फिल्म रिव्यूः बेवकूफियां
एक्टरः आयुष्मान खुराना, सोनम कपूर, ऋषि कपूर
डायरेक्टरः नूपुर अस्थाना
स्टोरीः हबीब फैजल
ड्यूरेशनः 119 मिनट
स्टारः पांच में ढाई (2.5)
मैं एक वकील खोज रहा हूं. सस्ता हो, मगर धाकड़ हो. मिलते ही मार दस्तखत झकरकटी नुमा एक जगह पर मुकदमा ठोंक दूं सब फिल्म वालों के खिलाफ. उनके चक्कर में आशिकों की लंका लग गई है. बार-बार दिखाते हैं. महा रोमांटिक सेटिंग. लड़की कभी बिल का वेट कर रही है. तो कभी कार का और कभी किसी और चीज का. मगर तभी झल्ला मगर वल्ला हीरो सरप्राइज पेश करता है. कभी फूलों तो कभी पत्तों के बीच से रिंग निकलती है. पियानो-गिटार बजता है. घुटना मुड़ता है. विल यू मैरी मी का मंत्र निकलता है. कन्या अनिवार्य रूप से आंखों को बस उतना गीला कर कि आई मेकअप न बिगड़े, हौले से हाथ मोड़ मुंह पर ले जाती है....
आज रिलीज हुई फिल्म बेवकूफियां में भी ऐसा ही कुछ होता है. और ये ऐसा कई बार होता है. मतलब बार बार लगता है कि ये तो हम पहले भी कई बार देख चुके हैं. अब इस फिल्म में क्यों दिखा रहे हैं. लगता ही नहीं कि बेवकूफियां को उन्हीं हबीब फैजल ने लिखा है, जिन्हें हम दो दूनी चार और इशकजादे के लिए याद करते हैं.फिल्म की कहानी बहुत ज्यादा प्रिडिक्टिबल है. ऋषि कपूर की बहुत अच्छी एक्टिंग है. आयुष्मान खुराना की अच्छी एक्टिंग है, मगर इस रेंज को वह पहले ही साध चुके हैं. और सोनम. उनकी जुकाम में दबी आवाज और अंदाज देखकर यही लगता है कि वह किसी फैशन मैगजीन में काम करें तो दोनों के लिए अच्छा रहेगा. उनके और हमारे. फिल्म बेवकूफियां औसत फिल्म है. इसमें कुछ अच्छे डायलॉग्स हैं. कुछ अच्छी एक्टिंग है और सो सो कहानी है. नएपन के नाम पर बस संभावित ससुर दामाद के बीच की केमिस्ट्री है. फिल्म को सिनेमा हॉल में नहीं भी देखेंगे तो कोई हर्ज नहीं. टीवी है न. बस कुछ महीनों की बात है.
क्या है कहानी इस फिल्म की
मोहित और मायरा एक दूसरे से प्यार करते हैं. क्यूट वाला. मैं तुझ खा जाऊं टाइप. खींखींखीं. मगर जब मायरा अपने पापा मिस्टर सहगल को इसके बारे में बताती है, तो उनके भीतर का परंपरागत बाप जाग जाता है. हाल ही में आईएएस से रिटायर हुए सहगल साहब लड़के में मीन मेख निकालने लगते हैं. उसे प्रोबेशन पर रख जांच करने लगते हैं. बेटी को बताने लगते हैं कि लाइफ में प्यार नहीं पैसा जरूरी है. खैर, सहगल के इम्तिहानों से मोहित गुजरता है, मगर तभी रिसेशन हिट करता है और उसकी जॉब चली जाती है. फिर झूठ और आपसी शिकवा शिकायतों का दौर शुरू होता है. कन्फ्यूजन होता है, इगो टकराता है. आखिर में जो पापा उनके प्यार के दुश्मन थे, वही उन्हें एक होने में मदद करते हैं.
और भी कुछ नोटिस किया क्या
समय समय की बात है. यही ऋषि कपूर हीरोइन के बाप को कोसकर गाते थे, तैयब अली प्यार के दुश्मन हाय हाय. और आज यही प्यार के दुश्मन बने हुए थे. एक्टिंग में ही मुमकिन है. किरदार की नई नई केंचुल पहनना. और अपनी इस नई केंचुल में ऋषि कपूर गदर रंग ढा रहे हैं. चाहे शुद्ध देसी रोमांस हो या फिर दो दूनी चार और ये फिल्म. ऐसा लगता है कि चर्बी के साथ उनकी क्यूटनेस भी बढ़ती जा रही है. फिल्म की एक और अच्छी बात है इसका पेस. दो घंटे से भी कम में खत्म हो जाती है, इसलिए कहीं भी सुस्ती या बोरियत नहीं छाती. मगर सोनम का क्या करें, जो एक ही धुन में सब सितार बजाए जा रही हैं. उनके करियर में ये फिल्म क्या सिर्फ बिकनी सीन की वजह से ही याद की जाएगी. मुझे शक है कि ऐसा ही होगा. फिल्म का डायरेक्शन किया है नूपर अस्थाना ने. उन्होंने इससे पहले एक और बत्ती बुझाकर सो जा टाइप फिल्म बनाई थी मुझसे फ्रेंडशिप करोगे.
बेवकूफियां देखिए अगर कूची कू लव स्टोरीज और उनमें आने वाले सतही ट्विस्ट पसंद हैं. आयुष्मान पसंद है या फिर आपको भी अपने ससुर के साथ असुर जैसा फील आया है. औसत से बस माशा भर ऊपर है ये फिल्म.