
'एनिमल' में डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा ने क्या परोसा, क्या नहीं, इसपर बहुत बहस हो चुकी है. मगर उनके इस एक्शन-ड्रामा-एंटरटेनर बुफे में एक ऐसी डिश थी जिसे सिर्फ चम्मच भर चखकर ही ऑडियंस की स्वाद कलिकाएं उर्फ टेस्ट बड्स खिलखिला उठे. इसका अद्भुत डिश का नाम था- फ्रेडी.
फिल्म में फ्रेडी दो जबरदस्त चीजें लेकर आया था- एक महाविनाशकारी मशीन गन और रणबीर के एक्शन के पीछे चलने वाला मराठी गाना 'डॉल्बी वाल्या'. इंटरवल से पहले रणबीर कपूर का 'एनिमल' मोमेंट बनाने में फ्रेडी का ये रोल भला कौन भूल सकता है. इस किरदार और फिल्म ने ये तय कर दिया कि एक्टर उपेंद्र लिमये हमेशा के लिए हिंदी फिल्म दर्शकों की याद्दाश्त पर छपे रहेंगे. 'एनिमल' के बाद उपेंद्र, शाहिद कपूर की 'देवा' में भी एक मजेदार रोल में नजर आए. अब वो सनी देओल की 'जाट' में नजर आने वाले हैं.
'जाट' के ट्रेलर में सिर्फ एक सीन में नजर आ रहे उपेंद्र, इतने भर में ही जनता का ध्यान खींच रहे हैं. लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि अपने एक-एक सीन से मास फिल्मों में माहौल बना देने वाले उपेंद्र लिमये किस लेवल के एक्टर हैं?
जमकर किया एक्स्परिमेंटल थिएटर
8 नवंबर 1969 को पुणे, महाराष्ट्र के सदाशिव पेठ में जन्मे उपेंद्र लिमये बचपन से ही एक्टिंग को लेकर पैशनेट थे. स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उन्होंने एक्टिंग में हाथ आजमाना शुरू कर दिया. पुणे की ललित कला अकादमी से उन्होंने एक्टिंग की ट्रेनिंग ली और 1988 में अपने दोस्तों के साथ एक थिएटर ग्रुप 'परिचय' की शुरुआत की. एक पुराने इंटरव्यू में उपेंद्र ने बताया था कि 1990 के बाद उन्होंने ग्रिप्स थिएटर के कई नाटक किए.
ग्रिप्स थिएटर, बच्चों और यूथ का एक थिएटर मूवमेंट है जिसकी शुरुआत जर्मनी में हुई थी. इस थिएटर स्टाइल में दर्शकों के सामने संसार को बच्चों की नजर से पेश किया जाता है और ह्यूमर के साथ समाज से जुड़े मुद्दों पर बात करती कहानी कही जाती है. इसका सीधा मतलब है कि मिडल एज कलाकार अपने आप को 8-9 साल के बच्चों में ट्रांसफॉर्म करते हैं और स्टेज पर परफॉर्म करते हैं. इंटरव्यू में उपेंद्र ने बताया था कि ग्रिप्स थिएटर करने से बतौर एक्टर उन्हें बहुत मदद मिली और उन्होंने 'दिमाग और शरीर की फ्लेक्सिबिलिटी' सीखी.
थिएटर के मंच से पर्दे पर ऐसे पहुंचे उपेंद्र
उपेंद्र ने थिएटर के दिनों से ही मराठी सिनेमा में छोटे-छोटे किरदार निभाने शुरू कर दिए थे और जब उनकी एक्टिंग से फिल्ममेकर्स इम्प्रेस होने शुरू हुए तो उनके रोल भी लंबे होते चले गए. उपेंद्र ने अपनी पहली मराठी फिल्म 'मुक्ता' 1994 में की थी. थिएटर करते हुए ही उन्होंने 'बंगारवाड़ी' और कुछ दूसरी मराठी फिल्मों में भी काम किया. मगर उनके करियर में एक बड़ा मोड़ आया 1999 में.
एक दशक तक 'परिचय' के साथ काम करने के बाद उपेंद्र एक कमर्शियल नाटक 'डॉक्टर आप भी' करने मुंबई आए. यहां उनकी मुलाकात सचिन खेड़ेकर से हुई जो मराठी सिनेमा और हिंदी इंडस्ट्री, दोनों जगह खूब काम कर रहे थे. अपने इंटरव्यू में उपेंद्र ने बताया कि इस मुलाकात ने एक्टिंग में करियर बनाने को लेकर उनकी सोच बदल दी. हिंदी फिल्ममेकर मधुर भंडारकर अपनी फिल्म 'चांदनी बार' (2001) के लिए कास्टिंग कर रहे थे, जिसमें मराठी एक्टर विनय आप्टे को काम मिल गया था. विनय के साथ उपेंद्र पहले भी काम कर चुके थे और इस तरह उन्हें अपनी पहली हिंदी फिल्म 'चांदनी बार' मिली.
