scorecardresearch
 

Chhaava Review: विक्की कौशल ने दिखाया शौर्य, अक्षय खन्ना का खूंखार अवतार, 'छावा' में छाए एक्टर्स

छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की कमान संभालने के बाद मुगल शासक औरंगजेब को नाकों चने चबवा दिए थे. उन्हीं वीर संभाजी महाराज की कहानी को अब विक्की कौशल, डायरेक्टर लक्ष्मण उतेकर और प्रोड्यूसर दिनेश विजान संग मिलकर लाए हैं. अगर आप फिल्म 'छावा' देखने जा रहे हैं तो हमारा रिव्यू पढ़ लीजिए.

Advertisement
X
फिल्म 'छावा' के एक सीन में विक्की कौशल
फिल्म 'छावा' के एक सीन में विक्की कौशल
फिल्म:छावा
3.5/5
  • कलाकार : विक्की कौशल, रश्मिका मंदाना, अक्षय खन्ना
  • निर्देशक :लक्ष्मण उतेकर

मराठा साम्राज्य के पहले छत्रपति, शिवाजी महाराज की कहानी कौन नहीं जानता! शिवाजी ने मुगलों को कड़ी टक्कर दी थी. उनके निधन के बाद अपनों के साथ-साथ दुश्मनों ने भी उनके जाने का शोक मनाया था. जब सोचा जा रहा था कि शिवाजी के मराठों का कोई नहीं रहा तब उनके बेटे संभाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की कमान संभाली और मुगल शासक औरंगजेब को नाकों चने चबवा दिए थे. उन्हीं वीर छत्रपति संभाजी महाराज की कहानी को अब विक्की कौशल, डायरेक्टर लक्ष्मण उतेकर और प्रोड्यूसर दिनेश विजान संग मिलकर लाए हैं.

Advertisement

क्या है छावा की कहानी?

लेखक शिवाजी सावंत की लिखी किताब 'छावा' पर विक्की कौशल स्टारर फिल्म आधारित है. छत्रपति शिवाजी महाराज के दुनिया छोड़ जाने के बाद औरंगजेब अपना साम्राज्य बढ़ाने की कोशिश में था. ऐसे में शिवाजी के बेटे संभाजी ने मुगलों को बता दिया था कि शेर भले ही चला गया है कि उसका छावा अभी भी जिंदा है और शिवाजी का स्वराज का सपना वो अपने जीते जी मरने नहीं देगा. संभाजी महाराज किसी शेर से कम नहीं थे लेकिन उनकी जिंदगी और मौत काफी दर्द से भरी थी. यही फिल्म में डायरेक्टर लक्ष्मण उतेकर ने दिखाने की कोशिश की है.

फिल्म की शुरुआत एक घमासान युद्ध से होती है. यहीं आपको पहली बार छत्रपति संभाजी महाराज बने विक्की कौशल देखने मिलते हैं. उनकी आंखों में अलग-सी चमक है. चौड़ी छाती और बुलंद आवाज के साथ आप उन्हें युद्ध करते देखते हैं. इसके बाद आपको विक्की की सॉफ्ट साइड भी देखने को मिलती है. संभाजी एक जाबाज योद्धा होने के साथ-साथ एक इमोशनल इंसान भी हैं, जो मां और पिता को खोने के दर्द से जूझ रहे हैं. वो अपने सपनों में मां को खोजते हैं, लेकिन मां के बजाए उन्हें अपने पिता शिवाजी की ही आवाज सुनाई देती है. पिता, अपने 'शंभू' को रास्ता तो दिखाते हैं लेकिन मां का प्यार नहीं दे पाते.

Advertisement

छावा में दहाड़े विक्की कौशल 

विक्की कौशल ने संभाजी महाराज के रोल को काफी बढ़िया तरीके से निभाया है. पर्दे पर आप उनकी मेहनत को देख सकते हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि डायरेक्टर लक्ष्मण उतेकर ने उन्हें शेर जैसा लगने को कहा था और इसमें विक्की बिल्कुल सफल रहे हैं. फिल्म में एक सीक्वेंस के दौरान आप उन्हें एकदम अपने किरदार में खोया पाएंगे. यहां युद्ध के बीच संभा मुगलों की सेना से लड़ाई कर रहे हैं. उनके साथी एक-एक करके ढेर हो रहे हैं लेकिन संभाजी की हिम्मत अलग ही है. 1000 सैनिक एक संभा को रोक पाने में नाकाम हो रहे हैं. बेड़ियों में जकड़े जाने के बाद भी उनके करीब जाने में लोगों के पसीने छूट रहे हैं. यही सीन आपको बताता है कि विक्की कौशल कितने बढ़िया कलाकार हैं. स्क्रीन पर उनका ये रूप देखते हुए आपके दिल की धड़कने बढ़ जाती हैं.

