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एक के बाद एक फ्लॉप... जानिए बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम क्यों होता जा रहा है बॉलीवुड

पिछला कुछ समय बॉलीवुड या हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए बेहद बुरा गुजरा है. कोविड के दौरान लगे लॉकडाउन ने तमाम फिल्मों का पैकअप करवा दिया. थियेटर बंद होने से कमाई ठप हो गई. सुशांत सिंह राजपूत की मौत फिल्म जगत को हिला दिया. उसके बाद देश के दिग्गज सितारे ड्रग्स के केस में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के दफ्तर में हाजिरी लगाते देखे गए. आर्यन खान की गिरफ्तारी ने किंग खान को बड़ा झटका दिया तो बाकी सितारे भी सहम गए. 

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Aamir-anees-vivek-taran-deepak
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लॉकडाउन हटा, कोरोना का खौफ कम हुआ और चीजें सामान्य हुईं तो थियेटर खुले, फिल्मों की शूटिंग-रिलीज होने लगी लेकिन दर्शक सिनेमाघरों से गायब हो गए. साउथ के बॉलीवुड पर हावी होने की बहस भी शुरू हो गई है. पिछले छह महीने में बॉलीवुड के पास एक के बाद एक फ्लॉप हो रही फिल्मों की फेहरिस्त ही है. आखिर ऐसा क्यों है? बॉक्स ऑफिस पर बॉलीवुड का जादू क्यों नहीं चल पा रहा है? क्या स्टार पावर जो कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की जान हुआ करती थी अब खत्म हो रही है? aajtak.in ने इन सवालों पर बात की बॉलीवुड के ही दिग्गजों से.
 

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कोविड ने बदल दिया ऑडियंस का टेस्टः ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श

जब कोविड का फेज आया, तो इन दो सालों में कई बदलाव आए. खासकर ऑडियंस का टेस्ट जबर्दस्त शिफ्ट हुआ. वर्ल्ड सिनेमा का उनको एक्सपोजर मिला है. अब उसका तुलना करना लाजमी है. यहां जिस स्टैंडर्ड को परोसा जा रहा था, उसे स्वीकार करने से दर्शकों ने इनकार कर दिया है. लॉकडाउन के बाद कश्मीर फाइल्स, सूर्यवंशी, भूल-भूलैया-2, गंगूबाई काठियावाड़ी, आरआरआर, केजीएफ, पुष्पा जैसी फिल्मों ने उम्मीद से बेहतर बिजनेस किया है. साफ है कि ऑडियंस फिल्में देखना चाहती है लेकिन आप उनको फिल्म के नाम पर कुछ भी नहीं परोस सकते.

मैं तो कहूंगा, अब मसाला फिल्में बनाना ज्यादा मुश्किल हो गया है. आप साउथ की फिल्मों को देखें, वहां के डायरेक्टर ने जो मसाला पेश किया है, वो हमारी फिल्मों में मिसिंग है. जिस तरह से राजामौली ने एनटीआर के जानवर वाले सीन को प्रेजेंट किया है, उसकी तारीफ हॉलीवुड तक हुई है. आप बताएं, हमारे यहां कौन सा ऐसा प्रजेंटेशन रहा है, जो याद किया जाए. हम वही घिसी-पिटी कहानियों को लेकर नहीं बैठ सकते. हमें नए दायरे से आउट ऑफ बॉक्स जाकर सोचने की जरूरत है. 

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लाल सिंह चड्ढा

OTT पर जल्दी आने लगी हैं फिल्मेः आमिर खान

ऐसा नहीं है कि फिल्में चल नहीं रही हैं. ऑडियंस को फिल्म पसंद आएगी तो चलेगी ही. पुष्पा के बारे में सुना था कि एक करोड़ की ओपनिंग फिल्म रही थी लेकिन वर्ड ऑफ माउथ से फिल्म ने कमाल कर दिया. मुझे लगता है कि कोविड की वजह से फिल्में थोड़ी जल्दी आने लगी हैं ओटीटी पर. लोगों को लगता है कि अगर मैं थोड़ा और रुक जाऊंगा, तो घर में ही देख लूंगा. हालांकि मेरी फिल्मों के साथ ऐसा नहीं होता है, मेरी फिल्म छह-छह महीने तक ओटीटी पर नहीं आती हैं.

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कहानी को लेकर क्रिटिक होने की जरूरत: अनीस बज्मी

मुझे लगता है कि सारे बड़े लोगों को एक प्लेटफॉर्म पर आकर चर्चा करनी होगी कि आखिर फिल्में थिएटर पर क्यों नहीं चल पा रही हैं. आज के दौर में बजट भी काफी तेजी से भाग रहा है, जिसपर कंट्रोल की जरूरत है. इसके अलावा कहानी को लेकर क्रिटिक होने की जरूरत है. कहानी पसंद नहीं कर रही है पब्लिक. इसका कारण क्या हो सकता है, हमें उस  पर भी काम करने की जरूरत है. भूल भूलैया 2 के बाद उम्मीद जगी है. इसने मुझे हिम्मत दी है कि मैं आगे भी दर्शकों को बेहतरीन तरीके से एंटरटेन कर सकूं. 

