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'गरम धरम' से पहले 'नरम धरम' भी थे रॉकी के दादाजी... जिन्हें दिल में बंद करके चाभी गुम कर देती थीं हीरोइनें

'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में धर्मेंद्र और शबाना आजमी की लव स्टोरी वाला एंगल जनता को बहुत पसंद आ रहा है. दोनों सीनियर एक्टर्स का किसिंग सीन भी जनता को बहुत क्यूट लगा. धर्मेंद्र की एक्शन हीरो वाली इमेज जनता के दिमाग में ज्यादा छपी हुई है. मगर अपने दौर में वो एक जबरदस्त रोमांटिक हीरो भी थे, जिनपर हीरोइनें दिल निछावर किया करती थीं.

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धर्मेंद्र, मौसमी चैटर्जी
धर्मेंद्र, मौसमी चैटर्जी

करण जौहर की फिल्म 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' जनता के दिल में उतर चुकी है. फिल्म में लीड रोल कर रहे रणवीर सिंह और आलिया भट्ट की केमिस्ट्री तो जनता को पसंद आ ही रही है. मगर कहानी में एक और लव स्टोरी है जो मेकर्स ने ट्रेलर या गानों में नहीं रिवील की थी. लोग थिएटर्स में एक लव स्टोरी देखने जा रहे हैं और दूसरी के प्यार में पड़ कर लौट रहे हैं. अगर आपने फिल्म नहीं देखी है, तो आगे न पढ़ें, आगे तगड़ा स्पॉइलर है. 

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रॉकी के दादाजी, कंवल लुंड और रानी की दादी, जामिनी चैटर्जी एक्स लवर्स हैं. शिमला, शायरी और एक खूबसूरत शाम से जुड़ी ये प्रेम कहानी फिल्म की रीढ़ है. अब अपनी याद्दाश्त से जूझ रहे, व्हीलचेयर पर बैठे कंवल साहब को रह-रहकर जामिनी याद आती रहती है. उनकी पत्नी, बेटा, पोता नहीं जानते कि ये जामिनी कौन है. इसी जामिनी को खोजने रॉकी निकलता है तो रानी से जा टकराता है. कंवल-जामिनी का दोबारा मिलना, अपने पुराने दिन याद करना और रॉकी-रानी की लव स्टोरी की जमीन बनना, करण जौहर की फिल्म का सबसे प्यारा एंगल है. 

'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में धर्मेंद्र, शबाना आज़मी (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

धर्मेंद्र और शबाना आजमी की केमिस्ट्री फिल्म में इतनी खूबसूरत है कि देखते हुए आप लगातार मुस्कुराते रहते हैं. दोनों एक्टर्स को उनकी परफॉरमेंस और इस उम्र में इतनी सहजता से, बेहद प्यार भरा किसिंग सीन करने के लिए खूब तारीफ़ भी मिल रही है. शबाना आजमी ने अपने करियर में सालों तक लगातार इतने अलग-अलग किरदार और एक्स्परिमेंट किए हैं कि दर्शकों उन्हें किसी भी रोल में देख कर चौंकते नहीं हैं. लेकिन 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' देखते हुए ऑडियंस धर्मेंद्र का 'इश्क का मरीज' वाला अवतार देखकर बहुत सरप्राइज होती दिखी. शायद ये असर खुद धर्मेंद्र की ऑनस्क्रीन इमेज की वजह से है. 

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एक्टर धर्मेंद्र के रास्ते में आई खुद उनकी अपनी पर्सनालिटी
80s और 90s के दौर में धर्मेंद्र को एक एक्शन हीरो की ऐसी इमेज दी, जो उनके नाम के साथ ही जुड़ गई. सनी देओल के 'ढाई किलो का हाथ' वाले डायलॉग से सालों पहले, उनके पापा धर्मेंद्र 'सीता गीता' (1972) में अपना 'तीन किलो का हाथ' गुंडों की हड्डियों पर आजमा चुके थे. लेकिन 'गरम धरम' और 'ही-मैन' जैसे टाइटल से पहचाने जाने वाले धर्मेंद्र, पर्दे पर हमेशा से अपने डोले ही नहीं चमकाते रहे हैं. 

