फिल्म व टेलीविजन इंडस्ट्री में भले ही लिलिपुट की इमेज मजाकिया, सबको गुदगुदाने वाली रही हो, लेकिन क्या आप जानते हैं, असल जिंदगी में वे बेहद ही गंभीर और संजीदा किस्म की शख्सियत हैं. लिलिपुट हमसे अपने करियर के उतार-चढ़ाव, अपनी इनसिक्यॉरिटी, कॉम्पलेक्स के बारे में बातचीत करते हैं.
मुझे मेरी इनसिक्योरिटी ले डूबी, कई बड़ी फिल्में हाथ से छूट गई
आज जब भी मैं पीछे मुड़कर देखता हूं, तो एहसास होता है कि इंडस्ट्री ने तो बहुत कुछ देने की कोशिश की थी लेकिन मैंने ही अपनी वजहों से बहुत कुछ खो दिया. मेरे अपने ही कॉम्प्लेक्स और अंदर हीनभावना थी, जिससे मैं कभी निकल ही नहीं पाया. मुझे जो मौके मिले थे, मैं उन सभी को मिस करता गया. लेकिन एक चीज देखी है कि बहुत ज्यादा पार्टी मेें नहीं जाता हूं इसलिए वजह यह भी है कि लोग मेरी इज्जत करते हैं. भले पैसा उतना नहीं कमाया हो लेकिन इज्जत कमाई है. हां, जो सक्सेस मुझे मिलनी चाहिए, वो फिल्मों में तो नहीं पा सका. मैंने बहुत सी फिल्में नकारी भी क्योंकि जो ऑफर्स होते थे, मेरी कद को लेकर ही होते थे. मैं ऐसी फिल्में करना नहीं चाहता था.जो एकाध किए वो हिट भी नहीं हुई और कई फिल्मों में मेरे रोल्स काट दिए गए. मैं फिल्मी सफर से बहुत ज्यादा संतुष्ट नहीं हूं.
टीवी सीरियल्स ने मुझे बहुत शोहरत दी है. इस माध्यम में मैं खुद को सक्सेसफुल मानता हूं. आज भी पुराने लोग मुझे मिलते हैं, तो जिद्द करते हैं कि आप टीवी व फिल्मों में आते क्यों नहीं. अरे मैं कैसे आ जाऊं यह बात को प्रोड्यूसर व चैनल्स वालों को कहनी चाहिए न. हम एक्टर्स के हाथ में वाकई कुछ नहीं होता है.
अमिताभ, ऋषि, कमल हासन जैसे लोगों ने प्रोत्साहित किया, लेकिन मुझसे हो नहीं पाया
जब मैं लिख रहा था, तो उस वक्त जावेद अख्तर साहब ने बुलाकर मेरी तारीफ की. मैं ही शरमाकर, लिहाज में रिस्पॉन्ड नहीं कर पाया. अमिताभ बच्चन ने भी मुझे कई मौके दिये. एक बार एक फिल्म ऑफर हुई आलीशान, जिसमें मैं और बच्चन जी समानांतर किरदार में थे. पहली दिन जब सेट पर मुलाकात हुई, तो मैं ठहरा कॉम्प्लेक्स इंसान, वहां नर्वस हो गया. हमने दस बारह दिन शूटिंग हुई लेकिन बनी ही नहीं. यहां भी मैंने ही गड़बड़ कर दी थी. वहीं एक बार देव आनंद साहब के चौथे के दौरान मेरी मुलाकात ऋषि कपूर जी से हुई, देखते ही वे मुझे डांटने लगे. अरे लिली, तू काम" वाम नहीं करता है... दिखता नहीं है तू..उन्होंने गालियां भी दी.. ऋषि जी के साथ यह खासियत थी कि वे जिससे प्यार करते थे. उससे गालियों से ही बात किया करते थे. कमल हासन साहब ने ही काफी प्रोत्साहित किया था कि मैं काम करूं. नहीं हो पाया मुझसे.. मेरी इनसिक्योरिटी ही मेरा करियर ले डूबी...
मेरी किस्मत राजपाल यादव जैसी नहीं
देखिये यह इंडस्ट्री पूरी तरह बिजनेस पर ही टिकी है. हम सभी एक्टर्स अपनी-अपनी दुकान चलाते हैं. यह तो एक्टर पर निर्भर करता है कि वो किस तरह कस्टमर को लुभाते हैं, या दुनियादारी कैसे करनी है. इन सबमें आपको पारंगत होना पड़ेगा. यही काम मुझसे हो नहीं पाया. इंडस्ट्री में जब मैं नया-नया आया था, तो मेरे लिए बहुत लोग उत्साहित थे. क्योंकि पहली बार मेरी हाइट के आदमी में उन्हें एक एक्टर दिखा. मेरी कई फिल्में शुरू होने को थी, लेकिन कुछ शुरू ही नहीं हुई और कुछ आधे पर ही आकर रुक गई. यह तो किस्मत वाली बात हो गई थी. वहीं राजपाल यादव आया, उसकी किस्मत ने साथ दिया और उसकी फिल्में बनती गईं और मेरी कभी बनी ही नहीं. यही एक एकमात्र ऐसा फील्ड है, जहां सब ऊपर वाले के हाथ पर होता है. जिसकी किस्मत ने साथ दिया वो स्टार.. जिसे किस्मत का साथ नहीं मिला वो बेकार...