कहानी
क्रिमिनल जस्टिस वेब सीरीज में अनु चंद्रा नाम की एक ऐसी ही महिला की कहानी दिखाई गई है, जो अपने पति द्वारा हैरास की जाती है, फिजिकली भी, मेंटली भी और सेक्शुअली भी. कई सालों तक वो ये सब झेलती है पर इस हैरासमेंट का उसके दिमाग पर गहरा असर पड़ता है. वो अपनी मैरिज लाइफ में काफी स्ट्रगल कर रही होती है. वो एक साइकेट्रिस्ट से भी अपने तनाव का इलाज करा रही होती है. इन्हीं सब उलझनों में फंसे रहने के बीच ही अनु से एक भूल हो जाती है. वो अपने साइकेट्रिस्ट के साथ अवैध संबंध बना लेती है. इस बात का उसे बाद में अफसोस भी होता है और साइकेटरिस्ट संग वे कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं रखती हैं. चूंकि अनु अपने परिवार को बिखरता हुआ नहीं देखना चाहती, वो नहीं चाहती कि रिश्तों की बागडोर छूटे और घर टूट जाए. वो खुद पर हो रहे जुल्म को बर्दाश्त करने का रास्ता ही चुनती है. मगर अनु के लिए रिश्तों की बागडोर को सम्भाले रखना भी कोई आसान काम नहीं होता.
एक रोज जब अनु का पति उसे फिर से हैरास करता है तो उससे एक और गलती हो जाती है. वो अपने पति को मार देती है. इस बात का अनु को अफसोस भी होता है और वो भावनाओं में बह कर अपना जुर्म कुबूल लेती है. और यहीं से शुरू होती है समाज की नजरों में एक ऐसे क्रिमिनल को जस्टिस दिलाने की दास्तां जो वास्तविकता में कोई क्रिमिनल नहीं है. वो एक ऐसी महिला है जिसे समाज हमेशा से दबाता आया है.
जहां पुरुष प्रधान समाज में उसका दर्जा किसी नौकरानी से कमतर नहीं आंका गया. जहां उसकी कुर्बानी, उसके त्याग को बिल्कुल ही अनदेखा कर दिया गया. जब उसने बराबरी के लिए कदम बढ़ाना चाहा, उसके पैरों में जैसे बेड़ियां-सी बांध दी गईं. वो महिला इंसाफ की हकदार है. उसे जीने का हक है. खुली हवा में सांस लेने का हक है. अनु चंद्रा को इंसाफ दिलाने के लिए वकील माधव मिश्रा आगे आते हैं. इस रोल को पंकज त्रिपाठी ने बेखूबी निभाया है. अब कैसे मिलता है अनु चंद्रा को इंसाफ ये जानने के लिए आपको ये वेब सीरीज जरूर देखनी चाहिए. ताकि आप भी सचेत हो सकें हर घर में पल रही इस बीमारी के बारे में, जो कि प्यार भरे रिश्तों में सिर्फ दरार ही पैदा नहीं करती बल्कि मानवता पर भी गहरी चोट करती हैं.
एक्टिंग
इस वेब सीरीज के सभी कलाकारों ने शानदार एक्टिंग की है. वकील के रोल में पंकज त्रिपाठी, अनुप्रिया गोयनका और आशीष विद्यार्थी का काम सराहनीय है. पंकज त्रपाठी के किरदार माधव मिश्रा की पत्नी का रोल भी शानदार तरीके से निभाया गया है. दीप्ति नवल, जिशु सेनगुप्ता और मीता वशिष्ट का काम भी अच्छा है. पंकज त्रिपाठी अपने रोल में हमेशा की तरह एफर्टलेस नजर आए हैं. आशीष विद्यार्थी की अपीयरेंस हमेशा खास प्रभाव छोड़ती है. मगर पूरी वेब सीरीज में जिस तरह से कीर्ति कुल्हारी ने अपने किरदार को निभाया है वो काबिल-ए-तारीफ है. एक मासूमियत, बेबसी और परेशानी उनके चेहरे पर हर वक्त नजर आई जो इस किरदार की मांग थी. पूरे परफेक्शन के साथ उन्होंने इस रोल को प्ले किया. कीर्ति के इस किरदार को उनके करियर के सबसे शानदार किरदारों में से एक माना जा सकता है.
धीमी है कहानी, फिर भी असरदार
इस वेब सीरीज को एक बार तो जरूर ही देखना चाहिए. माना कि वेब सीरीज जरा धीमी है और कहानी आपको मनोरंजित कर पाने में उतना सामर्थ्य नहीं रखती मगर कहानी में सीधा-साधा सस्पेंस है जिससे होकर के न्याय का दरवाजा खुलता है. आज के दौर में उस न्याय के दरवाजे को खुलते हुए देखना जरूरी है. इस फिल्म को देखा जाना चाहिए मनोरंजन से इतर एक जागरुकता के लिए. एक पहल के लिए. एक एहसास के लिए और उन महिलाओं के प्रति सम्मान के लिए जिन्हें एक पुरुष प्रधान समाज के अंदर आज के नए दौर में भी ना जाने रोजमर्रा की जिंदगी में क्या-क्या सहना पड़ता है. उनकी सिसक घर के बंद दरवाजे में दुबक कर रह जाती है. उस वक्त जरूरत पड़ती है ''क्रिमिनल जस्टिस बिहाइंड क्लोज्ड डोर्स'' की.