रेटिंगः 2.5 स्टार
कलाकारः नाना पाटेकर, गुल पनाग और आशुतोष राणा
डायरेक्टरः एजाज गुलाब
नाना पाटेकर ने जब एक दशक पहले 'अब तक छप्पन' के साथ दस्तक दी थी, तो यह गैंगस्टर फिल्मों में चमकता सितारा बन गए थे. अब नाना ने इसके सीक्वल के साथ वापसी की है. फिल्म में नाना पहले वाले ही साधु अगाशे लगते हैं. बिल्कुल उसी तरह जैसे वह 2004 में हुआ करते थे. नाना की अब उम्र 64 साल हो चुकी है, लेकिन उनकी ऐक्टिंग और बॉडी लैंग्वेज आज भी पहले जैसी बेहतरीन ही है. लेकिन नए डायरेक्टर और खराब प्रोडक्शन क्वालिटी ने फिल्म का जायका बिगाड़ कर रख दिया है. पूरी फिल्म में सिर्फ नाना और नाना ही छाए रहते हैं. उनकी ऐक्टिंग और डायलॉग डिलिवरी कमाल है.
फिल्म की कहानी पूर्व एनकाउंटर स्पेशलिस्ट साधु अगाशे के साथ शुरू होती है जो रिटायर लाइफ जी रहा है. लेकिन हालात और दबाव की वजह से साधु को फिर से फोर्स में आना पड़ता है. फिर वही मार-धाड़, गैंगस्टर और नेताओं के संबंध और फिर वही दुष्चक्र. नाना पूरी तरह से अपने रोल में जमते हैं, और गुल पनाग तथा आशुतोष राणा भी उनका अच्छा साथ देते हैं लेकिन कमजोर कहानी और अनगढ़ डायरेक्शन सारे किए कराए पर पानी फेर देता है.
फिल्म पूरी तरह 1990 के दशक की याद दिलाती है, लेकिन ऐसे दौर में जब 'सिंघम' और 'दबंग' जैसी फिल्में बन रही हैं, उस दौर में इस तरह की फिल्म बनाना डायरेक्टर और प्रोड्यूसर की समझ पर उंगली उठाती है. जिसकी वजह से नाना का टैलेंट भी जाया होता नजर आता है. कमजोर कहानी और खराब डायरेक्शन 'अब तक छप्पन' नाम के अनुरूप नहीं हैं.
फिल्म में भाषण की जगह अगर मसालेदार एक्शन और मजबूत कहानी पर ज्यादा ध्यान दिया होता तो बात ही कुछ और होती. फिल्म को सिंगल स्क्रीन थिएटर में पसंद किया जा सकता है. बहुत बड़ी कामयाबी की उम्मीद तो कम ही है. वैसे भी यह फिल्म पूरी तरह से नाना के चाहने वालों के लिए है.