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'जो लोग गाली दे रहे थे, फिल्म देखने के बाद माफी मांग रहे हैं', बोले द केरल स्टोरी के निर्देशक

The Kerala Story फिल्म रिलीज के बाद से ही लगातार विवादों में हैं. फिल्म के डायरेक्टर सुदिप्तो सेन ने हमसे फिल्म और उससे जुड़े कई फैक्ट्स व रिएक्शन पर बातचीत की.

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सुदिप्तो सेन- द केरल स्टोरी पोस्टर
सुदिप्तो सेन- द केरल स्टोरी पोस्टर

द केरल स्टोरी के डायरेक्टर सुदिप्तो सेन लगातार फिल्म से जुड़ रहे विवादों से परेशान हैं. दरअसल निर्देशक का यह मानना है कि फिल्म के अहम मुद्दे से भटक कर उसे पॉलिटिकल रंग में रंगा जा रहा है. कहीं फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया गया है, तो वहीं कहीं फिल्म अपने रिलीज के लिए जद्दोजहद कर रही है. सुदिप्तो से खास बातचीत.. 

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फिल्म ने 50 करोड़ का बिजनेस कर लिया है. इस तरह के रिस्पॉन्स की उम्मीद थी?
-हां, बिलकुल उम्मीद था. लेकिन जिस तरह का पागलपन दिखा है, जो अब नेशनल मूवमेंट बन गया है. यह नहीं सोचा था. खुशी इस बात की है कि केरल में महिलाओं के संग जो मुद्दे रहे हैं, उन्हें अब नेशनल लेवल पर अड्रेस किया जा रहा है. जो महिलाओं की आवाजें रही हैं, जो कहीं दब चुकी थी, उन्हें फिल्म के रूप में आवाज मिली है. टेररिज्म, मैनुपुलेटिव कन्वर्जन जैसे जो इश्यूज फिर से हाइलाइट हो रहे हैं. लोग कन्वर्जन को बैन करने की बात कह रहे हैं. एक फिल्ममेकर के नाते मेरी यह संतुष्टि है कि जो हम करना चाहते थे, वो असल में कर पा रहे हैं. 

सोशल मीडिया पर फिल्म को लेकर आम लोगों के रिस्पॉन्स पर क्या कहना चाहेंगे. जरूर आपको पर्सनल मैसेज भी मिले होंगे?
-आप अंदाजा नहीं लगा सकती हैं, कि रोजाना मुझे कितने मेसेज आते रहते हैं. एक तरफ बोला जा रहा था कि मुस्लिम कम्यूनिटी हमारी और फिल्म के अगेंस्ट है. एक मुस्लिम लड़की जो केरल से थी, वो लगातार दस दिनों से हमें अब्यूज कर रही थी. दो दिन पहले ही उसी लड़की ने मुझे इंस्टाग्राम पर मेसेज करते हुए लिखा है कि मैंने फिल्म देख ली है, मुझे माफ कर दें. आपने बहुत अच्छा काम किया है. आपने नेशन और यहां की महिलाओं के हित में काम किया है. मैं मिसलीड हो गई थी, कृप्या मेरी माफी स्वीकार करें. कहने का अर्थ है कि जो लोग हमें गाली दे रहे थे, हमें बीजेपी का चमचा बता रहे थे, फिल्म को एजेंडा बता रहे थे, उन लोगों ने फिल्म देखने के बाद मुझसे आकर बात की है और उनका नजरिया बदला है. 

