जॉली एलएलबी
निर्देशक: सुभाष कपूर
कलाकारः अरशद वारसी, बमन इरानी, सौरभ शुक्ला, अमृता
जॉली एलएलबी की सबसे अच्छी बात यही है कि इसकी आत्मा सही जगह पर है. 'छोटी’ फिल्म की अपनी सीमाओं में भी यह अपनी बात टच करने वाले अंदाज में मजे से कह जाती है. ऑरकेस्ट्रा चलाने और भविष्य बताने जैसे साइड बिजनेस में लगे वकीलो के बीच पनपे मेरठ के जगदीश त्यागी उर्फ जॉली (अरशद वारसी) नेम-फेम का सपना देख बैठते हैं.
मजाहिया और सेंसिटिव स्वभाव के जज त्रिपाठी (सौरभ शुक्ला) और एलीटपन की गहरी ऐंठन लादे वकील राजपाल (बमन इरानी) चाहे-अनचाहे जॉली के मददगार साबित होते हैं. टपोरी, ऊपर से अत्यंत एग्रेसिव जॉली अपनी मेरठी सनक में एक बड़े कॉज के लिए पंगेबाजी करके ऑडियंस को अपने साथ ले लेता है.
सच है कि फिल्म कोई नई बात नहीं कहती लेकिन यह लौट-लौटकर दिलोदिमाग को टच करती है, आंखें भिगोती है, संध्या (अमृता राव) के साथ जॉली की प्रेम कथा समझदारी के साथ 4-5 दृश्यों में समेट ली गई है.
फिल्म की लिखावट जितनी रियलिस्टिक है, एक्टर्स खासकर शुक्ला और वारसी यथार्थ को उतनी ही संवेदना और जेहनी सतर्कता के साथ पकड़ते हैं. मिजाज के माकूल जुटाई गई वोकैबुलरी कहानी को जमाती/टिकाती है. कुछ गैर-जरूरी से नाच-गाने, मारपीट और अति नाटकीयता के सीक्वेंस भी हैं पर अपनी समग्रता में यह फिल्म, खत्म होने के बाद भी दर्शक के साथ जाती है.
जॉली एलएलबी एक बड़ी फिल्म भले न बन पाई हो लेकिन हमारे आज के वक्त की उलटबासियों पर एक गहरा तंजिया बयान तो देकर जाती ही है.