट करना चाहेंगे.