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फिल्म की बात करूं, तो कुछ चीजें इंस्टीगेटिंग लगी. मसलन आप एक कम्यूनिटी से दूसरी कम्यूनिटी के देवी देवताओं के बारे में कहलवा रहे हैं. मुझे ये जानना है कि सेंसर बोर्ड का इन डायलॉग्स में क्या अप्रोच था ?
- आप जिस सीन की बात कर रही हैं, जहां एक मुस्लिम लड़की सामने वाले कम्यूनिटी की देवी देवताओं और गॉड को नीचा दिखा रही है. वैसी सारी वीडियोज इंटरनेट पर आम हैं. ये इनटॉक्सिकेशन प्रॉसेस वाले वीडियोज तो आपको आम मिल जाएंगे. ये यूनिवर्सल ट्रेंड सा है, ये जो इनटॉक्सिकेशन का प्रॉसेस है, वो पहले आपको डराते हैं, फिर वो आपके अंदर डर व दशहत पैदा करते हैं, उसके बाद आपकी आस्था पर अविश्वास पैदा करवाते हैं, जिससे आप आघाती बन जाते हैं. जैसे उन्हें आपके आघाती होने का अहसास होता है, तो अपने विश्वास व तरीकों को आपके अंदर फीड करते हैं. जैसा कि उस सीन में उन्हें हिजाब का सॉल्यूशन देती है, कि हिजाब पहनने से रेप नहीं होता है. यह बहुत ही सिंपल सा प्रॉसेस है. 

सेंसर बोर्ड पर जब फिल्म गई, तो उसे कितने कट्स और इस तरह के डायलॉग्स पर आपत्ति‍ रही थी?
-सेंसर बोर्ड में दो महीने से फिल्म थी. उन्होंने उन दो महीने में फिल्म की स्क्रूटनी की थी. क्योंकि बहुत ही सेंसेटिव मुद्दा था. वो बहुत ही सजग थे. मैंने क्लेम भी किया था, जो भी फिल्मों में सीन या डायलॉग्स हैं, वो असल जिंदगी के ही प्रभावित हैं. मेरे पास प्रमाण हैं. मैंने जो डॉक्यूमेंट्री फिल्म और रिसर्च कर रहा था, उनका सारा वीडियो क्लीप उन्होंने देखा. देखने के बाद कोई कट्स नहीं मिला. हां कुछ शब्दों को बदलने की नसीहत दी गई थी. जैसे कि हमें शिव का नाम इस्तेमाल न कर उसे एक भगवान कहा गया. इंडियन कम्यूनिस्ट शब्द से इंडियन हटा दिया गया. कुछ गालियां थी, उसे हटा दिया गया. 

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एक आर्ट को जब पॉलिटिकल रंग देने की होड़ लग जाती है. उससे कैसा महसूस होता है?
-इससे न दो तरह की फीलिंग आती है. पहला तो ये कि लोगों की नजर में हमारा काम दिखा है. जिससे हम ऐसी जगह को हिट कर पाए, जिनके लिए यह धंधा चलाने का जरिया है. दूसरा क्या होता है कि पॉलिटिकल लड़ाई में फिल्म और आर्ट को साइडलाइन कर दिया जाता है. जैसा अभी टेलिविजन चैनल्स में देखें, तो लोग पागलों की तरह डिबेट किए जा रहे हैं. इस डिबेट के शोर से जो असल में विक्टिम रही महिलाओं की चीख है, वो कहीं साइडलाइन हो जाते हैं. पॉलिटिकल लोग ज्यादा डॉमिनेंस में आ जाते हैं. बहुत बार ये नीचता की हद पार कर जाते हैं. देखो, हमारा जो मकसद था, उन लड़कियों का दर्द पहुंचाना वो कहीं खो सा गया है. अभी केरल की महिलाएं आगे आकर कह रही हैं, कि हम एक-एक शॉट को रिलेट कर पा रहे हैं. उन्होंने पिछले दिनों प्रॉटेस्ट भी किया है. एक लड़की ने लिखा है, जब शालिनी गाड़ी से जा रही थी, वहां मैं खुद को महसूस कर रही थी. अब देखो, कल किसी पॉलिटिकल लीडर ने कहा कि मुझे फांसी पर चढ़ा देना चाहिए. अब ऐसे मौके पर सब्जेक्ट से हम डायवर्ट होकर एक पॉलिटिकल लड़ाई में फंस गए हैं. लोग यह नहीं कह पाएंगे कि हमारी फिल्म पॉलिटिकल बायस्ड है. बिहार, झारखंड और कॉन्ग्रेस के स्टेट में फिल्म हाउसफुल जा रही हैं. कई लोग इस मुद्दे को समझ पा रहे हैं. 