धर्मेंद्र को शुरू से ही डायरेक्टर्स ने एक दमदार एक्टर माना. उन्हें रोमांटिक किरदारों में भी इतना कास्ट किया गया कि एक जमाने में वो लड़कियों के दिलों पर राज किया करते थे. करण जौहर ने 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में धर्मेंद्र को एक तरह से 'रीडिस्कवर' किया है. मगर एक दौर में वो हिंदीसिनेमा के पर्दे के सबसे हैंडसम पुरुष थे. रिपोर्ट्स बताती हैं कि 70s में एक समय उनका नाम दुनिया के 10 सबसे हैंडसम पुरुषों में की लिस्ट में गिना जाता था. उनके लुक्स को, हॉलीवुड के आइकॉनिक स्टार्स पॉल न्यूमैन और जेम्स डीन के बराबर रखा जाता था. 

पॉल न्यूमैन, धर्मेंद्र, जेम्स डीन (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

एक टैलेंट हंट में अपनी सॉलिड एक्टिंग के बूते जीतकर फिल्मों में आए धर्मेंद्र को सीधा बिमल रॉय और गुरुदत्त जैसे लेजेंड डायरेक्टर्स ने अपनी फिल्मों में कास्ट किया. आज जैसे जनता को धर्मेंद्र का 'गरम धरम' अवतार ही याद है, ऐसे ही अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाने के बावजूद कई बार उनकी ठोस बॉडी, खुद उनके ही काम में रोड़ा बन जाती थी. शुरुआती फिल्मों के रिलीज होने का इंतजार करते धर्मेंद्र लगातार इंडस्ट्री में काम खोज रहे थे और इसी बीच उन्होंने आर. के. नय्यर की फिल्म 'लव इन शिमला' के लिए ऑडिशन भी दिया. बाद के एक इंटरव्यू में धर्मेंद्र ने बताया कि ऑडिशन के बाद डायरेक्टर ने उन्हें कहा, 'मुझे हीरो चाहिए, हॉकी प्लेयर नहीं.'

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गरम नहीं, नरम धरम... 
धर्मेंद्र का एक्शन हीरो वाला भौकाल बाद के सालों में वाकई उनकी रोमांटिक हीरो वाली इमेज पर भारी पड़ गया. मगर करियर की शुरुआत में धर्मेंद्र ने कई रोमांटिक हीरो वाले रोल किए. खूबसूरत चेहरे, हसीन मुस्कराहट और शानदार कद-काठी वाले धर्मेंद्र के सबसे बेहतरीन रोमांटिक किरदारों पर एक बार में पूरी बात कर पाना भी बहुत मुश्किल है. तो ऐसा करते हैं कि रोमांटिक, चार्मिंग हीरो धर्मेंद्र के किरदारों की एक ऐसी खूबी बताते हैं जो आपको शायद बहुत सारे रोमांटिक हीरोज में नहीं मिलेंगी. किसी में मिल भी जाए, तो शायद इतनी नहीं मिलेगी जितनी धर्मेंद्र के किरदारों में है. 

धर्मेंद्र (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

धर्मेंद्र, की पर्सनालिटी को फिल्म डायरेक्टर्स ने स्क्रीन पर कैसे ग्लोरिफाई किया, ये समझने का एक मूल मंत्र है. वो गाने, जिनमें फिल्म की हीरोइनें उन्हें मना रही हैं, रिझा रही हैं, उनकी मोहब्बत के सदके कर रही हैं और वो भाव खा रहे हैं. हिंदी फिल्मों के गानों में 'भाव खाता धर्मेंद्र' अपने आप में एक अलग जॉनर माना जा सकता है. ऐसा नहीं है कि बाकी एक्टर्स को इस अंदाज में स्क्रीन पर नहीं दिखाया गया. लेकिन धर्मेंद्र के हीरो वाले ऑरा में इस चीज का दोहराव इतनी बार है कि ये अपनी आप में 'रोमांटिक हीरो धर्मेंद्र' का एक पक्का कैरेक्टर लगता है. 

