लाफ्टर शो से वापसी करने जा रहे शेखर सुमन अपने प्रोजेक्ट को लेकर खासे उत्साहित हैं. शेखर अपनी जज करने की स्ट्रैटेजी पर बात करते हुए कहते हैं कि वे सीरियस व सख्त जज बनने वाले हैं. वहीं एंटरटेमेंट वर्ल्ड में कॉमिडी और कॉमिडियन पर भी अपनी राय देते हुए कहा कि किस कदर उन्हें कमेडियन शब्द सुनकर कोफ्त होती है.
एक लंबे समय के बाद आपने वापसी कर रहे हैं. इस पर क्या कहना चाहेंगे?
मुझे लगता है, जब हम किसी डेस्टिनेशन के लिए निकलते हैं, तो ऐसा नहीं है कि आप फिर कुछ वक्त के लिए ब्रेक लेते हैं. लाइफ में सिचुएशन कभी एक समान नहीं होते हैं, कई पर्सनल उलझने होती हैं. मेरी मां पिछले कुछ समय से बीमार थीं, उनको पटना से मैं यहां लेकर आया था. उस वक्त मेरे लिए मुमकिन नहीं था कि बाहर जाकर काम कर सकूं. पिछले सात साल से मैं मां की सेवा में लगा रहा, बहुत खूबसूरत पल रहा. मैं काम में व्यस्त होता, तो शायद ये नहीं हो पाता था. मां के जाने के बाद अहसास हुआ कि अब काम में बिजी होना जरूरी है क्योंकि आप किसी त्रासदी को ज्यादा देर तक अपने अंदर नहीं रख सकते हैं, वर्ना नासूर बन जाता है. मैं एक पॉजिटिव नोट पर करियर को शुरू कर रहा हूं. मैंने लाफ्टर शो को चुना है.
खुद को कैसा जज मानते हैं आप ?
- शो कॉमिडी है, लेकिन जजेस तो सीरियस हैं. मैं अपने बारे में यह कह सकता हूं कि मैंने सीरियसनेस के साथ अपने जज होने की भूमिका निभाई है. किसी ने मुझसे कहा कि रिएलिटी शोज में जजेस का काम तो केवल हंसना ही है. मैंने उनसे यही कहा कि देखिए मैं यहां जज हूं और मेरा काम परफॉर्मर के काम को बारीकी से परखना है. मैं बिना वजह तो नहीं हंस सकता हूं. मुझ पर तो सीरियस जज होने का आरोप तक लगा है.
किस तरह के टैलेंट की तलाश है?
-अब वक्त है कि नए व फ्रेश कमेडियन आएं. अब एक ढर्रे पर तो नहीं चल सकता है न. थोड़े वक्त के बाद आपको शो ऊबाऊ हो जाता है. मुझे लगता है कि दर्शकों को अब थोड़ा बदलाव चाहिए. इस देश में इतने सारे टैलेंट हैं, तो हम उन्हें इस शो के जरिए मौका दे रहे हैं कि वो आएं और छा जाएं.
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इसके अलावा कोई और प्रोजेक्ट्स की प्लानिंग कर रहे हैं ?
- कॉमिडी शो के अलावा मैं एके 47 शो में निगेटिव शो कर रहा हूं. इसके साथ ही कुछ मेरे आइकॉनिक शोज हैं, जिनकी वापसी के साथ तैयार हूं. निर्माण के फील्ड में भी उतरा हूं. इसके साथ ही पॉलिटिक्स भी एक विकल्प है. कह लें कि पूरी तरह से काम को लेकर एक्साइटेड हूं.
पिछले कुछ समय में कमेडियन ने सत्ता की जिम्मेदारी संभाली है. पॉलिटिक्स में उनके इंट्रेस्ट की कोई खास वजह?
- पॉलिटिक्स में तो कितने सारे कॉमिडियंस हैं... (हंस देते हैं). आप देखें न, यूक्रेन का जो प्रेसिडेंट है, वो भी तो स्टैंडअप कमेडियन थे. मैं चाहता हूं कि कॉमिडियन को अब डिक्शनरी से निकाल दिया जाए. ये शब्द ही मुझे बहुत जिल्लत भरा लगता है. इसमें कोई गरिमा नहीं हैं. ये लोग तो समाज को जगाने का काम कर रहे हैं. मैं तो उन्हें फनकार कहता हूं. मैं कोशिश करूंगा कि आने वाले शो में ये कमेडियन शब्द को ही निकाल कर बाहर कर दूं. आप बाल काटने वाले को हेयरस्टाइलिश कहते हैं, कपड़े काटने वाले को दर्जी नहीं डिजाइनर कहते हैं तो फिर इन्हें कमेडियन क्यों कहते हैं, ऐसा लगता है कि एक दर्जा गिरा दिया है. इन्हें एंटरटेनर कहें, तो बेहतर हैं. ये लोग ऐसे हैं, जो सोच सकते हैं, जानकार हैं, बेखौफ होकर बोलते हैं, इसलिए ये पॉलिटिशियन या समाज पर कटाक्ष करते हैं. इनके हाथों में माइक नहीं बल्कि हथियार है.
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कमेडियन टर्न पॉलिटिशियन की बातों को जनता सीरियसली क्यों नहीं लेती है ?
लोग उन्हें सीरियस नहीं लेते हैं, क्योंकि हमने उन्हें कमेडियन का टैग दे दिया है. कई शब्दों को हटाया गया है, वैसे ही इसे भी हटाया जाए. अब कोई अंधा है, तो उसे लोग अंधा नहीं बल्कि नेत्रहीन कहते हैं. देखें, बिल्लू बारबर को लेकर कितना हंगामा होता है. आप उन्हें कमेडियन कहकर उनकी गंभीरता खत्म कर रहे हैं. ये लोग हंसाने का काम नहीं कर रहे हैं बल्कि जगाने का काम कर रहे हैं. ये झकझोर रहे हैं. लोगों ने उन्हें बदनाम कर रखा है. अगर भगवंत मान कमेडियन होते, तो शायद वे अपने काम को सीरियसली नहीं लेते और सीएम नहीं बनते. शायद यूक्रेन का प्रेसिडेंट नहीं आता. गांधी जी, बाजपेयी या मोदी जी भी तो लोगों को हंसाते हैं, तो क्या वे कमेडियन हो गए. आप लोग कमेडियन कहते रहेंगे, तो लोग संजीदगी से उन्हें लेंगे नहीं.