हिंदी सिनेमा में 50 साल पूरे करने वाले खलनायक सपोर्टिंग आर्टिस्ट अभिनेता रजा मुराद ने आजतक से खास बातचीत में हिंदी फिल्मों में सीनियर अभिनेताओं के करियर के राज खोले हैं. रजा मुराद ने कहा कि में तो बस यही कहूंगा की जो ऊपर वाले ने मुझे दिया, वह उम्मीद से ज्यादा दिया. मुझे बहुत काम करने को मिला है. मुझे याद है की मैंने 2 अगस्त 1971 में सबसे पहली बार मुंबई में कैमरा फेस किया था और यह सिलसिला वहीं से शुरू हुआ.
रजा मुराद बोले कि मेरे वालिद मुराद साहब, जो कि एक जाने-माने अभिनेता थे उन्होंने ही मुझे इंस्पायर किया फिल्मों में आने के लिए. वह हमेशा मुझसे कहा करते थे की बेटा हमारे जमाने में तो कोई फिल्म इंस्टीट्यूट नहीं हुआ करता था पर तुम्हारे जमाने में है तो किसी अच्छे से इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लो और एक्टिंग की पढ़ाई करो. मैंने वही किया. 18 साल की उम्र में मैंने इंस्टीट्यूट ज्वॉइन किया और दो साल तक एक्टिंग सीखी. 20 साल की उम्र में बाहर आ गया. मैंने खुद को पांच साल दिए थे साबित करने के लिए क्योंकि कमाने वाले सिर्फ मेरे पिता थे और मैं कमा कर उनका हाथ बंटाना चाहता था, इसलिए सोच लिया था की एक्टिंग नहीं तो कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा, लेकिन ऊपर वाले ने मुझे इतना इंतजार नहीं करवाया और मेरा फिल्मी सफर जल्द ही शुरू हो गया. मेरे फिल्मी करियर के इन 50 सालों में मैंने बड़े-बड़े फिल्म मेकर्स के साथ काम किया. राज कपूर के साथ तीन फिल्में करना तकदीर की बात है. संजय लीला भंसाली के साथ चार फिल्में कीं, वह भी मेरा लक है.
रजा ने आगे कहा कि मुझे इस फिल्म जगत से हर एक चीज मिली है चाहे वह नाम हो, शोहरत हो, पैसा हो या इज्जत. मुझे किसी चीज का मलाल नहीं है. मुझे उम्मीद से ज्यादा मिला है और अभी भी में यही कहूंगा की मुझे 50 साल नहीं सिर्फ 50 दिन ही हुए हैं. अभी तो बहुत काम करना बाकी है. शरत सक्सेना ने जो कहा वह सही नहीं, काबिलियत भी होनी चाहिए.
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हाल ही में अभिनेता शरत सक्सेना ने आजतक से इंटरव्यू के दौरान सीनियर एक्टर को काम न मिलने और सिर्फ अमिताभ बच्चन को काम मिलने की बात कही थी. इस पर रजा मुराद कहते हैं कि आप ही बताइए की महानायक कौन है? बॉलीवुड का सबसे बड़ा सितारा कौन है? वह सिर्फ एक ही है. मैं शरत सक्सेना की बात को सही नहीं मानता. मैं भी एक सीनियर अभिनेता हूं और रही काम की बात तो मुझे आज तक काम मिल रहा है. मुझे उसमें कोई गिला शिकवा नहीं है. रही बात महानायक की तो जाहिर है जिस किरदार के नाम से फिल्में बिक जाती हों, जिसकी मौजूदगी से फिल्में ही हो जाती हों तो जाहिर है की प्रोड्यूसर इस पर ही पैसा लगाएगा और फिल्म बनाएगा. जब आप एक कार लेने की हैसियत रखते हैं तो फिर साइकल की सवारी क्यों करेंगे? और उससे भी बड़ी चीज बच्चन साहब ने खुद को इस मुकाम पर लाने के लिए लगातार अपने आप को साबित किया है. उनमें वह योग्यता है की उन्हें आज भी फिल्में ऑफर होती हैं तो काबिलियत भी बहुत अहम होती है, ऐसे मुकाम को हासिल करने के लिए.
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ऐसे बहुत से सीनियर अभिनेता रहे, जिनका व्यवहार उनको ले डूबा
सीनियर एक्टर पर बात करते हुए रजा मुराद कहते है की मैं किसी का नाम नहीं लूंगा, लेकिन यह बताना चाहूंगा की ऐसे तमाम सीनियर एक्टर्स रहे हैं जो अपने व्यवहार के चलते आज फिल्मों में काम नहीं कर पा रहे हैं. वे अभिनेता तो काम के हैं, लेकिन उनका आचरण या अपने फिल्म जगत से जुड़े साथियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं है, इसलिए उनको आज कोई नहीं पूछता. वे उनकी कमी है बच्चन साहब एक उदहारण हैं, जोकि अपने काम के साथ ईमानदार रहते हैं, प्रोफेशनल हैं और उनका व्यवहार भी साथियों के साथ बड़ा उदार होता है. इसीलिए वह महानायक हैं. तो कुल मिलाकर मैं यह कहना चाहूंगा कि खुद की कमी और दूसरों की काबिलियत में फर्क समझना चाहिए और अपना काम करते रहना चाहिए.