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भाव खाते धर्मेंद्र और दिल बिछाती हीरोइनें 
धर्मेंद्र की फिल्मों से ऐसे-ऐसे पॉपुलर गाने निकले कि आजतक इन्हें खूब सुना जाता है. लेकिन गानों में उनपर रीझती हीरोइनों को देखना हो तो फिल्म 'आंखें' (1968) में धर्मेंद्र और माला सिन्हा की पहली मुलाकात देखने लायक है. 'मिलती है जिंदगी में मोहब्बत कभी कभी' गाते हुए माला सिन्हा, धर्मेंद्र से कह रह रही हैं 'शरमा के मुंह न फेर नजर के सवाल पर.' और गाने में ब्लश करते हुए धर्मेंद्र को देखिए बस. 

'आंखें' में धर्मेंद्र, माला सिन्हा (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

इससे 6 साल पहले ही 'अनपढ़' (1962) में भी माला सिन्हा, मोहब्बत करने के लिए 'शुक्रिया' कह चुकी थीं. ये गाना था 'आपकी नजरों ने समझा'. इन दो फिल्मों के बीच 'पूजा के फूल' (1964) में भी बड़े पर्दे पर माला और धर्मेंद्र एक शरारत भरे गाने 'बंदा परवर' में साथ दिखे. गाने में माला धर्मेंद्र को छेड़ रही हैं.
 
स्क्रीन पर धर्मेंद्र के किरदार के लिए मोहब्बत का इम्तिहान देने की बात हो, तो मुमताज को कैसे भूला जा सकता है. 'लोफर' (1973) में धर्मेंद्र को मनाते हुए मुमताज गाती हैं- 'शौक से तू मेरा इम्तिहान ले, तेरे कदमों में रख दी है जान ले.' गाने का टाइटल है, 'मैं तेरे इश्क में मर न जाऊं कहीं.' हालांकि, फिल्म की कहानी में ट्विस्ट ये है कि इस मोहब्बत में जासूसी का भी खेल है. मगर इस गाने में धर्मेंद्र को भाव मिलना देखिएगा. 

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'लोफर' में धर्मेंद्र, मुमताज (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

धर्मेंद्र को मनाने का खेल तनूजा ने भी खेला. फिल्म थी 'इज्जत' (1968) और वो गा रही थीं 'ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं हम क्या करें'. हीरो के भाव खाने की हाईट देखिए कि गाने में उसकी लाइन है- 'बुझे दिल में दिया जलता नहीं हम क्या करें'. इससे पहले 'बहारें फिर भी आएंगी' (1966) में तनुजा, धर्मेंद्र के साथ इश्क में होने का ऐलान करते हुए गाती दिखती हैं- 'अब जलता है, जले ज़माना, बनाए फ़साना'. गाने का टाइटल है- 'कोई कहदे कहदे ज़माने से'. 

'बहारें फिर भी आएंगी' में धर्मेंद्र, तनूजा (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

और आखिर इस हट्टे-कट्टे खूबसूरत गबरू जवान से मोहब्बत होने पर किसी लड़की को गुरूर भी क्यों न हो, जिसके लिए 1970 में बड़ी स्क्रीन पर हेमा मालिनी गाती दिखती हैं- 'कामदेव सी तेरी सुरतिया, दिल में समाई-समाई रह गई' (फिल्म- तुम हसीं मैं जवां). हेमा मालिनी और धर्मेंद्र की जोड़ी के फैन्स के लिए खास तौर पर एक फैक्ट: बड़े पर्दे पर हेमा ने धर्मेंद्र को 'कामदेव' पहले कहा था. जबकि धर्मेंद्र ने हेमा को 'ड्रीम गर्ल' कहा 1977 में. हेमा धर्मेंद्र को कई गानों में रोकती, मनाती दिख जाती हैं. 

