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"जिस नाटक की राजनीति नहीं, उसके मंचन का कोई मतलब नहीं"

"क्या आप किसानी छोड़कर मजदूरी करेंगे? गांव छोड़कर शहर जाएंगे?" जिस समय कल्याणी ने अपने पति से यह सवाल पूछा आईआईटी के सभागार में बैठे दर्शकों की आंखें छलछला उठीं. भारत के किसानों की दुर्दशा को कलाकारों ने ऐसे जीवंत कर दिया. बुंदलखंड का एक गांव अपनी कहानी के साथ चलकर दिल्ली पहुंच गया था.  राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में जारी सरकारी नाटकों के थियेटर ओलंपिक के बीच अंतराल नाटक समारोह के मंचन ने समाज और सरकार की हालत पर सशक्त सांस्कृतिक हस्तक्षेप किया है.

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राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में नाटक का मंचन.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में नाटक का मंचन.

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"क्या आप किसानी छोड़कर मजदूरी करेंगे? गांव छोड़कर शहर जाएंगे?" जिस समय कल्याणी ने अपने पति से यह सवाल पूछा आईआईटी के सभागार में बैठे दर्शकों की आंखें छलछला उठीं. भारत के किसानों की दुर्दशा को कलाकारों ने ऐसे जीवंत कर दिया. बुंदलखंड का एक गांव अपनी कहानी के साथ चलकर दिल्ली पहुंच गया था.  राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में जारी सरकारी नाटकों के थियेटर ओलंपिक के बीच अंतराल नाटक समारोह के मंचन ने समाज और सरकार की हालत पर सशक्त सांस्कृतिक हस्तक्षेप किया है.

दो दिनों के अंतराल नाटक फेस्टिवल के आखिरी दिन अकबर और आजम कादरी के नाटक 'मौसम को न जाने क्या हो गया' दर्शकों को स्तब्ध कर गया. यह नाटक का कथानक सूखे से जूझते बुंदेलखंड का एक गांव है. लगातार बढ़ते कर्ज और मौसम की मार झेलती फसलों के बीच गांव के नौजवान काम की तलाश में दिल्ली की ओर निकलने लगते हैं. लेकिन एक किसान अपने बेटे को रोक देता है. उसे विश्वास है कि लोगों का पेट भरने से ज्यादा सुखद एहसास दुनिया में कुछ और नहीं. लेकिन तभी फसल मारी जाती है और बेटा शहर निकल जाता है.

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शहर से पैसा कमाकर बेटा गांव लौटता है और सारी बचत खेती में लगा देता है.  इसी के बाद शुरु होता है वह दुष्चक्र जिसमें भारत का हर किसान खुद को आज फंसा हुआ महसूस कर रहा है. फसल फिर मारी जाती है, बेटी की शादी टूट जाती है और सूदखोर दरवाजे पर जमा हो जाते हैं.  यहां से नाटक कई सवाल खड़े करता है. कल्याणी पूछती है कि मर्द तो तब भी निराश होकर जान दे सकते हैं, लेकिन औरतें कहां जाएं? और उस समय सभागार से सिसकियों से गूंज उठती है जब चारों तरफ से हताश कल्याणी आत्महत्या के लिए फांसी का फंदा गले में डालती है.

अंतराल नाट्य समारोह का उद्घाटन करने पहुंचीं मशहूर साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि यह नाटक अपने समय का जरूरी बयान है. उन्होंने कहा नाटक के लेखक आजम कादरी और निर्देशक अकबर कादरी को बधाई देते हुए अभिव्यक्ति के खतरों को लेकर आगाह भी किया. आजम कादरी ने कहा कि जो नाटक अपने समय की राजनीति को रेखांकित नहीं करता, उसके मंचन का कोई मतलब नहीं. वहीं अकबर कादरी ने उम्मीद जाहिर की कि ऐसे नाटकों से महानगरों के दर्शक किसानों को लेकर ज्यादा संवेदनशील होंगे.

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अंतराल नाटक समारोह के दौरान चैनपुर की दास्तान और मौसम को न जाने क्या हो गया का प्रदर्शन किया गया. चैनपुर का दास्तान हास्य और व्यंग्य के जरिए भ्रष्टाचार पर गहरी चोट करता है. इसे रंजीत कपूर ने लिखा है और निर्देशन किया है फहद खान ने. कल्याणी की भूमिका में मोनिषा राय, मां की भूमिका में ऋचा राय और किसान की भूमिका में गुरिंदर सिंह ने अपने अभिनय से सबको दंग कर दिया

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