उपेंद्र अभी भी स्ट्रगल के दौर में थे लेकिन उन्होंने कभी भी सिर्फ काम करने के लिए कोई किरदार नहीं चुना. हिंदी के साथ-साथ मराठी सिनेमा में भी वो सपोर्टिंग रोल्स में नजर आ रहे थे. दूसरी तरफ 'चांदनी बार' में उनके काम ने ऐसा असर छोड़ा कि
इसके बाद मधुर भंडारकर ने उन्हें अपनी अगली फिल्मों 'ट्रैफिक सिग्नल' और 'पेज 3' में भी कास्ट किया.
दमदार कलाकारों को पहचानने में उस्ताद माने जाने वाले डायरेक्टर राम गोपाल वर्मा की नजर उपेंद्र के काम पर पड़ी तो उन्होंने भी उन्हें अपनी फिल्मों में लेना शुरू कर दिया. वर्मा के साथ उपेंद्र ने 'शिवा', 'डार्लिंग', 'सरकार राज' और 'कॉन्ट्रैक्ट' जैसी फिल्मों में काम किया. लेकिन 2010s वो दौर रहा जब भंडारकर और वर्मा जैसे कई नामी फिल्ममेकर बॉलीवुड में थोड़े साइडलाइन होते चले गए. और इसके साथ ही उपेंद्र का बॉलीवुड फिल्मों में नजर आना भी कम होता चला गया. हालांकि, दूसरी तरफ मराठी सिनेमा में वो कमाल कर रहे थे.
जब उपेंद्र को मिला नेशनल अवॉर्ड
2009 में मराठी फिल्म 'जोगवा' में उपेंद्र ने लीड रोल किया. फिल्म की कहानी महाराष्ट्र की एक ऐसी कम्युनिटी पर थी जिन्हें सारी सांसारिक, भावनात्मक और शारीरिक जरूरतों को त्याग कर खुद को ईश्वर की भक्ति में समर्पित कर देना होता है. हर परंपरा की तरह, शक्तिशाली लोग इस परंपरा को भी अपनी जरूरत के लिए इस्तेमाल करने से नहीं चूकते. डायरेक्टर राजीव पाटिल की फिल्म ने उपेंद्र के किरदार की नजर से इस परंपरा की कमियों और लोगों के व्यवहार को पर्दे पर उतारा.
उपेंद्र की एक्टिंग ने 'जोगवा' को उस स्तर पर पहुंचा दिया कि उनके किरदार की जर्नी लोगों को भावुक कर देती थी. क्रिटिक्स से लेकर आम दर्शक तक 'जोगवा' में उपेंद्र के काम से बहुत इम्प्रेस थे और तारीफों का ये सिलसिला सीधा नेशनल अवॉर्ड तक पहुंचा. 2010 में 'जोगवा' के लिए उपेंद्र को बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड मिला और फिल्म ने कुल 6 अवॉर्ड अपने नाम किए. इसे मराठी सिनेमा का लैंडमार्क मोमेंट माना जाता है.
एक्टर्स किसी एक नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली फिल्म का हिस्सा बनने को भी अपने करियर की हाईलाइट मानते हैं. वहीं उपेंद्र कई नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली फिल्मों का हिस्सा रह चुके हैं जिसमें 'मुक्ता', 'बंगारवाड़ी', 'सरकारनामा', 'ध्यासपर्व', 'चांदनी बार', 'पेज 3' और 'ट्रैफिक सिग्नल' जैसी फिल्में शामिल हैं.
हिंदी फिल्मों में लौटी उपेंद्र की चमक
आइकॉनिक एक्टर-फिल्ममेकर अमोल पालेकर ने अपनी हिंदी फिल्म '200- हल्ला बोल' (2021) में उपेंद्र को एक दमदार किरदार दिया था जिसमें लोगों ने फिर से उन्हें नोटिस किया. सलमान खान के प्रोडक्शन हाउस ने जब मराठी फिल्म 'मुलशी पैटर्न' (2018) को हिंदी में रीमेक करके 'अंतिम' (2021) बनाई, तो ऑरिजिनल फिल्म में काम कर चुके उपेंद्र को भी लिया गया. मगर 'एनिमल' ने उपेंद्र को सिर्फ एक ही सीन से ऐसी लाइमलाइट दी कि उन्हें पहली बार देख रहे लोग उनके फैन हो गए.
इसके बाद वो 'मडगांव एक्सप्रेस' में विलेन का मजेदार किरदार निभाते दिखे और 'देवा' में भी उनके कैरेक्टर ने फिल्म में माहौल बना दिया. इसी साल उपेंद्र तेलुगू ब्लॉकबस्टर 'संक्रांतिकी वस्तुनम' में भी नजर आ चुके हैं और अब वो सनी देओल की 'जाट' में मजेदार किरदार में नजर आने वाले हैं. 'जाट' के टीजर और ट्रेलर में उपेंद्र की मौजूदगी भी एक मजेदार फैक्टर है और लोग उन्हें फिल्म में देखने का इंतजार कर रहे हैं.