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भूल भुलैया 2

ऑडियंस से कट गया है बॉलीवुडः विवेक अग्निहोत्री
लोग जिसे बॉलीवुड कहते हैं, उस सो कॉल्ड बॉलीवुड को आइडिया ही नहीं है कि ऑडियंस क्या चाहती है. वो ऑडियंस एकदम कटफट गई है. कई बार ये सोचने लगते हैं कि ऑडियंस को पेट्रियोटिज्म की फिल्म चाहिए, तो उस चक्कर में उट-पटांग फिल्म बनाते हैं. फैमिली के नाम पर ऐसी फैमिली दिखाते हैं, जो कहीं पाई ही नहीं जाती है. स्टूडेंट ऐसा दिखाते हैं, जिससे स्टूडेंट कनेक्ट नहीं कर पाते हैं. कोरोना के दौरान जब लोगों ने मौत को इतने करीब से देखा है, तो आ उन्हें रिएलिटी से जुड़ी चीजें भाती हैं. समाज और देश की मूल स्वाभाव से मेल न खाने वाली फिल्मों का चलना मुश्किल है. एलीट क्लास वाले मुंबई के लड़कों को क्या पता है कि छोटे कस्बों में क्या दिक्कतें हैं. इन्हें घमंड है कि वे पैसे खर्च कर कुछ भी फिल्म चला लेंगे. अब वो नहीं चलने वाला है, जबतक आप जमीन से जुड़ी कोई कहानी नहीं बताएंगे, तो फिल्में नहीं चलेंगी.  

द कश्मीर फाइल्स

पब्लिक को समझना मुश्किल हो गया है: दीपक मुकुट (धाकड़ प्रोड्यूसर)

सारी चीजों को प्लान कर हम बड़ी शिद्दत से फिल्म बनाते हैं. पब्लिक क्या देखना चाहती है, इसकी गारंटी कोई ले ही नहीं सकता. कोविड के बाद लोगों का माइंडसेट बदला है. लोगों ने अपनी चॉइस बदल ली है, उन्हें लगता है कि जो कॉन्टेंट घर बैठे-बैठे ओटीटी व टीवी पर मिल रहा है, तो उसके लिए हजारों खर्च कर सिनेमा हॉल क्यों जाए. पब्लिक को समझ पाना अब मुश्किल हो गया है. धाकड़ जैसी महिला प्रधान एक्शन फिल्म को देखने जब पब्लिक नहीं आई, तो आप किसी चीज की निश्चिंतता रख नहीं सकते. आगे चलकर हम प्रोड्यूसर अब उनकी नब्ज पकड़ने के लिए ग्राउंड रिसर्च करना शुरू कर दें.

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धाकड़

तो क्या स्टार पावर का जादू भी ढलान पर है? 
साफ है कि फिल्म उद्योग से सीधे जुड़े दिग्गज भी महसूस कर रहे हैं कि मौजूदा फॉर्मूलों से बॉलीवुड को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. शमशेरा, सम्राट पृथ्वीराज चौहान जैसी बड़े बजट की फिल्में भी जब बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरीं तो सवाल स्टार पावर पर भी उठे कि क्या दिग्गज सितारों में अब अपने दम पर फिल्म हिट कराने का माद्दा नहीं रहा. ज्यादातर एक्सपर्ट इसका जवाब हां में देते हैं. 
ट्रेन एनालिस्ट तरण आदर्श कहते हैं कि आप ये उम्मीद कर रहे हैं कि स्टार आ जाएंगे, तो फिल्म हिट हो जाएगी, ये अब बिलकुल नहीं है. शमशेरा की बात करें, तो स्क्रिप्टिंग के मामले में काफी कमजोर काम रहा है. जब आपका बेस ही कमजोर है, तो आप इतनी बड़ी इमारत कैसे खड़ी कर सकते हो. अब कंटेंट ही स्टार है, हीरो आपको अब हिट नहीं दिला सकते. दर्शकों को अब ऐसे हुक की तलाश है, जिसे उन्होंने कभी नहीं देखा हो.

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कश्मीर फाइल्स के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री इसका अलग कारण बताते हैं. वो कहते हैं, दो साल तक जब फिल्में बंद थी, तो ये स्टार इंस्टाग्राम पर इतने नाचते गाते रहे, रील्स बनाकर वीडियोज शेयर करने लगे, तो ऐसे में इन स्टार्स और रील्स बनाने वालों में फर्क क्या रह गया. लोगों ने इतना कुछ देख लिया है कि इन स्टार की एक्सक्लूसिविटी ही नहीं रही है. अग्निहोत्री के मुताबिक पहले ऐसा नहीं होता था, अगर हमें किसी एक्ट्रेस का डांस देखना है, तो वो केवल फिल्मों में ही देख सकते थे. डिंपल कपाड़िया सागर में बिकनी पहने है, तो लोग थिएटर में जाते थे देखने, लेकिन अब अगर आप हर एक्टर को मॉलदीव में कपड़े उतारते देखेंगे, तो कोई क्यों जाएगा थिएटर में. जब दर्शकों को वर्ल्ड सिनेमा का एक्सपोजर मिला, तो उन्हें अक्ल आई कि अच्छी एक्टिंग क्या होती है, बुरी एक्टिंग क्या है. बुरी एक्टिंग वाले स्टार्स एक्सपोज हो गए.

विवेक कहते हैं कि बहुत से स्टार्स वास्तविक नहीं हैं. वो लगातार पेड पब्लिसिटी कर, पीआर कर खुद को स्टार मानने लगते हैं. दो साल के ब्रेक में उन स्टार्स की सच्चाई सामने आई है. निर्माता-निर्देशक अनीस बज्मी का मानना है कि स्टार पावर का कोई रोल नहीं होता है, चाहे कितना भी बड़ा व मंजा हुआ स्टार हो, अगर फिल्म ही अच्छी नहीं है, तो आप कुछ नहीं कर सकते हैं.

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