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Dhokha: Round The Corner Review: ट्विस्ट एंड टर्न्स से भरपूर है 'धोखा', अपारशक्ति खुराना की दमदार परफॉर्मेंस

Dhokha: Round the corner Review: आर माधवन, अपारशक्ति खुराना, दर्शन कुमार और खुशाली कुमार स्टारर फिल्म धोखा राउंड द कॉर्नर रिलीज हुई है. थ्रिलर ड्रामा के जॉनर में फिल्म की कहानी पिरोई गई है, जिसमें कई सारे ट्विस्ट एंड टर्न हैं. माधवन की इस मूवी को देखा जाना चाहिए या नहीं, जानें इस रिव्यू में.

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Dhokha: Round d corner
Dhokha: Round d corner
फिल्म:धोखा- राउंड द कॉर्नर
3/5
  • कलाकार : आर माधवन, खुशाली कुमार, अपारशक्ति खुराना, दर्शन कुमार
  • निर्देशक :कुकी गुलाटी 

Dhokha: Round the corner Review: सच और झूठ में अगर लड़ाई हो, तो क्या जीत हमेशा सच की होती है? अगर  झूठ शिद्दत और सच्चाई से कहा गया हो, तो क्या वाकई सच को झूठा व पागल करार कर दिया जाता है? धोखा राउंड द कॉर्नर देखने के बाद आप इन्हीं कुछ सवालों के साथ घर वापस आते हैं. फिल्म में चार मुख्य किरदार हैं, और चारों के पास अपनी कहानी है, किसकी कहानी सच्ची है और किसकी झूठी, इसी पर फिल्म आधारित है. 

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कहानी

मुंबई के यथार्थ सिन्हा और उनकी पत्नी सांची सिन्हा एक खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं. एक पति-पत्नी के बीच होने वाले नोक-झोंक के साथ कहानी आगे बढ़ रही होती है तभी उनकी जिंदगी में यू-टर्न आता है, जब एक जेल से भागा हुआ आतंकवादी हक गुल इनके घर में घुस जाता है. इस घर में सांची अकेली है. पुलिस और सिक्यॉरिटी से घिरी बिल्डिंग के पास यथार्थ जब पहुंचता है, तो नीचे पुलिस सिक्यॉरिटी की हेड मल्लिक (दर्शन कुमार) को जानकारी देता है कि उसकी पत्नी मानसिक रूप से स्टेबल नहीं है क्योंकि वो डिलूशनल डिसॉर्डर की शिकार है. यथार्थ की कहानी सुनकर खुद मल्लिक भी कहता है कि समझ नहीं आ रहा है कि ऊपर कौन ज्यादा खतरनाक है, हक गुल या तुम्हारी पत्नी. हालांकि दूसरी तरफ सांची अपनी दास्तां गुल से शेयर करती है, वो बिलकुल यथार्थ की कहानी के उलट है. इन चार मुख्य किरदारों के इर्द-गिर्द फिल्म घूमती है. इन चारों की अपनी कहानी है, इनकी कहानियों में कौन सच्चा है और कौन झूठा है. इसे जानने के लिए थिएटर की ओर रुख करें.

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डायरेक्शन

द बिग बुल के बाद कुकी गुलाटी अपनी थ्रिलर फिल्म धोखा राउंड द कॉर्नर लेकर आए हैं. फिल्म की कहानी दिलचस्प है लेकिन इसके मेकिंग में कुछ लूप-होल्स जरूर है. ट्विस्ट एंड टर्न से भरी स्टोरी अगर बेहतर तरीके से लिखी जाती, तो फिल्म बेहतरीन थ्रिलर की श्रेणी में शुमार हो सकती थी. कहानी को एक्जीक्यूट करने में डायरेक्टर थोड़ा मार खा जाते हैं. कुछ सीन्स को देखकर उसे डायजस्ट करने में थोड़ा वक्त लगे. खासकर गुल और सांची के बीच का संवाद, थोड़ा बेतुका सा लगता है कि कैसे कोई टेररिस्ट कुछ घंटों में ही एक हाउसवाइफ के प्यार में पड़ जाता है और उसे लेकर कश्मीर में बसना चाहता है (लाइक सीरियसली). कुछ क्रिंजी डायलॉग्स को एक्टर्स की उम्दा परफॉर्मेंस ने बचा लिया है. हालांकि इस बात पर कोई दो राय नहीं कि पूरी फिल्म के दौरान कौन सच कह रहा है और किसकी बातें झूठी हैं, इस कशमकश में आप उलझे रहते हैं. फर्स्ट हाफ थोड़ा स्लो है, उसे थोड़ा क्रिस्प किया जा सकता था. वहीं सेकेंड हाफ में स्टोरी में पेस आता है. फिल्म देखने के दौरान सस्पेंस को लेकर कई प्रेडिक्शन आपके मन में चलने लगते हैं, लेकिन दावा है क्लाइमैक्स आपको निराश नहीं करेगा, इनफैक्ट इसमें एक एंगल शायद आपको हैरान भी कर दे.  

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टेक्निकल

फिल्म टेक्निकली डीसेंट रही है. सिनेमैटोग्राफर अमित रॉय ने मुंबई के पॉश इलाकों के घरों को बखूबी कैमरे में कैद किया है. फ्रेम दर फ्रेम फिल्म में आप मुंबई के एसेंस को महसूस कर सकते हैं. फिल्म की एडिटिंग में थोड़ा काम कर इसकी लेंथ को कम किया जा सकता था, जो थ्रिल को बरकरार रखने में मदद कर सकती थी.

एक्टिंग

फिल्म की कास्टिंग इसका मजबूत पक्ष है. फिल्म में आर माधवन जहां यथार्थ के किरदार में सहज लगे हैं, वहीं खुशाली कुमार ने सरप्राइज किया है. ये यकीन करना मुश्किल हो जाएगा कि उनकी यह डेब्यू फिल्म है. प्रॉमिसिंग एक्ट्रेस के रूप में उन्होंने खुद को साबित किया है. इसमें दो राय नहीं है कि इस फिल्म की जान हैं अपारशक्ति खुराना, इस फिल्म में उन्होंने अपनी बेस्ट परफॉर्मेंस दी है. खासकर आखिरी के दस मिनट में अपार पूरा शो चुरा ले जाते हैं. पुलिस इंस्पेक्टर के रूप में दर्शन कुमार का परफॉर्मेंस जानदार रहा है.

क्यों देखें

फिल्म में कई सारे ट्विस्ट एंड टर्न हैं खासकर इसका क्लाइमैक्स आपको सरप्राइज जरूर करेगा. कहानी फ्रेश है और स्टार्स की बेहतरीन परफॉर्मेंस के लिए इसे एक मौका दिया जा सकता है.

 

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