कश्मीरी पंडितों की पीड़ा और उनके दर्द पर बनी फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' (The Kashmir Files) दर्शकों को दिलों को छू रही है. फिल्म की हर जगह जबरदस्त चर्चा है. कम बजट में बनी ये फिल्म अपनी शानदार कहानी से बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई कर रही है. फिल्म की कहानी इतनी इमोशनल है कि देखने वाले के रोंगटे खड़े हो जाएं. 'द कश्मीर फाइल्स' के एक्टर अनुपम खेर ने अब फिल्म की दमदार कहानी और उसे पर्दे पर उतारने तक के अपने एक्सपीरियंस को बयां किया है.
द कश्मीर फाइल्स की कहानी सुनकर ऐसा था अनुपम खेर का रिएक्शन
अनुपम खेर (Anupam Kher) से एक लेटेस्ट इंटरव्यू में द कश्मीर फाइल्स में काम करने के एक्सपीरियंस और उनके किरदार के बारे में पूछा गया. इंटरव्यू में अनुपम खेर से पूछा गया- जब आप इस फिल्म से जुड़े तो आपके मन में क्या ख्याल आया? इस सवाल पर अनुपम खेर ने कहा- जब मैंने ये फिल्म की थी तो ये मेरे करियर की 519वीं या 520वीं फिल्म थी. मैं एक्टिंग स्कूल भी चलाता हूं. पढ़ाता भी हूं, थिएटर भी कर चुका हूं, तो मुझे लगता है कि मैं काफी मैच्योर एक्टर हूं. लेकिन जब मुझे ये फिल्म विवेक ने सुनाई तो मुझे लगा कि ये कहानी बहुत जरूरी है लोगों तक पहुंचना. मगर जिस तरह इसको लिखा है उसकी रियलिटी कैसे नजर आएगी, जब तक एक्टर्स इसको महसूस नहीं करेंगे खासकर पुष्कर नाथ के किरदार को.
अनुपम खेर ने फिल्म में पुष्कर नाथ पंडित (रिटायर टीचर) का रोल निभाया है, जो श्रीनगर में अपने बेटे-बहू और दो पोतों के साथ रहते हैं. अपने कैरेक्ट के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा- ये (विवेक अग्निहोत्री) मेरे पिता को जानते थे. उनका नाम पुष्कर नाथ था, तो ये मेरे पिता को मेरा ट्रिब्यूट था.
अनुपम खेर ने आगे कहा- जब हम सेट पर गए तो देहरादून में मेरे पहले दिन की शूटिंग थी, तब मेरे अंदर के एक्टर ने बैकसीट लेली और एक इंसान ने फ्रंट सीट ली, क्योंकि दर्द को बयां करने के 50 हजार तरीके होते हैं और जब आप इतना काम करते हैं तो आपको क्राफ्ट पता चल जाता है कि आप इतना महसूस करेंगे तो इतने आंसू आ जाएंगे. लेकिन क्राफ्ट इस फिल्म को झूठा बना देती और मैं झूठ का बिल्कुल सहारा नहीं लेना चाहता था, ये रोल करते हुए.
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फिल्म की शूटिंग के दौरान खूब रोए थे अनुपम खेर
अनुपम खेर ने आगे कहा- मैं चाहता था कि मैं इसे अपनी आत्मा से महसूस करूं और मेरी आत्मा दुनिया तक पहुंचें, क्योंकि मेरे सिर पर उन 5 लाख कश्मीरी पंडितों कि जिम्मेदारी थी, जो 19 जनवरी 1990 को अपने ही घरों से बर्बरता से निकाले गए थे. उनका दर्द दुनिया तक पहुंचाना बहुत जरूरी था. मैं बहुत रोया इस फिल्म के दौरान, पर्दे पर भी और शॉट खत्म होने के बाद भी. मैं बहुत बार विवेक के गले लगकर रोता था. ऐसा लगता था कि ये फिल्म जो है, ऐसा संतुलन बनाएगी उन लोगों के लिए, जिनकी ट्रेजेडी को लोगों ने नकार ही दिया था कि ऐसा हुआ ही नहीं.
उन्होंने ये भी कहा- मैं यह कहूंगा कि ये मेरे करियर का सबसे मुश्किल रोल रहा है, क्योंकि मुझे ऐसे इंसान का रोल प्ले करना था, जिसे कई लोगों को दर्शाना था. अभी भी मैं बात करता हूं तो मुझे घबराहट होती है. मैं कोशिश करता हूं कि टेलीविजन चैनल पर आंखों पर आंसू ना आएं. रोना सिर्फ ट्रेजेडी के लिए नहीं है, बल्कि उन कश्मीरी लोगों के बारे में सोचकर आता है कि अब उन लोगों को लगेगा कि हां अब हमें लोग गले लगाएंगे.