'तुम हसीं मैं जवां' में धर्मेंद्र, हेमा मालिनी (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

1972 की फिल्म 'राजा जानी' में वो धर्मेंद्र को 'ए बी सी डी छोड़, नैनों से नैना जोड़ने' के लिए मना रही हैं. तो, 1981 में आई 'आसपास' में मुंह फुला कर जाते अपने हीरो को हेमा ने सीधा कह दिया था- 'तुम जो चले गए तो होगी बड़ी खराबी.' इस वार्निंग से धर्मेंद्र रुकते हैं तो उनकी हिरोइन उनपर रीझती हुई कहती है- 'तुम्हें दिल में बंद कर लूं दरिया में फेंक दूं चाभी.' हेमा के धर्मेंद्र पर रीझने का एक ऐसा ही गाना 'सम्राट' में भी है. वैसे ये सरासर गलत बात है कि 'शोले' में जब हेमा के रूठने की बारी आई तो धर्मेंद्र उन्हें मनाने की बजाय गाने लगे कि 'कोई हसीना जब रूठ जाती है, तो और भी हसीन हो जाती है'! 

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'राजा जानी' में धर्मेंद्र, हेमा मालिनी (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

1975 की फिल्म 'साजिश' में सायरा बानो, धर्मेंद्र को मना तो रही हैं, मगर शिकायती अंदाज में. और शिकायत वही है जो आज भी हर रिलेशनशिप में मिलती है, वक़्त न मिलने की. गाना है- 'न ताज चाहिए, न तख़्त चाहिए... तेरा प्यार चाहिए और वक्त चाहिए.' 'समाधी' (1972) में धर्मेंद्र पर रीझते हुए, उनकी पत्नी का रोल कर रहीं आशा पारेख गा रही हैं 'जब तक रहे तन में जिया, वादा रहा, ओ साथिया... हम तुम्हारे लिये तुम हमारे लिए.'

धर्मेंद्र अपने दौर में हर लीडिंग एक्ट्रेस के साथ स्क्रीन पर नजर आते थे. और उनके लिए स्क्रीन पर गातीं हीरोइनों की पूरी एक लिस्ट है. एक तरफ वहीदा रहमान 'मन की आंखें ' (1970) में धर्मेंद्र को आवाज देते कह रही हैं 'चला भी आ, आजा रसिया.' तो दूसरी तरफ 'कर्तव्य' (1979) में रेखा, रोमांटिक सीन में धर्मेंद्र के लिए गा रही हैं- 'दूरी न रहे कोई, आज इतने करीब आओ.' 

'साजिश' में धर्मेंद्र, सायरा बानो (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

1960 में फिल्म डेब्यू करने वाले धर्मेंद्र का करियर, तमाम बड़े बड़े स्टार्स-सुपरस्टार्स के बीच फैला हुआ है. जब उन्होंने फिल्मों में कदम रखा तो शम्मी कपूर अपने पीक पर थे. देव आनंद-राज कपूर अभी भी लीडिंग हीरोज थे. राजेश खन्ना, जीतेंद्र आए और स्टारडम की नई परिभाषाएं गढ़ने लगे. अमिताभ बच्चन ने सिनेमा के हीरो को ही बदल दिया. मगर धर्मेंद्र एक तरह से अपने ही यूनिवर्स में चल रहे थे. 

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रोमांस हो या कॉमेडी, एक्शन हो या ड्रामा धर्मेंद्र की फिल्में चलें या नहीं, लेकिन उनकी एक्टिंग हमेशा ऑन पॉइंट ही थी. नए दौर में श्रीराम राघवन ने 'जॉनी गद्दार' (2007) में एक बार फिर नई पीढ़ी को दिखाया कि धर्मेंद्र की एक्टिंग क्या चीज है. अनुराग बासु ने 'लाइफ इन अ मेट्रो' (2007) में धर्मेंद्र को एक लव स्टोरी का हिस्सा बनाया.

16 साल बाद करण जौहर ने 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' में वेटरन धर्मेंद्र की रोमांटिक साइड को जिस तरह स्क्रीन पर पेश किया है, उसकी तारीफ़ तो बनती है. आखिर 'कुत्ते तेरा खून पी जाऊंगा' को बारंबार दोहराती मिमिक्री से धर्मेंद्र को पहचानने वालों को भी तो पता लगे कि उनका हीरो सिर्फ 'ही-मैन' ही नहीं, 'चॉकलेटी बॉय' भी रह चुका है. 

 

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