इमोशनल सीन्स में भी विक्की कौशल आपका दिल छूते हैं. उनके मन के अंदर की कशमकश आपको महसूस होती है. संभाजी की पत्नी येशुबाई के किरदार में रश्मिका मंदाना ने विक्की का पूरा साथ देने की कोशिश की है. दोनों के साथ में सीन अच्छे हैं. रश्मिका एक रानी के रूप में कुछ सीन्स में अच्छी लगी हैं. लेकिन उनका एक्सेंट उनकी एक्टिंग के आड़े आता है.

Advertisement

अक्षय खन्ना दहलाएंगे दिल

विलेन औरंगजेब के रूप में अक्षय खन्ना को पहचान पाना काफी मुश्किल है. डीए मेकअप लैब के कमाल के प्रॉस्थेटिक में अक्षय बेहतरीन लग रहे हैं. लुक के साथ-साथ उनका काम भी काफी बढ़िया है. बूढ़े औरंगजेब के सामने जब 'छावा' संभाजी खड़ा है तो आप उसके मन की जलन को देख सकते हैं. वो चाहता है कि उसके पास भी कोई ऐसा योद्धा हो, जो दूसरों को इतनी कड़ी टक्कर दे सके. अक्षय खन्ना अपनी नजरों बेहतरीन काम कर रहे हैं. उनकी आंखें उनके अंदर की नफरत, दूसरों में उनके खौफ और भारत को अपना बनाने के लालच की गवाही देती हैं. शांत लेकिन क्रूर शासक के रूप में अक्षय आपको डराते हैं.

इसके अलावा फिल्म में दिव्या दत्ता, डायना पेंटी, अनिल जॉर्ज, आशुतोष राणा संग कई बढ़िया एक्टर्स हैं. हालांकि किसी को भी ज्यादा स्क्रीनटाइम नहीं मिला. ये सभी अपने रोल्स में अच्छे हैं, लेकिन कम स्क्रीनटाइम के चलते आप उन्हें खास कमाल करते नहीं देखते. संभाजी के दोस्त कवि कलश के रूप में विनीत कुमार सिंह ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. संभाजी संग उनकी कविता भी सुनने लायक है. इसका श्रेय इरशाद कामिल को जाता है, जिन्होंने ऋषि विरमानी के साथ डायलॉग राइटिंग की है.

Advertisement

यहां रह गई कमी

फिल्म में जान डालने के लिए लक्ष्मण उतेकर ने ढेरों युद्ध के सीक्वेंस डाले हैं. इन्हीं के साथ ये फिल्म आपको हाई नोट्स पर लेकर जाती है. ये वॉर सीक्वेंस काफी बढ़िया हैं. इनकी कोरियोग्राफी, खून-खराबा और निर्दयीता सबकुछ आपके ऊपर असर डालता है. हालांकि कुछ वक्त के बाद आप थकने लगते हैं. इसमें उस वक्त की भव्यता को बड़े और खूबसूरत सेट्स के जरिए दिखाया गया है. लेकिन फिर भी कहीं न कहीं कुछ कमी लगती है. फिल्म में एडिटिंग की सबसे बड़ी दिक्कत है. इसकी रफ्तार ढीली है, जिसके चलते आपको लगता है कि आप सदियों से थिएटर में बैठे इसे देख रहे हैं.

पिक्चर में काफी डायलॉगबाजी है. लेकिन शायद ही कोई डायलॉग होगा, जो आपको बाद में याद रहे. ढीले फर्स्ट हाफ के बाद एक्शनभरा सेकेंड हाफ आपके मन में दिलचस्पी जगाता है. पिक्चर का म्यूजिक बहुत खास नहीं है, लेकिन इसका बैकग्राउंड स्कोर आपके एक्सपीरिएंस को अच्छा बनाता है. इसमें टॉर्चर के सीन्स हैं, जो आपको दूसरी तरफ देखने पर मजबूर करेंगे. खूब-खराबा, मारकाट जैसे सीन्स से अगर आपको दिक्कत है तो मन पक्का करके ही आपको 'छावा' देखने जाना चाहिए.

Live TV

Advertisement
Advertisement