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हैरानी इस बात की है कि फिल्म को एक्स्ट्रीम रिएक्शन मिल रहा है. मतलब एक तरफ बैन की बात कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ टैक्स फ्री. क्या कहना चाहेंगे?
-यही बात है कि कन्वर्जन, इनटॉक्सिफिकेशन, विमन ट्रैफिकिंग केवल इंडिया का इश्यू नहीं है.ये पूरे विश्व का मुद्दा है. कई देशों में लड़कियों को टेरर नेटवर्क के तहत बरगलाया गया है. वहां के पॉलिटिकल पार्टी इस नोशन को लेकर बहुत ही क्लीयर हैं. वो आपस में नहीं लड़ते हैं. टेरर नेटवर्क आइसोलेटेड हैं. वहां टेररिज्म का कोई जात नहीं है. लेकिन हमारे देश में अगर आप केरल के आईएसआईएस बारे में बात करें, तो लोगों को लगने लगता है कि हम स्पेसिफिक धर्म को टारगेट कर रहे हैं. जो लोग टेररिज्म की कोई जात नहीं जैसी बातों की वकालत करते हैं, वही लोग आकर कह रहे हैं कि हम इस्लाम को डिफेम कर रहे हैं. मैंने अपनी फिल्म में 11वें बार इस तरह की चीजों को हाइलाइट किया है लेकिन कहीं भी इस्माल की बात नहीं हुई है. यह समझने की बात है कि सब्जेक्ट हिंदू और मुस्लिम धर्म का है ही नहीं, यह सब पॉलिटिकल मोटिवेटेड हो गया है.

फिल्म से बैन हटाने की अपील पर लीगल एक्शन लिया है आपने 
-हां, हम उसके लिए लड़ चुके हैं. कोर्ट ने हमारी फिल्म को क्लीयर कर दिया है. हमने सुप्रीम कोर्ट, तमिलनाडु हाईकोर्ट आदि जगहों में पेटिशन डाला है, जहां से फ्री हो चुके हैं. उन्होंने हमें फिल्म को रिलीज करने की अनुमति दे दी है. रही बात वेस्ट बंगाल की, जहां उन्होंने एक्स्ट्रा कॉन्स्टीट्यूशनल पावर दिखाकर हमारे आर्ट को रोकने की कोशिश है, उसके लिए भी हमने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. फ्राइडे को सुनवाई होनी है, देखते हैं कि हमें वहां क्या रिजल्ट मिलता है. उम्मीद है फैसला हमारे फेवर पर हो. 

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जब आर्ट और फिल्म में इस तरह की आंधी आती है, तो बॉलीवुड की ओर से किस तरह का सपोर्ट मिलता है. उन्होंने स्टैंड लिया है?
-सबने हमें फोन कर बधाई दिया है. कईयों ने कहा कि बहुत अच्छी फिल्म बनाई है. सबको हमारी फिल्म अच्छी लगी है. हमने ही उनसे कहा है कि आप पब्लिक में न आएं, देखो सब अपने बिजनेस में लगे हुए हैं. बॉलीवुड इंडस्ट्री खुद एक कठिन दौर से गुजर रहा है. हम नहीं चाहते हैं कि हमारी फिल्म की वजह से उन लोगों को कोई दिक्कत आए. हमने खुद उन्हें रिक्वेस्ट किया है कि आप पब्लिक न आएं, हम खुद इस सिचुएशन को हैंडल कर सकते हैं. पूरी इंडस्ट्री हमारे साथ है, उनका साइलेंट सपोर्ट है. 

डेथ थ्रेड जो आए हैं, उससे कितना परेशान हैं. खासकर परिवार वाले डरे हैं?
-अरे उसकी कोई चिंता नहीं है. वो सब पॉलिटिकल है. उसका रिएलिटी से कोई कनेक्शन नहीं है. जिन पॉलिटिकल लीडर्स ने फिल्म नहीं देखी है, वो ही ये सब बातें कर रहे हैं. जिन्होंने देख ली है, वो खुद सपोर्ट के लिए आगे हो रहे हैं. मैं तो आपके जरिए उन सभी पॉलिटिकल लीडर से गुहार करता हूं, जिन्होंने फिल्म नहीं देखी है, वो आकर पहले फिल्म देखे फिर बात करें. दावा है उनका ओपिनियन बदलेगा. 

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